पटना विश्वविद्यालय के अ गौरवशाली सौ वर्ष
"निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय”.... कबीर कहते हैं कि व्यक्ति को सदा चापलूसों से दूरी और अपनी निंदा करने वालों को अपने पास ही रखना चाहिए। वहीँ चाणक्य ने भी कहा है कि “ दम्भी भवति विवेकी प्रियवक्ता भवति धूर्तजनः” अर्थात धूर्त व्यक्ति बहुत अधिक मीठा बोलता है। उससे बचकर रहें। नकली आचरण करने वाला दंभी विवेकी लग सकता है पर वह होता नहीं है।
आलोचकों का हमारे जीवन में बड़ा सहयोग रहा है, इतिहास साक्षी है कि बिना आलोचकों के कोई भी शासक न तो अपना राज्य संभाल पाया है और न ही अपने राज्य का विस्तार कर पाया है, शक्ति कितनी भी असीमित हो, बिना आलोचना के शासक अपने मद में चूर होकर गलतियां कर बैठता है। आलोचनाएँ शक्ति प्रदान करती हैं, और भविष्य के लिए रणनीति बनाने का अवसर भी प्रदान करती हैं, अतः हमें आलोचनाओं का हमेशा स्वागत करना चाहिए।
कल पटना विश्वविध्यालय में स्थापना के 100 वर्ष पुरे होने के उपलक्ष में एक भव्य शताब्दी समारोह आयोजन किया जा रहा है जिसका प्रधानमंत्री खुद भी हिस्सा बनेंगे। सीमित लोगों को ही आमंत्रित किया गया है(मुझे भी आमंत्रण है) और उसके साथ ही आमंत्रण प्रकरण पर राजनीति भी शुरू हो गयी है। पटना विश्वविध्यालय के तीन पूर्व छात्र श्री यशवंत सिन्हा(पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री), श्री लालू प्रसाद(पूर्व मुख्यमंत्री) एवं श्री शत्रुघ्न सिन्हा(स्थानीय सांसद, भाजपा) को आमंत्रण नहीं दिया गया है और अब यह विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है जबकि इसके दो अनामंत्रित अतिथि सत्तारूढ़ दल के हैं एवं एक विपक्ष के।
क्या शैक्षणिक संसथान भी अब अपने छात्रों को दलगत नीतियों एवं समर्थन में बोलने या विरोध में बोलने वाले के रूप में देखने लगी है? अगर आज संस्थान इन आधारों पर अपने अतिथियों को देखती है तो उनके द्वारा प्रदत्त शिक्षा का मकसद शायद अब समाप्त गया है। उन्हें इस तरह के आयोजन करने का कोई भी नैतिक अधिकार नहीं है।
क्या पटना वि.वि. के इन तीनो विभूतियों को सिर्फ इस लिए आमंत्रित नहीं किया गया है कि व्यवस्था के खिलाफ इनमें से दो लोगों ने मुखर होकर अपनी बात को जनता के सामने सार्वजनिक रूप से रखा है। उपरोक्त तीनों पूर्व छात्र किसी परिचय या सम्मान के मोहताज नहीं हैं बल्कि इनलोगों के व्यक्तित्व के समक्ष आज के ज्यादातर जो तथाकथित सम्मानित लोग है गौण हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग उन्होंने किया, सहमति-असहमति हमारा हक़ है।
पूर्व छात्रों को आमंत्रण विश्वविध्यालय दे रही है ना की विशेष राजनीतिक दल। पटना विश्वविधालय को दलगत राजनीति से दूर रह कर अपने उन सभी छात्रों को आमंत्रित करना चाहिए, जो आज अपनी विधा में समूची दुनिया में पटना विश्वविध्यालय का नाम रौशन कर रहे हैं न कि कौन किसके खिलाफ क्या बोल रहा है।
जब खुद पटना विश्वविध्यालय जैसी प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान “ सा विद्या या विमुक्तये “ अर्थात विद्या वह है जो मुक्ति प्रदान करे के मूल मन्त्र को न समझ सका तो उस संस्थान से उपरोक्त अनामंत्रित छात्र वहीँ से पढ़ कर निकले हैं तो इसमें कोई बहुत विस्मय की बात नहीं है।
अतः आलोचनाओं का स्वागत करें, कमियों को सुधारें…..
शुभकामनायें।
शुभकामनायें।
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