सदैव ऋणी रहेगा यह देश आपका -- शास्त्री जी !!
न तो कभी भी कोई बड़े-बड़े
दावे किये न ही कभी भी छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर देश को बदल देने का वादा किया, बल्कि
कृशकाय व्यक्तित्व वाले शास्त्री जी ने अपने अदम्य साहस और कर्मों से भारत को
स्वाभिमान के साथ अपने पैरों पर चलना सिखाया। न उन्होंने कभी कहा कि “एफ़डीआई के बिना नहीं होगा किसानों का भला।” ना ही कभी कहा कि “एक समान कर-व्यवस्था” से देश का एवं व्यापारियों का भला होगा ना ही अपने कृत्यों से देश के
नागरिकों को चोर और बेईमान होने का एहसास कराया बल्कि उन्होने कहा- “जय किसान”, और देश के किसानों ने
मिट्टी से सोना उपजा दिया। उन्होने कभी जवानों के हाथ नहीं बांधे और नारा दिया “जय जवान”, और देश के जवानों ने 1965
के युद्ध मे दुश्मनों को धूल चटा दिया।
जब देश मे नन्हें-मुन्ने
बच्चे तरस रहे थे दूध के लिए,
वो कभी नहीं उलझे ‘क्षीर
सागर’ के दिवास्वप्न-जाल में, बल्कि श्वेत क्रांति लाकर
देश में दूध की नदी बहा दिया। जब देश भुकमरी से जूझ रहा था, उन्होने कभी नहीं कहा कि “गरीब बहुत खाने लगे हैं, इसलिए अनाज की कमी है।” बल्कि स्वयं सप्ताह में 2 दिन उपवास रखा और गरीबों
की भूख मिटाई।
जहाँ एक ओर गाँधी जी ने
अहिंसा के नाम पर देश को इस तरह से तोडा-मरोड़ा, कि यहाँ के युवाओं का पौरुष ही
नष्ट हो गया, वहीं व्यक्तिगत जीवन मे
अहिंसा को परमधर्म मानने वाले शास्त्री जी ने देश पर हमले के वक़्त वीरता के साथ
शत्रुओं को करारा जवाब दिया।
जब विश्व के सभी देश भारत
के खिलाफ पाकिस्तान का साथ खड़े दिख रहे थे उस वक्त शास्त्री जी अन्य मुल्कों को
पाकिस्तान के खिलाफ ध्रुवीकरण करने लिए बिना किसी विदेश भ्रमण एव सहयोग मांगे ही युद्ध
मे भारत को विजय दिलाई। “उनकी एक आवाज पर पूरा देश, विकास के सपने को पूरा करने के लिए स्वतः ही उठ खड़ा हुआ।
बाजारीकरण और भ्रष्टाचार के
उस दौर मे हम जन्मे हैं जहाँ नेता और अफसर मिलकर गरीबों के राशन से लेकर सड़क, पुल, चारा, कोयला यहाँ तक की कफन भी डकार जाते हैं। उसमे शास्त्री जी का
व्यक्तित्व किसी मिथकीय देव-पुरुष सा ही नज़र आता है। वह जनता की आँखों का तारा थे।
देश के इस सच्चे सपूत, भारत माँ के लाल, पंडित लाल बहादुर शास्त्री
जी को मेरा सादर विनम्र नमन।
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