बीते हुए लम्हे........कसक साथ तो होगी !!


पूरे साल जितने उतार चढ़ाव, जितने एहसासों से गुज़रे उन्हें अब दिल में समेट लेते हैं। वो बीत गया लेकिन हमारे अंदर है वैसे ही जैसे हंसी के रुकने पर भी मुस्कान होठों को छुए रहती है। पिछला साल क्या बहुत कुछ दे गया ? सोचता हूँ तो पाता हूँ...हाँ बहुत कुछ ऐसा जो कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था पर ऐसी ही तो होती है ज़िन्दगी ख्वाबों से भी ज्यादा हैरान कर देने वाली। फर्क बस इतना है किसी गहरे ख्वाब में खतरनाक, खूबसूरत जो भी घटता है उसे आँखे साफ़ करते ही भुला दिया जाता है। दर्दनाक ख्वाब दिल को थोड़ा हिलाते ज़रूर हैं लेकिन हकीक़त झिंझोड़ ही देती है कि "देखो तुम ख्वाब से कांप रहे हो जबकि मैं यहाँ खड़ी हूँ अनगिनत ऐसे लम्हों के साथ जिनका तुम्हे कोई अंदाजा नहीं है" बिता साल, बीते 365 दिन कितनी खिलखिलाहट, कितने आंसू...कोई हिसाब तो नहीं है पर कभी झटके, कहीं खड्डे और कुछ पानी की बौछार जैसा।
          नया हर लम्हा रहस्यमय है लम्हे के उस पार खिलखिलाती हंसी है या सुबकता दर्द। लम्हे के उस पार बाहें फैलाए दोस्त है या हाथ छुड़ाती चाहत। उस पार ऊँचाई पर बैठी ख्वाहिशें हैं या टूटती हिम्मत। उस पार बहुत कुछ होगा, किसी भी सूरत का, हमें अच्छा भी लग सकता है, नागवार भी गुज़र सकता है। उस पार के लम्हे अपनी तरफ खीचते हुए कहते हैं "आओ क्यूंकि मैं तुम्हें बदल डालने वाला हूँ, मुझसे गुजरने के बाद तुम वो नहीं रह जाओगे जो कभी थे, मैं तुम्हारा रंग गहरा कर दूंगा तुम जब पलट कर देखोगे तो पाओगे एक बीता लम्हा लेकिन वो बीता लम्हा तुम्हारे भी बीते रूप को ले जाएगा। तुम नए होगे, पहले वाले लम्हे से नए और आने वाले हर लम्हे में नए होते चले जाओगे, इस नए-पन का सिलसिला रुकेगा नहीं"......।
          खुद को जानना कभी आसान नहीं रहा, हम दावा करते हैं खुद को समझने का जबकि हर गुज़रते पल के साथ खुद से अनजाने ही होते चले जाते हैं। आज हम इतने ज्यादा दोहरे चरित्र में जीते हैं कि जैसे ही खुद को जानने का यकीन होता है ये इतनी बुरी तरह चेहरा बदलता है मानो आईने में कोई और ही शख्स है। तो अब देखना ये है ये अगले 365 दिन खुद से रू-ब-रू करवाते हैं या यूँ ही 'पहचान कौन' का खेल खेलते रहते हैं।
          गुज़रे साल की कई बातें यकीन दिलाती हैं कि इन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। कुछ का असर साल के शुरूआती महीनो पर रह भी सकता है। मगर फिर ये साल भी अपने असली रूप में आता हुआ 10 वर्ष पुराने विवाह जैसा हो जायेगा जिसमें कुछ भी ख़ास नहीं है, सिर्फ नीरसता होगी। कुछ भी नया नहीं है। नए से पुराने होने में वक़्त ही कितना लगता है। हम खुशियों के एक क़दम और करीब पहुंचे हैं, कामयाबी के एक क़दम और करीब पहुंचे हैं या बुढापे के ये समझना मुश्किल है लेकिन इतना तो तय है हम खुद को बदलने के एक क़दम और करीब पहुंचे हैं। बदलाव अच्छा बुरा कैसा भी हो सकता है, ज़रूरी नहीं हर बदलाव बुरा ही हो कुछ बदलाव अच्छे भी होते हैं।
          कभी कुछ लम्हे हाथो से छूटते हुए नज़र आते हैं.. कुछ ऐसे लम्हे, जब हमें यकीन था कि सब हसीं है.. मगर जब ऑंखें खुलती हैं, तब ऐसा लगता है कि अब शायद उन लम्हों में भी कहीं ना कहीं कोई पुराना दर्द छुपा था। एक ऐसा दर्द, जो कभी नज़र नहीं आया उनकी आँखों मेंहाँ, आसार तो नज़र आये थे, लेकिन स्वाभाव का हिस्सा जान कर उससे हम भूलते गए.. पर अब ऐसे लगता है, की उनकी ज़िन्दगी में जो ख़ुशी के लम्हे थे, उनमे कभी हम शामिल ही नहीं थे। हर ख़ुशी के साथ एक दर्द का एहसास अब होता है.. लगता की कभी तो मेरी और उनकी कोई सी ख़ुशी, सिर्फ हमारी हो, जिसमे कोई पुरानी याद ना हो, ना ही किसी की तन्हाई का दर्द हो.. किसी से बिछड़ने का ग़म ना हो.. ऐसा लगता है की हर एक ख़ुशी की हिस्सेदार वही एक इंसान है, जो हमारी ज़िन्दगी में ना होते हुए भी शामिल है। हमारे दिल में, हमारे दर्द में, उसके साथ बिताये हुए कुछ लम्हे में.. हमारे हर सबब में......वह शामिल है आज भी..... ।
          गुज़रे साल ने बहुत से सवालो के जवाब मांगे पर मेरे पास जवाबों की कमी है। सवाल देखते ही देखते आस-पास खड़े हो जाते हैं और मैं उनसे घिर कर खुद को घुटा हुआ महसूस करता हूँ। ये सवाल बेहद तकलीफदेह हैं ये हमेशा झुण्ड बना कर आते हैं ताकि जब मैं एक तरफ से भागूं तो दूसरा दबोच ले और जब उससे पीछा छुडाऊं, तो तीसरा कलाई मरोड़ दे।
          नया साल, नए लम्हे कुछ जवाब लायेंगे इसकी उम्मीद नहीं है इन लम्हों ने खुद में इतना कुछ छुपाया हुआ है कि मैं उसे ही जानने के लिए बेसब्र हूँ। अपनी तरफ से कुछ चाहने का हौसला नहीं है। इन लम्हों के आगे मैं चाह भी क्या सकता हूँ। ये जो भी लायेंगे वो मनपसंद ना भी हो, दिलचस्प ज़रूर होगा।

.......नये वर्ष की हार्दिक शुभकामना।


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