श्रीधर पाठक~ साहित्य की मुख्यधारा से विस्मृत हस्ताक्षर!!

श्रीधर पाठक ~ 11जनवरी 1860 - 13सितंबर 1928 

स्वछंदतावाद का प्रवर्तक कवि श्रीधर पाठक को खड़ी बोली के प्रारंभिक कवियों में से एक माना जाता हैं। श्रीधर पाठक को हिंदी के अलावा संस्कृत और अंग्रेजी भाषा पर भी सामान रूप से अधिकार था। इन्होने गोल्डस्मिथ के तीन काव्य ग्रंथों का अनुवाद भी किया। खड़ी बोली के साथ साथ इन्होने ब्रजभाषा में भी लिखा है। इनकी कविताओं में प्रकृति और देशप्रेम के दर्शन विशेष रूप से होते हैं।
भारत-गीत, गोपिका-गीत, काश्मीर सुषमा, मनोविनोद इनके प्रशिद्ध काव्य ग्रन्थ हैं।

सीखो
फूलों से नित हँसना सीखो
भौंरों से नित गाना।
तरु की झुकी डालियों से
नित सीखो शीश नवाना।
सूरज की किरणों से सीखो,
जागना और जगाना।
लता और पेड़ों से सीखो,
सबको गले लगाना।

काश्मीर सुषमा
प्रकृति यहाँ एकांत बैठी निज रूप सँवारती।
पल-पल पलटती भेस छनकि छवि छीन-छीन धारति।।
बिमल अम्बु-सर-मुकुरन महँ मुख-बिंब निहारति।
अपनी छबी पै मोहि आप ही तन-मन बारति।।
बिहरति विविध विलास भरी जोबन के मद सनी।
ललकति, किलकति, पुलकती, निखरति, थिरकति बनि ठनि।।

व्योम-बाला
कहीं पै स्वर्गीय कोई बाला
सुमंजु वीणा बजा रही है।
सुरों के संगीत की कैसी मीठी
सुरीली गुंजार आ रही है।
          
सादर विनम्र नमन

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