भोगतंत्र और दादातंत्र के बीच पिसता आज का मजदूर वर्ग !!


मई दिवस जिस उल्लास और जोशोखरोश के साथ मनाया जाता था वह जोशोखरोश गायब है। मजदूर वर्ग गंभीर संकट में है, यह संकट बहुआयामी है। नोटबंदी के बाद से पनपे आर्थिक संकट में पूंजीपतियों ने किसी तरह से अपने को उबारने के प्रयास में सफल तो रहे परन्तु इसका समुचित हिस्सा या लाभांश मजदूरों तक नहीं पहुँचा है।
          इस आर्थिक समस्या से पूंजीपति वर्ग को कम और मजदूरों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। इस संकट की मार से मजदूरों को बचाने के लिए सरकार ने कोई भी विकासमूलक या मजदूरों की मदद करने वाला कोई भी ठोस या जमीनी कदम नहीं उठाया। आर्थिक तंगी के मार के बावजूद पूंजीपति वर्ग के मुनाफों में कमी नहीं आई जबकि मजदूरों की कंगाली कई गुना बढ़ी है। बेकारी कई गुना बढ़ी है। हजारों कारखाने/प्रतिष्ठान बंद हो गए हैं। मंहगाई आसमान छूने लगी। इसके बावजूद हमारी केन्द्र सरकार ने मजदूरों की रक्षा के लिए, आर्थिक मदद के लिए एक भी कदम नहीं उठाया।
          सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से सरकारी मजदूरों और कर्मचारियों का एक तबका खुश था कि नया वेतनमान आया, लेकिन मंहगाई की छलांग ने नए वेतनमान की खुशी को गायब कर दिया है। जिस गति से सरकारी कर्मचारियों के वेतन बढ़े हैं उसकी तुलना में निजी क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की वेतन सिर्फ कम ही नहीं हुई बल्कि नियमित रोजगार की भी संभावना क्षीण हुई है। 
          आज की सच्चाई यह है कि केन्द्र सरकार सैन्य और अर्द्ध सैन्यबलों पर जितना खर्च कर रही है उतना विकास पर नहीं। मसलन् पकिस्तान और चीन जैसे देशों से सामरिक समानता के लिए आज सैन्य एवं अर्द्ध सैन्य बलों के आपरेशन पर जितना पैसा खर्च किया जा रहा है, हथियार खरीदने और अस्त्र-शस्त्र तैयार करने पर जितना खर्च किया जा रहा है उतना पैसा गरीबों तक खाद्य सामग्री, स्कूल बनाने, अस्पताल खोलने पर खर्च नहीं हो रहा है।
          हमारे देश में लोकतंत्र है लेकिन समग्रता में वृहद दृष्टिकोण से देखें तो राज्य की लोकतंत्र वार स्टेटकी इमेज दिखाई दे रही है। यह बड़ी भयानक छवि है। उत्तर-पूर्व में सेना घरेलू मोर्चा संभाले है। कश्मीर में सेना घरेलू मोर्चा संभाले है। नक्सलवाद प्रभावित 136 जिलों में हजारों अर्द्ध सैन्यबल घरेलू मोर्चा संभाले हैं, ऐसी अवस्था में सोचें कि देश में कितने कम इलाके हैं जहां लोकतंत्र की हवा बह रही है? जो इलाके युद्धतंत्र और दादातंत्र से बचे हैं वहां भोगतंत्र ने कब्जा जमा लिया है।
          दादातंत्र(कैडर) के कारण पश्चिम बंगाल जैसा सुंदर मजदूर राज्य नष्ट हो चुका है। दादातंत्र ने मजदूरवर्ग को सबसे ज्यादा क्षतिग्रस्त किया है। दादातंत्र मूलतः युद्ध तंत्रका जुड़वां भाई है। मजदूरवर्ग के लिए ये दोनों ही फिनोमिना नुकसानदेह हैं। इससे आम मजदूर की हालत खराब हुई है। धर्मनिरपेक्ष-लोकतांत्रिक राष्ट्र गायब हो गया है। अब तो धर्मनिरपेक्षता-लोकतंत्र किताबों के पन्नों में ही दिखते हैं बाहर तो दादातंत्र ,युद्धतंत्र और भोगतंत्र के ही दर्शन होते हैं।
अब साधारण आदमी और खासकर मजदूर, राजनीति में भाग लेना पसंद नहीं करता। अपराधीकरण बढ़ा है। मजदूर वर्ग में वर्गीय चेतना का ह्रास हुआ है और नग्न अर्थवाद और भोगवाद बढ़ा है। मजदूरों में संस्कृति की बजाय मास कल्चर का प्रभाव बढ़ा है। मार्क्सवादी विश्व दृष्टिकोण की बजाय स्थानीयता वाद बढ़ा है।
          श्रम और श्रमिक वर्ग के प्रति घृणा में वृद्धि हुई है। यह सब इस लिए हुआ क्योंकि मजदूर नेताओं ने मजदूर वर्ग को दलीय चुनावी राजनीति का गुलाम बना दिया, दलीय चुनावी हितों को मजदूर वर्ग के हितों की तुलना में तरजीह दी। फलतः आम वातावरण से लोकतंत्र और मजदूर वर्ग गायब हो गया है। काश, बुद्धिजीवी वर्ग इस वर्ग की परेशानियों एवं जटिलताओं को समझ पाते।
"Proletarier aller Länder, vereinigt euch"- 
             karl Marx & Friedrich Engels(1848)
English Version ~  "Proletariat of all countries , unite."
Popularised Version~ " Workers of the world, unite."

Comments

  1. निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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