स्त्री-पुरुष मित्रता ~ आग से नाता नारी से रिश्ता काहे मन समझ न पाया “ !!
हर रिश्ते को कितनी आसानी से अपनी-अपनी सोच के अनुसार तोल देते हैं लोग। आज मैं बात कर रहा हूँ एक बेहद खूबसूरत रिश्ते की; जिसकी गर्माहट हर किसी को सर्वाधिक भाती है जो रिश्ता हम स्वयं बनाते हैं हमें किसी वंश परम्परा के तहत नहीं मिलता, हर तरह के भेदभाव से परे ‘दोस्ती’ का रिश्ता। सबसे साफ़-सबसे पाक हर बनावट से दूर, जाति धर्म से जिसका कोई सरोकार नहीं,अमीरी-गरीबी जिसे कभी छू न सकी फिर इस रिश्ते को सदा लिंग भेदभाव ने क्यूँ जकड़ दिया, दोस्त सिर्फ दोस्त होता है उसके समक्ष ये कहीं नहीं ठहरता की दोस्त सामान लिंग है या विपरीत। समाज की सोच में परिवर्तन हुआ मगर आज भी अधिकाँश लोग बल्कि युवा साक्षर भी कई बार दोस्ती में इस फर्क को ज़ाहिर करते हैं। एक लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते यह बात पुरानी हो चुकी है,सब जानते हैं फिर भी यदि दोस्ती पुरुष और महिला/लड़का-लड़की के मध्य है तो उस पर नज़र सदा पैनी ही रखी जाती है। यदि एक लड़की/स्त्री दूसरी लड़की/स्त्री को लव यू कहे या कि हग्स दे/कहे तो कोई बात नहीं, पर यदि यही शब्द वो लड़के दोस्त/पुरुष मित्र से कह दे तो न ही उस पर शक की सुइयां घुमा दी जाती हैं बल्कि उसे दोषी ही मान लिया जाता है और न जाने क्या-क्या उपाधियों से नवाज़ दिया जाता है। क्या पुरुष-स्त्री के मध्य दोस्ती का रिश्ता पाक नहीं होता, बल्कि सबसे ऊपर ईश्वर सा सच्चा और पवित्र होता है ये रिश्ता फिर भी सदा शक के घेरे में कसा रहता है। यदि दोस्त पर प्यार आये तो भी ज़ाहिर न करो,यदि उसे गले लगाने का दिल करे तो भी मत लगाओ क्यूंकि वो सामान लिंग का नहीं है आप ने ऐसा किया तो गज़ब हो जायेगा। भला दोस्ती के रिश्ते में ये बंधन कैसे? और ये गलत कैसे? सिर्फ इसलिए क्यूंकि रिश्ता भले ही दोस्ती का है पर लिंग भेद है ? दोस्त-दोस्त, भाई-भाई,जान हाज़िर, तन-मन सब हाज़िर किन्तु लड़का-लड़की/पुरुष-स्त्री आपस में कह दें तो गलत,अपराध….।
हर रिश्ते की अपनी जगह होती है अपना वजूद होता है जो दोस्ती को समझते हैं वो इनसे परे होते हैं और उनकी भावनाएं उतनी ही पाक होती हैं जितनी किसी छोटे बच्चे को देख कर उसे प्यार करना, उसके आंसू देख कर, दुलार करना, गले लगा लेना फिर इन पाक भावनाओं को भी क्यूँ गुज़ारना पड़ता है सदा शक के घेरे से जब भी आती हैं ये अपने दोस्त पर….बदलाव आया है पर क्या हम स्वयं को बदलने की कोशिश कर रहे हैं ? जहाँ भाई-बहन बोल दिया वहां सब उचित -जायज़, ऐसा क्यूँ? दोस्ती भी उतनी ही पाक है फिर क्यूँ न दोस्त बने रहें,उसमे कहाँ कम पवित्रता हो जाती है? सोच ही नहीं बदल पाते हैं हम। यदि भाई-बहन बन कर लिख/कह दिया लव यू ,हग्स,मिस यू ….सब जायज़ करार दिया गया,अगर दोस्त ने लिख/कह दिया सीधा इलज़ाम से नवाज़ दिया। कब छूटेंगे ये तराजू कब टूटेंगे इनके बाँट और कितना वक्त लगेगा? बस भी करो अब तौलना दोस्ती के रिश्ते को……..
इबादत है ये न यूँ करो बदनाम,
हाँ दोस्त हैं हम, न दो कोई और नाम,
माँ-बेटे,भाई-बहन से नहीं हैं हम, कम
फिर क्यूँ सदा इल्ज़ामों का बोझ ढोएँ, हम
अब बस भी करो दो थोड़ा ध्यान खुद पर
दोस्ती नहीं देखती रिश्तों को मरोड़ कर….।
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