क्लेपटोमेनिया का सहज शिकार ~ साहित्यिक पुस्तकें !!


प्रायः हमलोग ख़बरों में या आस-पड़ोस के यहाँ हुए चोरी के बारे में पढ़ते और सुनते या स्वयं ही भोगते भी हैं। यदि चोरी की घटना हमारे किसी बहुत नजदीकी पड़ोसी, रिश्तेदार के यहाँ घटती है तो हम अवश्य ही उसके दुःख में शामिल होने उसके घर जाते हैं और अपने-अपने सामर्थ्य भर चोर को अच्छे-अच्छे शब्दों से नवाजते हुए अपनी संवेदना प्रकट करते हैं और कुछ तो इतने करीबी होते हैं कि वह थाने तक चलते हैं सुचना दर्ज कराने। पर आज मैं उन चोरों के बारे में लिखने जा रहा हूँ जिन पर हमारी शक की घडी बिलकुल पुख्ता होती है, फिर भी हम इस चोरी की कोई सुचना थाने में दर्ज नहीं कराते हैं।
          लगभग 50 वर्ष की उम्र होने तक में, मैंने आज तक एक भी इस तरह की चोरी की घटना की इत्तिला थाने में नहीं होते देखी या सुनी है और न ही कोई संवेदना जताने ही आता है। जी.... आप सही दिशा में सोच रहे हैं मैं किसी सामान्य वस्तुओं की चोरी करने वाले चोर की नहीं बल्कि बौद्धिक रूप से सक्षम उन चोरों की बात कर रहा हूँ जो मौका देखते ही बेशर्मी से आपकी किसी पुस्तक पार हाँथ साफ़ कर देते हैं।
          चार्वाक की तरह की सोच रखने वाले कुछ दार्शनिक पुस्तक चोरी को चोरी नहीं मानते हैं। उनके सोचने का एक बिलकुल ही भिन्न नजरिया है कि चूँकि पुस्तक कोई वस्तु नहीं है अतः इस चोरी से उसको कोई निजी लाभ नहीं होता है, बल्कि उसकी बौद्धिक क्षमता बढती है एवं उसके ज्ञान की वृद्धि होती है। इस विचारधारा को मानाने वाले दार्शनिकों का एकमत सिद्धांत है कि चोरी पुस्तक की नहीं, साहित्य की होती है। परन्तु मैं पुस्तक को वस्तु मानता हूँ।
व्यक्तिगत तौर पर मैं पुस्तक को वस्तु की श्रंखला में ही नहीं रखता हूँ बल्कि इसे एक निजी संपदा भी मानता हूँ जिसे हम विरासत में अगली पीढ़ी को गौरवपूर्ण सौंप कर जाते हैं। मेरे विचार से पुस्तक की तीन श्रेणियां होती हैं। पहली श्रेणी में पुस्तक ज्ञान की वस्तु है, दूसरी श्रेणी में पुस्तक सजावट की वस्तु है और तीसरी श्रेणी में पुस्तक कबाड़ की वस्तु है। आजकल पुस्तकों की दूसरी और तीसरी श्रेणी का ही अधिक प्रचलन है, खासकर हिंदी साहित्य। हिंदी के उत्थान के लिए सरकार की विभिन्न इकाइयों द्वारा करोड़ों रुपए की पुस्तकें शिक्षण संस्थानों, पुस्तकालयों में प्रतिवर्ष भेजी जाती है उनमें अधिकांश पुस्तकें तीसरे श्रेणी की होती है। सच्चाई यही है कि उन पर पड़ी धुल की मोटी परतें.......खुद ही बहुत कुछ बयान कर जाती हैं।  
          बचपन में नैतिक शिक्षा की पुस्तकों से सिखा था कि जब किसी की कोई वस्तु उसकी जानकारी के बगैर लेकर कोई अपनी वस्तु बना ले तो वह चोरी कहलाती है।
          मेरे विचार से पुस्तक एक वस्तु है पर यह अन्य वस्तुओं से अलग प्रक्रति की वस्तु है। अतः इसकी चोरी करने वाला चोर भी भिन्न प्रवृति का होता है इसलिए नैतिक शिक्षा वाली परिभाषा पुस्तक चोरी पर हुबहू लागु नहीं होती है।
          किसी की किताबों को लेकर महीनों-वर्षों चुपचाप अपने कब्जे में रखना और पूछने पर भूल गया......, अनसुना सा व्यवहार करना...... लौटा दिया.....या फिर उसकी चर्चा ही नहीं छेड़ना........ भी पुस्तक चोरी की श्रेणी में आता है। पुस्तकों की चोरी की भी दो श्रेणी होती है स्थाई चोरी और अस्थायी चोरी। स्थाई चोरी में पुस्तकों के लौट आने की संभावना बिल्कुल नहीं होती है और अस्थाई चोरी की पुस्तकें धूमकेतु की तरह अचानक प्रकट हो जाती है.....जब अचानक ही आप कभी उस परिचित चोर के घर चले गए और पुस्तक 'सजावट की वस्तु' की तरह ताखा(बुक सेल्फ) पर से आपको चिढाती हुयी....सकुचाती....मुस्कुराती हुई दिख जाती है। यदि आपने उस पुस्तक की चर्चा छेड़ दी, तो बहुत ही बेहियाई से उत्तर मिलता है कि...... बेटा/बेटी दिल्ली से लौट रहा था तो मेरे लिए लेता आया था.......बहुत ही अच्छी पुस्तक है लेकिन जरा उबाऊ है।
          इधर मैं अपनी पुस्तकों को श्रंखलाबद्ध करने एवं बरसात के मौसम के नमी से बचाव हेतु सभी पुस्तकों को अपने बुक सेल्फ से हटाया, तो मन में एक ख्याल आया क्यूँ न एक बार बकायेदारों से अपनी पुस्तकों की तगादा(दरअसल भीख की तरह मांगना पड़ता है अब) की जाये। एक मित्र को फोन किया, पुस्तक के सन्दर्भ में तो उसने बड़े ही मायूसी से उत्तर दिया...... देख न भाई.....लगता है कोई उठा कर ले गया है मेरे यहाँ से....पता करता हूँ। दुसरे को फोन किया मित्र मेरी तमस’, और वयं रक्षामी लौटा दो बहुत दिनों से रखे हुए हो—टका सा उत्तर मिला- अरे उसी दिन न शाम में आये थे तो दोनों किताब लेते आये थे.... याद करो न लौन में बैठे हुए थे तुम और वो (एक अमुक नाम)..... हो सकता है वह ले गया हो......अब तुम बुढा गये .......बादाम खाओ। तीसरे को फोन लगाया......अरे पिंजर लौटाओगे.......उत्तर मिला अमृता ले गयी अपने पास। हालाँकि दो सुधिपाठकों ने पुस्तक लौटाई बेहियाई से। एक ने पुरे पुस्तक पर इतना न चेचरी पाड़ दिया है( अंडरलाइन) जैसे कि वह रोमिला थापर की कोई इतिहास की पुस्तक हो.... और पढने वाला सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाला, दुसरे की पुस्तक की स्थिति इतनी जर्जर ---- पुस्तक के कवर पर चाय के कप के असंख्य निशान के साथ ही कई मोबाईल नंबर अपनी गौरवशाली उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। एक पडोसी मित्र के यहाँ खुद चल कर गया, साथ ही एक छोटी सी नोटपैड जिसमे उसे पुस्तक देने की तारीख भी अंकित है...... नोटपैड देखते ही भड़क गया..... बोला तुम इ बनियौती कब से करने लगे.....हिसाब-किताब की तरह इसमें लिखे हुए हो.....फुर्सत मिलेगा तो खोजूंगा। एक मित्र हैं जिन्हें मैंने एक पुस्तक दिया कि आप जा रहे हैं तो लेते जाइये और अमुक व्यक्ति को दे दीजियेगा....... एक वर्षों से वह खुद ही पढ़ रहे हैं। पुस्तक भी ऐसे पाठकों से पनाह ही मांग लेती होगी। मैंने तत्क्षण मन में निर्णय लिया, शेष सभी पुस्तकों को ले जाने वालों को ही पुस्तक.....भीख में दान किया
          ऐसे पाठक बड़े ही आदर, सम्मान और प्रेम से उल्लू बनाकर किसी न किसी बहाने बहुमूल्य पुस्तकें ले जाते हैं, यह कहते हुए बस पढ़ कर तुरंत इसी स्थिति में लौटा देंगे मगर आज तक किसी पुस्तक चोर ने ईमानदारी का परिचय नहीं दिया है। पुस्तक चोरों से हर कोई परेशान है। खासकर स्वाध्यायी इंसान जो पुस्तकें खरीद कर पढ़ते हैं। हर बार पुस्तक सिर्फ पढने के लिए ही नहीं.......रेफरेंस के लिए भी उसकी आवश्यकता पड़ती है....खासकर उन पाठकों के लिए ... जिन्हें लिखने का शौख हो या उस पेशे में हो।
           हममें से बहुत से लोग ऎसे हैं जिनके वहां से ये पुस्तक चोर पुस्तकें चुरा ले गए और उसके बाद यह भूल गए कि ये पुस्तकें उनकी अपनी नहीं, उनके पुरखों की खरीदी हुई नहीं, बल्कि औरों की हैं जिन्हें ईमानदारी से लौटा देनी चाहिए
           कई बार हम भी पुस्तकें देकर भूल जाते हैं, इसका नाजायज फायदा पुस्तक ले जाने वाले उठा लेते हैं। इनमें से अधिकांश लोगों के लिए इन पुस्तकों का कोई उपयोग नहीं होता मगर अपने घर में शो केस या आलमारी में सजा कर रखने का फोबिया इतना जबर्दस्त होता है कि चाहे जहां से मौका मिले, पुस्तकें मांग या चुरा कर ले आते हैं और अपने घरेलू कबाड़ में नज़रबंद कर देते हैं
           नजरबंद होने के बाद इन पुस्तकों का आवागमन कभी नहीं हो पाता। यह तभी हो पाता है जब इन पुस्तक चोरों का राम-नाम-सत्य हो जाए और दूसरों के कंधों पर सवार होकर ये हमेशा के लिए घर छोड़ दें। ये पुस्तकें भी इन लोगों की कैद से मुक्ति पाने के लिए यही प्रार्थना करती रहती हैं कि कब इनका गरुड़ पुराण पढ़ा जाए व ‘अच्युतम् केशवम...’ बोला जाए और वे कबाड़ के माध्यम से’ - कबाड़ से बाहर निकल कर जमाने की हवा खाएं
          बेवजह, दूसरों की पुस्तकें अपने पास न रखें,  उन्हें यथासमय लौटा दें क्यूंकि वह पुस्तक उनके लिए शायद किसी रेफरेंस में आवश्यक हो......न भी तो वह उनकी निजी सम्पदा है, जिसे उसने अपने पैसे से ख़रीदा है अपने लिए......आपके लिए नहीं। कोई भी स्वाध्यायी इंसान पुस्तकों को खरीद कर पढ़ता हैं....मांगकर नहीं। खरीदकर आप पुस्तक पढेंगें.......तो आप पुस्तक को पढेंगें भी.......।

ऐसे ही एक क्लेपटोमेनिया से पीड़ित एक व्यक्ति ने जो पटना स्थित मेरे रूम में मेरे साथ रहा करते थे, ने मेरे हजारों रूपये के F-80 35mm SLR कैमरा को महज कुछ हजार रूपये में बेच दिया शराब के खर्च के लिए, जो आज निजी क्षेत्र के एक उपक्रम में अधिकारी हैं पवित्र पुस्तक कही जाने वाली बाइबिल दुनिया की सबसे ज्यादा बेचे जाने वाली और सबसे ज्यादा चोरी की जाने वाली पुस्तक है




           


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