स्वच्छ भारत अभियान : एक लोकप्रिय टीवी इवेंट !!

देश की आजादी के 70 वर्ष हो गए हैं और आज तक हम बुनियादी जरूरतों से ही जूझने के लिए लाचार हैं । चीन और इजराईल लगभग हमारे साथ ही आजाद हुए थे। यदि चीन और इजराइल को एक दो शब्दों में चित्रित करना हो तो हम (एक बिलकुल ही साधारण आम आदमी) क्रमशः कह सकते हैं कि चीन औद्यौगिक एवं इजराइल सामरिक दृष्टिकोण से आज एक महत्वपूर्ण देश है परन्तु यदि यही प्रश्न को भारत के संदर्भ में पूछा जाये कि एक से दो शब्दों में भारत का चित्रण किया जाए तो उत्तर बहुत ही शर्मनाक होगी वह शब्द है गंदगी। हमने यह धारणा बना ली है कि गरीबी और गंदगी का चोली-दामन का साथ है, लेकिन बात ऐसी नहीं है। कोई गरीब होकर भी साफ-सुथरा रह सकता है। भारत में सबसे गरीब घर में प्राय: सबसे स्वच्छ रसोईघर ही होता है। इस विषय पर मेरी व्यक्तिगत धरना है कि साफ़ रहना एक कला है

गांधीजी के लिए स्वच्छता एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा था। गाँधी जी ने किसी भी सभ्य और विकसित मानव समाज के लिए स्वच्छता के उच्च मानदंड की आवश्यकता को समझा। उनमें यह समझ पश्चिमी समाज में उनके पारंपरिक मेलजोल और अनुभव से विकसित हुई। 1895 में जब ब्रिटिश सरकार ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों और एशियाई व्यापारियों से उनके स्थानों को गंदा रखने के आधार पर भेदभाव किया था, तब से जीवन भर गांधीजी लगातार सफाई रखने पर जोर देते रहे।

मुझे यह कहने में कदाचित संकोच नहीं हो रहा है कि समूचे भारतवर्ष में यदि कोई सबसे ज्यादा गंदगी वाला राज्य या यूँ कह लूँ कि भारत की सबसे ज्यादा गंदगी वाला शहर कोई है तो वह निश्चित ही बिहार की राजधानी पटना है। यह वही बिहार राज्य है जिसके बारे में महात्मा गांधी ने 'हिंद स्वराज" में  नालंदा के बेहतर जल निकासी प्रबंधन के लिए चर्चा किया था। लेकिन स्वच्छता के शास्त्रोक्त संदेश आज या तो भुला दिए गए हैं या फिर समाज इनसे अनभिज्ञ है। वरना क्या कारण है कि हमारे समाज की तीन चौथाई आबादी आज अस्वच्छता के कारण बीमारियों का शिकार हो रही है।
70-75 के दशक में एक फिल्म आयी थी ‘ रोटी कपडा और मकान ’ जिसका एक गाना मुझे बहुत प्रिय लगा इसलिए नहीं कि वह कर्णप्रिय गीत थी या बहुत अच्छे से फिल्माया गया था बल्कि फिल्म की पटकथा से एक सन्देश दिया गया था कि सावन की मदमस्त फुहारें तो मुझे भी अत्यधिक प्रिय है परन्तु आजादी के 30 वर्ष के पश्चात भी मुझे जिंदगी की बुनियादी जरूरतों के लिए अभी लड़ना है और आज 70 वर्ष के पश्चात भी प्रश्न मुंह बाए सामने खड़ा है एक यक्ष प्रश्न लिए हुए- जल थल और मल

आजादी के 70 साल बाद भी क्यों हमें आज भी इन समस्याओं से रूबरू होना पड़ रहा है? हमें विश्व शक्ति बनाने का दिवास्वप्न दिखाया जाता है जबकि हमारे यहाँ मुलभुत सुविधाओं पर कभी भी विचार ही नहीं किया जाता है। बहुत आसानी से यह कह दिया जाता है कि भारतीय लोग जानकारी के अभाव में गंदगी को फैलाते हैं लेकिन क्या सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती है आम नागरिकों के लिए कभी आरोप कगाने वालों ने सोचा है।

हमारे प्रधानमंत्री जी बार बार यह कह कर याद दिलाते हैं कि वे चाय बेचते थे और माता जी घरों में काम करके उन्हें पाला-पोषा है, उन्होंने गरीबी को बड़े नजदीक से देखा है या मैं इसे अपने शब्दों में कहूँ कि प्रधानमंत्री जी ने जिल्लत की जिंदगी को जिया है कुछ वर्षों तक। वह शायद जिल्लत की जिंदगी से ज्यादा सत्ता की चकाचौंध वाली अवधी ज्यादा हो गयी जिसके कारण वह भूल गए कि कैसे सरकारी अधिकारी और स्थानीय नेता मिलकर गरीबों की परियोजना को डकार जाते हैं जिसे उन्होंने काफी नजदीक से देखा और भोगा भी होगा और इसके वावजूद भी जब वह नकेल कसने में असफल हो रहे हैं तो मुझे भी यह लिखने में आज कोई गुरेज नहीं होगा कि पूर्व की ग्रामीण स्वच्छ भारत, निर्मल भारत की ही तरह यह परियोजना भी पूरी तरह से विफल हो जाएगी क्यूंकि सरकार और मिडिया जिस स्वच्छता की बात कर रही है वह ग्रामीण हिंदी भाषा एवं स्थानीय भाषा बोलने वाले  लोगों का मुदा है जिस पर गहन मंथन अंग्रेजी भाषा के जानकार लोग कर रहे हैं। स्वच्छता अभियान को जिस गाँधी के चश्मे से देखा जा रहा है उसे हमें गंभीरता पूर्वक समझना होगा कि जहाँ से स्वच्छता दिखती है वहां भारत नहीं दिखता है और जहाँ भारत दिखता है वहां स्वच्छता नहीं दिखती है।


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