सुभद्रा कुमारी चौहान(16अगस्त 1904 ~ 15फ़रवरी 1948) !!
खूब लड़ी मरदानी.....,
वो तो झाँसी वाली रानी थी !!
सन 1857 के क्रांति की बात चले तो सबसे पहले यदि किसी की याद आती है तो वह हैं झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई और उनके नाम के साथ ही किवदंती बन गयी सुभद्रा कुमारी चौहान जिनकी कविता की चार पंक्तियाँ- “चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,/बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,/खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी” हिन्दी के सर्वाधिक पढ़े व गाये गये गीतों में से एक है। यह गीत स्वयं में गीत से अधिक वीर गाथा की एक सच्ची कहानी ही है। ‘झाँसी की रानी’ महाजीवन की महागाथा है। कुछ पंक्तियों की इस कविता में उन्होंने एक विराट जीवन का महाकाव्य ही लिख दिया है। जिसमें कवयित्री ने रानी लक्ष्मीबाई के जीवन के सारे घटना क्रम को एक पद्यात्मक कहानी के रूप में इस सजीवता से प्रस्तुत किया है कि पाठक या श्रोता वीर रस से भाव विभोर हो उठता है ! यह रचना उनकी पहचान बन गई है। भारतीय इतिहास में यह शौर्यगीत सदा के लिए स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया है।
उनका जन्म 1904 में इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में रामनाथसिंह के जमींदार परिवार में हुआ था।15 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह खंडवा के वकील लक्ष्मण सिंह चौहान से हो गया था। पति पत्नी दोनो ही राष्ट्रीय विचारधारा के होने के कारण महात्मा गांधीजी से प्रभावित होकर, अपना घरबार त्यागकर स्वतंत्रता के आंदोलन मे कुद पड़े। स्त्रियाँ सुभद्रा की बातें बड़े ध्यान से सुनती थीं। 1920-21 में मध्यवर्ग की बहुओं में प्रगतिशील मूल्यों का संचार करने में सुभद्रा ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी और अनवरत जेल यात्रा के बावजूद उनके तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए- ‘बिखरे मोती (1932), उन्मादिनी (1934), सीधे-सादे चित्र (1947)।
वो तो झाँसी वाली रानी थी !!
सन 1857 के क्रांति की बात चले तो सबसे पहले यदि किसी की याद आती है तो वह हैं झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई और उनके नाम के साथ ही किवदंती बन गयी सुभद्रा कुमारी चौहान जिनकी कविता की चार पंक्तियाँ- “चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,/बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,/खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी” हिन्दी के सर्वाधिक पढ़े व गाये गये गीतों में से एक है। यह गीत स्वयं में गीत से अधिक वीर गाथा की एक सच्ची कहानी ही है। ‘झाँसी की रानी’ महाजीवन की महागाथा है। कुछ पंक्तियों की इस कविता में उन्होंने एक विराट जीवन का महाकाव्य ही लिख दिया है। जिसमें कवयित्री ने रानी लक्ष्मीबाई के जीवन के सारे घटना क्रम को एक पद्यात्मक कहानी के रूप में इस सजीवता से प्रस्तुत किया है कि पाठक या श्रोता वीर रस से भाव विभोर हो उठता है ! यह रचना उनकी पहचान बन गई है। भारतीय इतिहास में यह शौर्यगीत सदा के लिए स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया है।
उनका जन्म 1904 में इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में रामनाथसिंह के जमींदार परिवार में हुआ था।15 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह खंडवा के वकील लक्ष्मण सिंह चौहान से हो गया था। पति पत्नी दोनो ही राष्ट्रीय विचारधारा के होने के कारण महात्मा गांधीजी से प्रभावित होकर, अपना घरबार त्यागकर स्वतंत्रता के आंदोलन मे कुद पड़े। स्त्रियाँ सुभद्रा की बातें बड़े ध्यान से सुनती थीं। 1920-21 में मध्यवर्ग की बहुओं में प्रगतिशील मूल्यों का संचार करने में सुभद्रा ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी और अनवरत जेल यात्रा के बावजूद उनके तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए- ‘बिखरे मोती (1932), उन्मादिनी (1934), सीधे-सादे चित्र (1947)।
बिखरे मोती उनका पहला कहानी संग्रह है , इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंझलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुती, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल 15 एक दूसरे से बढ़कर कहानियां हैं। इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है। अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं।
कार दुर्घटना में सुभद्रा कुमारी चौहान जी का देहांत 15 फरवरी 1948 को 44 वर्ष की आयु में ही हो गया। उनकी असामयिक मृत्यु पर माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा कि "......... सुभद्रा जी का जाना ऐसा मालूम होता है मानो झांसी वाली रानी की गायिका, झांसी की रानी से कहने गई हो कि लो, फिरंगी खदेड़ दिया गया और मातृभूमि आज़ाद हो गई।'
कार दुर्घटना में सुभद्रा कुमारी चौहान जी का देहांत 15 फरवरी 1948 को 44 वर्ष की आयु में ही हो गया। उनकी असामयिक मृत्यु पर माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा कि "......... सुभद्रा जी का जाना ऐसा मालूम होता है मानो झांसी वाली रानी की गायिका, झांसी की रानी से कहने गई हो कि लो, फिरंगी खदेड़ दिया गया और मातृभूमि आज़ाद हो गई।'
हिन्दी साहित्य ही नहीं अपितु सारा देश सुभद्रा जी को कभी नहीं भूल सकता। उनका देशप्रेम और राष्ट्रवाद हम सब के लिए ऊर्जा बन गयी।
इस विराट व्यक्तित्व को मेरा शत शत प्रणाम।
इस विराट व्यक्तित्व को मेरा शत शत प्रणाम।
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