बिहार ~ जिसने बिब्बी को बेगम अख्तर बना दिया !!

"सुना करो मेरी जां, उनसे उनके अफसाने।
सब अजनबी हैं यहां, कौन किसको पहचाने॥"

सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान ने अपनी पुस्तक ‘Master on Masters‘ में बारह उस्तादों का ज़िक्र किया है जिन्होंने हिंदुस्तान संगीत को क्लासिकल शैली में अपने योगदान से जान डाली है और जो आवाज़ और अंदाज़ की खूबसूरती के दस्तावेज़ हैं। इन बारह नामों में से एक नाम है – बेगम अख्तर का भी, जिनका आज 103वां जन्मदिन है।

आज भी जब कभी भी बेगम अख्तर की जादुई आवाज़ कानों में खनकती है, तो लगता है मानो वक्त ठहर गया है। उनकी दिलकश आवाज़ अब भी फ़िज़ा में गूंजती है। उनकी खनकती आवाज़ की कशिश अपनी ओर खींचती है।

उस्ताद अता मोहम्मद खान की छोटी सी शिष्या बिब्बी ने जब बिहार के भूकंप पीड़ितों के सहायता के लिए पहली बार अपनी गायकी से श्रोताओं को जादुई आवाज से जब परिचय करवाया तब स्वयं समय को भी नहीं अंदाज था कि एक दिन छोटी सी लड़की बिब्बी हिन्दुस्तानी शाश्त्रीय संगीत की एक सशक्त हस्ताक्षर बनकर इतिहास के पन्नों में अंकित हो जाएगी।

गायकी और शायरी का तो जुड़वां बहनो जैसा रिश्ता है। बेगम अख्तर को अच्छी शायरी की पहचान थी। शायरी चाहे हिन्दुस्तानी हो या उर्दू में, उन्हें शब्दों पर पकड़ लाजवाब थी। उनकी शाश्त्रीय संगीत पर पकड़, उर्दू शायरों की समझ और खुद की उनकी अपनी आवाज और गायन शैली अद्भुत थी। वह तब ही कोई गजल को अपनी आवाज देती थीं जब उन्हें उसके शेर पसंद आते थे। उनकी आवाज में वह दर्द छलकता था जो सीधे श्रोताओं के दिल में उतर जाती थी। अपनी जिंदगी ने जितने नासूर और अकेलापन का एहसास उन्होंने सहे उतनी ही गहरे रंग उनकी गायकी में घुलते गये।

मिर्जा ग़ालिब उनके सबसे प्रिय शायर थे। बेगम अख्तर ने गालिब को हर दिल अज़ीज़ बनाने का काम किया कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। गालिब की गज़ल - ’आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक / कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक’ और ’कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नज़र नहीं आती / मौत का एक दिन मुअय्यिन है नींद क्यों रात भर नहीं आती’ को श्रोताओं ने खूब पसंद किया। बेगम अख्तर ने मीर, गालिब, दाग और मोमिन जैसे बड़े शायरों के शेर को खास अंदाज में पेश कर अपनी मौलिक प्रतिभा का लोहा मनवाया।
26 अक्टूबर 1974 को अहमदाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान मंच पर “ए मोहब्बत तेर अंजाम पै रोना आया को” गाते समय ही उन्हें हृदयाघात हुआ और 30 अक्टूबर 1974 को बेगम साहिबा का शरीर दुनिया को अलविदा कह गया आने वाली पीढियो को सदैव गुनगुनाने के लिए।

भारत सरकार ने मल्लिका -ए- गजल बेगम अख्तर को 1968 में पद्मश्री, 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, एवं 1975 में मरणोपरांत “ पद्मभूषण “ से सम्मानित कर खुद को गौरवान्वीत किया।
विनम्र पुष्पांजलि

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