तेरा धर्म क्या है बे !!

हमारे देश की जनता जब ज्यादा शोर मचने लगी कि "मेरा धर्म तेरे धर्म से ज्यादा सफेद” तो बात स्वर्ग तक  पहुँच गई और भगवान् ने अपने दूत को धरती पर भेज कर जनता से उसका सही धर्म पता करवाने की बात सोची जिसके लिए देवताओं ने अपने दूत को सच उगलवाने और और उसकी सत्यता पता करने वाली यंत्र के साथ भेजने का निश्चय किया। 
                 दूत अभी अभी धरती पर कदम ही रखा था कि उसकी मुलाकात एक वीवीआईपी नेता के काफ़िले  से हो गयी। दूत ने तत्काल एक कड़क पत्रकार का रूप धारण किया और नेता जी के पास पहुंचा और कहा कि मेरे पास झूठ पकड़ने का एक यंत्र है माननीय- आप ये बताएं कि देश में दंगे-फसाद हो रहे हैं, धर्म और कर्मकांड के नाम पर बड़ा बबेला मचा हुआ है तो मेहरबानी करके कृपया यह बताएं कि आपका धर्म क्या है? जनता भी जानना चाहती है इस बात को। 
                  सच ही बताने की कृपा करें क्यूंकि मेरे पास झूठ पकड़ने वाली यंत्र है। वीवीआईपी नेता पसीने पसीने हो गया क्यूंकि जब से वो नेता बना था सच तो निकला ही नहीं था उसकी जुबान से परन्तु झूठ पकड़ने वाले यंत्र के भय से वह सच बोलने लगा और कहा कि “भई, मेरा धर्म तो नेतागिरी है। ऐन-केन-प्रकारेण वोट लेने का धर्म। वोटर मेरा भगवान और इलैक्शन मेरा त्यौहार। चुनाव जीतने के लिए मुझे अपने घर में भी आग लगाना पड़े, यहाँ तक कि जेहाद के नाम पर अपनी खुद की दाईं आँख भी फोड़नी पड़े तो वो मैं करूंगा। इसे ही मेरा धर्म समझ लें।”
                  दूत जरा उलझन में था कई ये कौन सा धर्म आ गया क्यूंकि वीवीआईपी नेता की बातों को यंत्र सही बता रहा था परन्तु इसे इस धर्म की जानकारी ही नहीं थी।
                  दूत फिर एक सिविल सेवा के अधिकारी के पास पंहुचा और बोला कि मैं जनता का असली धर्म पता करने निकला हूँ और मेरे पास झूठ पकड़ने वाली यंत्र है अतः आप सही सही बता दें कि आपका धर्म क्या है? अफसर मन ही मन भुनभुनाता हुआ सोच रहा था कि जो काम मैं बेकार के प्रश्नों को तमाम तरह के फालतू सर्कुलरों के द्वारा लोगों से पूछता हूँ उस तरह के प्रश्न पूछने की हिम्मत इसको कैसे हुई। अफसर मन ही मन तय किया कि इसका तबादला तो ऐसे जगह पर करवाऊंगा कि यह छटपटा-छटपटा कर यह जियेगा पर अभी तो अफसर के समक्ष झूठ पकड़ने वाली यंत्र का खौफ सता रहा था जिसके भय से वह सच बोलने को विवश था और उस बड़े अफसर ने कहा कि “भई, मेरा धर्म तो पैसा कमाना है। भ्रष्टाचार के जरिए रेत में से तेल निकालना। हम सिविल सेवा में आए ही इसलिए हैं। हमें तो ट्रेनिंग के दौरान ही सिखा दिया गया था कि रेत में से तेल कैसे निकालते हैं। सरकारी योजनाओं से, जनता की जेब से पैसा निकालना और उसे सुरक्षित इन्वेस्ट करना ही हमारा धर्म है।”
                    दूत पुनः भ्रम में था ये कौन सा धर्म है और इस बार वह एक बुद्धिजीवी से टीवी पत्रकार के रूप में मिला और उसे भी उस यंत्र का भय दिखा कर पूछा कि उसका धर्म क्या है? तो उस बुद्धिजीवी ने झूठ पकड़ने वाले यंत्र के भय से कहा देखो जी मेरा  कोई धर्म नहीं हैमैं बे धर्मी हूँ। बुद्धिजीवी इस बात को याद कर बहुत दुखी था कि इंसानियत धरती पर से विलुप्त हो गयी है यदि इंसानियत बची रहती तो अवश्य की वही उसका धर्म होता और दुखी हो कर इंसानियत धर्म के नाम पर भाषण देने लगा और दूत इस नए धर्म के बारे में  सुन चकराने लगा और वहां से भाग खड़ा हुआ।
                   इस बार दूत  बुद्धिजीवी से पिंड छुड़ा कर सीधे झुग्गी-झोपड़ी वाले बस्ती में पहुँच गया क्यूंकि उसे किसी ने बता दिया था कि भारत की अधिकांश जनता यहीं रहती है। इस बार दूत ने अपना हुलिया पुलिस इंस्पेक्टर का बनाया और सीधे पहुँच गया उस मलिन बस्ती में। दूत को पता नहीं क्यों एहसास हुआ कि देश की जनता का असली धर्म का पता उसे अवश्य यहाँ जानकारी हो जाएगी। उसने कड़कदार आवाज लगाते हुए एक कृषकाय अधेड़ पुरुष को पकड़ा जिसके गाल पिचके हुए थे, आँखों में विचित्र प्रकार की शुन्यता का भाव भरा हुआ था अस्त-व्यस्त और परेशान सा इंसान लग रहा था। उसने ठेठ पुलिसिया अंदाज में डंडा पटकते हुए उस व्यक्ति को हडकाया और बोला देखो मेरे पास झूठ पकड़ने वाला यन्त्र है अतः तुम सच-सच बताओ कि तेरा धर्म क्या है, बे?
                    पुलिसिया परेशानी की खौफ से वह अधेड़ व्यक्ति लगभग कांपते हुए कहा- हमें आप ही बता दें, हमें क्या पता कि हमारा धर्म क्या है ! माई-बाप-“ रोटी ही कमाने से फुर्सत नहीं मिलती है और जब कभी ज्यादा फुर्सत मिलती है तो दारु सुड़क लेता हूँ। कभी यदि काम नहीं मिला तो पेट पर कपड़ा बाँध कर सो जाता हूँ”.....आप इसे ही हमारा धर्म समझ सकते हैं। 

बस, चुप कर ! 
                       दूत पूरी तरह से भिन्ना चूका था और उसे सच पकड़ में आ गयी थी कि “जनता ऊपर बैठे लोगों के बहकावे में आकर धर्म निबाहने के चक्कर में झूठ-मुठ के बेवजह दंगा फसाद करती है” और वह दूत मन ही मन भुनभुनाते हुए देव लोक की ओर प्रस्थान कर गया।  

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