'वरदान' जब आसुरी हो जाए, तब वह "होलिका" बन जल जाती है !!
सम्राट हिरण्यकष्यप की बहन को आग में न जलने का वरदान
था अथवा हम कह सकते हैं, उसके पास कोई ऐसी वैज्ञानिक तकनीक
थी, जिसे प्रयोग में लाकर वह अग्नि में प्रवेश करने के बावजूद
नहीं जलती थी। लेकिन जब वह अपने भतीजे प्रहलाद का अंत करने की क्रूर मानसिकता के
साथ उसे गोद में लेकर प्रज्वलित अग्नि में प्रविष्ट हुई तो प्रहलाद तो बच गए,
किंतु होलिका जल कर मर गई। उसे मिला वरदान काम नहीं आया। क्योंकि वह असत्य
और अनाचार की आसुरी शक्ति में बदल गई थी। वह अहंकारी भाई के दुराचारों में भागीदार
हो गई थी। इस लिहाज से कोई स्त्री नहीं बल्कि दुष्ट और दानवी प्रवृत्तियों का साथ
देने वाली एक बुराई जलकर खाक हुई थी। लेकिन इस बुराई का नाश तब हुआ, जब
नैतिक साहस का परिचय देते हुए एक अबोध बालक अन्याय और उत्पीड़न के विरोध में
दृढ़ता से खड़ा हुआ।
ये
प्राचीन कथा हमें राक्षसी ताकतों से लड़ने की प्रेरणा देती हैं। हालांकि आज प्रतीक
बदल गए हैं। मानदंड बदल गए हैं। पूंजीवादी शोषण का चक्र भूमण्डलीय हो गया है। आज
समाज में सत्ता की कमान संभालने वाले संपत्ति और प्राकृतिक संपदा का अमर्यादित
केंद्रीयकरण करने में लगे हैं। यह पक्षपात केवल राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्रों तक ही
सीमित नहीं रह गया है, इसका विस्तार धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी
है।
जब होलिका सत्य, न्याय और
नैतिक बल के प्रतीक प्रहलाद को भस्मीभूत करने के लिए आगे आई तो वह खुद जलकर राख हो
गई। उसकी वरदान रुपी तकनीक उसके काम नहीं आई। क्योंकि उसने वरदान की पवित्रता को
नष्ट किया था। वह शासक दल के शोषण चक्र में साझीदार हो गई थी।
चलते-चलते~
बिहार में जली थी होलिका, यहां खेली
जाती है राख से होली।
शायद
बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का दहन बिहार की धरती पर
हुआ था। जनश्रुति के मुताबिक तभी से प्रतिवर्ष होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत
हुई।
पौराणिक
कथाओं के अनुसार, सिकलीगढ़ में हिरण्यकश्यप का किला था। यहीं भक्त
प्रह्लाद की रक्षा के लिए एक खंभे से भगवान नरसिंह ने अवतार लिया था। भगवान नरसिंह
के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी यहां मौजूद है। कहा जाता है कि इसे
कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया। यह स्तंभ झुक तो गया, पर टूटा
नहीं।
पूर्णिया
जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर सिकलीगढ़ के
बुजुर्गों का कहना है कि प्राचीन काल में 400 एकड़ के
दायरे में कई टीले थे, जो अब एक सौ एकड़ में सिमटकर रह गए हैं। पिछले दिनों
इन टीलों की खुदाई में कई पुरातन वस्तुएं निकली थीं।
धार्मिक
पत्रिका 'कल्याण' के 31वें वर्ष
के विशेषांक में भी सिकलीगढ़ का खास उल्लेख करते हुए इसे नरसिंह भगवान का अवतार
स्थल बताया गया था।
बनमनखी अनुमंडल में प्रमाणिकता के लिए कई साक्ष्य हैं।
यहाँ हिरन नामक नदी बहती है। ग्रामीणों की मान्यता है कि कुछ वर्षो पहले तक नरसिंह
स्तंभ में एक सुराख हुआ करता था, जिसमें पत्थर डालने से वह हिरन नदी
में पहुंच जाता था। इसी भूखंड पर भीमेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है। मान्यताओं
के मुताबिक हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष बराह क्षेत्र का राजा था जो अब नेपाल
में पड़ता है।
यहां आज भी राख और मिट्टी से होली खेली जाती है।
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