आपणों राजस्थान~

राजकुमारी रत्नावती~ स्वयं भूखे रहकर भी अलाउद्दीन खिलजी के सैनिकों के लिए अन्नपूर्णा बनी !!
सैकड़ों वर्षों तक हिन्दू राजाओं को एक ओर जहां विदेशी आक्रांताओं से लड़ना पड़ा, वहीं उन्हें अपने पड़ोसी राजाओं से मिल रही चुनौती का सामना भी करना पड़ा। मध्यकाल और अंग्रेज काल में कई राजाओं और रानियों को बलिदान देना पड़ा था। ऐसे कई मौके आए, जब राज्य की बागडोर रानियों को संभालना पड़ी और वे हंसते-हंसते देश पर अपनी जान न्योछावर कर गईं।
राजस्थान के राज परिवार सदैव अपने वैभवशाली साम्राज्य एवं जीवनशैली तथा खुबसूरत महारानियों के चलते अभिसप्त रहा है क्यूंकि इर्ष्यावश पडोसी राज्य के लोग एक सुनियोजित कुटनीतिक साजिश के तहत मुगलों या विदेशी आक्रान्ताओं तक इस बात को फैला दिया करते थे कि महारानी या युवरानी बहुत ही खुबसूरत हैं जिसके चलते विदेशी आक्रान्ता धन एवं सुन्दर महिलाओं के लालच में लूटपाट मचाने के लिए राजपूत राज्यों पर आक्रमण कर दिया करते थे उन्ही में से एक थी जैसलमेर के नरेश महारावल रतनसिंह की 18वर्षीय खुबसूरत युवरानी रत्नावती।
रत्नावती बहुत ही खुबसूरत महिला थी एवं कुशल घुड़सवार जो प्रायः अपने दांतों से घोड़े की लगाम को संभालते हुए दोनों ही हांथों से तलवार चलने में सिद्धस्त थी एवं रत्नसिंह की अनुपस्थिति में अपने दुर्ग की एवं अपने राज्य की सुरक्षा की जिम्मेवारी खुद बुध्हिमत्ता पूर्वक संभालती थीं।
एक बार जैसलमेर नरेश महारावल रत्नसिंह ने जैसलमेर किले की रक्षा अपनी पुत्री रत्नावती को सौंप कर किसी कार्य से अपने राज्य से बाहर गए हुए थे। इसी दौरान दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन की सेना ने किले को घेर लिया जिसका सेनापति मलिक काफूर था। किले के चारों ओर मुगल सेना ने घेरा डाल लिया किंतु राजकुमारी रत्नावती इससे घबराईं नहीं और सैनिक वेश में घोड़े पर बैठी किले के बुर्जों व अन्य स्थानों पर घूम-घूमकर सेना का संचालन करती रहीं।
अलाउद्दीन का एक गुप्तचर जिसने मौका मिलते ही दुर्ग के एक प्रहरी को अपने कब्जे में ले लिया और उसे स्वर्ण अशर्फियों का लालच दिखा कर अपने पक्ष में कर लिया। वह दुर्ग प्रहरी युवरानी रत्नावली को सारी घटनाओं से अवगत करा दिया एवं कुछ स्वर्ण अशर्फी जो उसे उस गुप्त्चर से प्राप्त हुए थे, सौंप दिया। रत्नावती ने उस दुर्ग प्रहरी को कुछ समझाते हुए निर्देश दिया और कहा तुम निर्धारित समय पर उन सैनिकों को दुर्ग के भीतर घुसने देने में सहयोग करो क्यूंकि एक राजपूत का वचन खाली नहीं जाना चाहिए। एक निश्चित योजना के तहत अलाउद्दीन का सेनापति मालिक काफूर अपने 100 सैनिकों के साथ रात के अँधेरे में जैसलमेर के भानगढ़ किले में प्रवेश करा दिया गया लेकिन वे सभी उसी वक्त रत्नावती के सोची समझी चाल में फंस गए और अतत: सेनापति काफूर सहित 100 सैनिकों को बंधक बना लिया गया।
सेनापति के पकड़े जाने पर मुगल सेना ने किले को 9 महीने तक घेरे रखा। किले के भीतर का अन्न समाप्त होने लगा। राजपूत सैनिक उपवास करने लगे। रत्नावती भूख से दुर्बल होकर पीली पड़ गईं किंतु ऐसे संकट में भी राजकुमारी रत्नावती द्वारा राजधर्म का पालन करते हुए अपने सैनिकों को रोज एक मुट्ठी और मुगल बंदियों को दो मुट्ठी अन्न रोज दिया जाता रहा।
अलाउद्दीन को जब पता लगा कि जैसलमेर किले में सेनापति कैद है और किले को जीतने की आशा नहीं है तो उसने महारावल रत्नसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा। राजकुमारी ने एक दिन देखा कि मुगल सेना अपने तम्बू-डेरे उखाड़ रही है। मलिक काफूर जब किले से छोड़ा गया तो उसने कहा- 'यह राजकुमारी साधारण लड़की नहीं, यह तो वीरांगना के साथ देवी भी हैं। इन्होंने खुद भूखी रहकर हम लोगों का पालन किया है। ये पूजा करने योग्य आदरणीय हैं।'
धन्य है भारत की मिट्टी जहाँ की क्षत्राणीयाँ, जिन्होंने विषम परिस्थितियों में भी उद्धम, साहस, धैर्य, बुद्धि, पराक्रम और राजधर्म का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये।

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