क्या सचिन वाकई भारत रत्न के काबिल हैं?

जीवन्त मिथक। मीडिया के शब्दों में क्रिकेट का भगवान। निश्चय ही सचिन तेंदुलकर भारत के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं। वाकई ध्यानचंद के जादू को छोड़ दें तो सचिन के करिश्मे का कोई सानी नहीं है। बल्लेबाजी के बहुत सारे रेकार्ड सचिन के नाम हैं। लेकिन क्या भारत रत्न की कसौटी इतने भर से पूरी हो जाती है?
सचिन सचिन हैं तमाम पुरस्कारों से ऊपर किन्तु भारत 121 करोड लोगों का जीता जागता मुल्क है। क्रिकेट के रिकार्ड बुक के पन्ने सचिन के नाम से भरे जाते है। तो हमें गर्व होता है। लेकिन गर्व तो हमें कपिलदेव के नाम पर भी होता है। जो पहला क्रिकेट विश्वकप देश के लिए अपनी कप्तानी में जीत कर लाए। कैप्टन ध्यानचंद सिंह जो राष्ट्रीय खेल हाकी के शेर कहे जाने के हकदार है। वह भी इस तरह से भारत रत्न के हकदार है। और हां यदि किसी खेल की विश्व रिकार्ड बुक के पन्नों पर नाम अंकित कराना भारत रत्न का हकदार बनाता है तो भारत कंलक पुरस्कार की शुरूआत भी करनी चाहिए। वैसे न सही किन्तु जब ओलंपिक खेलों में हम चुल्लू भर पानी भी डूब मरने को नही ढूंढ पाते उस समय शायद भारत कंलक पुरस्कार का सही पात्र मिल सके।
जो हमारा सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान है, क्या उसके लिए उपलब्धियों के अलावा कुछ और मानक नहीं होने चाहिए?
सच तो यह है कि राष्ट्र के इस सर्वोच्च सम्मान का जितना भयानक राजनीतिकरण हुआ है उतना किसी दूसरे सम्मान का नहीं जैसे यह कल्पना करें कि सचिन भारत रत्न से नवाजे जाने के पश्चात् पेप्सी-कोक के विज्ञापन करता दिखे तो हमें कैसा लगेगा?  कायदे से भारत रत्न अगर इस देश का आखिरी- सबसे बड़ा- सम्मान है तो उसका कुछ ज्यादा मतलब होना चाहिए। भारत रत्न अर्जित करने वाले से हमें सब कुछ पाने नहीं, कुछ छोड़ने की भी अपेक्षा रखनी चाहिए। कम से कम उसे कारोबारी किस्म की प्रवृत्तियों से ऊपर उठना होगा, खुद को विज्ञापनबाज मानसिकता से दूर रखना होगा। कह सकते हैं कि यह बड़ी कड़ी और निर्मम अपेक्षा है। लेकिन फिर वह भारत रत्न कैसा जो त्याग को आदर्श मानने वाले देश में इतनी भर अपेक्षा पूरी न करे।
निश्चय ही सचिन तेंदुलकर के व्यवहार में अपनी तरह की शालीनता है। वे कई मामलों में आदर्श हैं। अपनी तरफ से उन्होंने कभी भारत रत्न जैसे किसी सम्मान के लिए उतावलापन प्रदर्शित किया हो, यह किसी को याद नहीं आता। लेकिन फिर भी भारत रत्न जैसे सम्मान की श्रेणी उनसे कुछ और अपेक्षाएं रखती है।
हालांकि फिर कहा जा सकता है कि आखिर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न क्यों चाहिए। उनकी धवल कीर्ति का आसमान वैसे भी काफी विस्तृत है। क्या उसमे भारत रत्न कोई नई आभा जोड़ेगा?
सचिन शायद ऐसा न करें, क्योंकि अपनी छवि और राष्ट्रीयता को लेकर अब तक वे दूसरों से ज्यादा संवेदनशील नजर आते हैं, लेकिन फिर भी अगर ऐसा हो तो इसमें अचरज क्या है?
इस देश की आजादी के लिए जिन्होनें पूरे परिवारों सहित अपनी जिन्दगी जेलों में गुजार दी हसते हसते फासी के फन्दें चूम लिए जिन्होने ” खुश रहो अहले-वतन हम तो सफर करते है। जैसी आवाज देकर मातृभूमि पर प्राण न्यौछावर कर दिय। क्या ऐसे अमर सपूतों के प्रति पुरस्कार देकर देश अपनी कृतज्ञता ज्ञापित कर चुका है जो क्रिकेटर भारत रत्न के लिए चुने जा रहे हैं । सावरकर बुधं, चाकेकर बंधु, राचीन्यनाथ सान्याल, राजेन्द्र लोहिडी, सरदार भगत सिंह, सरदार अजीत सिंह, मदनलाल धीगडा, मैडम कामा, श्री मति ऐनी बेसेन्ट, लोकमान्य तिलक, पं0 चन्द्रशेखर आजाद, पं0 रामप्रसाद बिसिमल, शहीद अशफाक उल्ला खा,नामों की इतनी लम्बी सूची कम पड गर्इ। ये वे नाम है जो किसी रिकार्ड बुक में नही चढे किन्तु जिन्होने अपने रक्त की एक-एक बूंद इस देश की जनता को समर्पित कर दी न कि एक-एक रन के लिए करोडों रूपये अपनी तिजोरी में जमा किए।
मित्रों भारत की आजादी के दीवानों से अगर आपको नफरत है तो मेजर जनरल जगजीत सिंह अरोडा को याद कर लीजिए जिन्होने 1971 में बांग्लादेश में पाकिस्तान की 1 लाख के लगभग सेना को आत्मसमर्पण करने को बाध्य कर दिया। आज तक के सैनिक इतिहास में इससे बडा आत्मसमर्पण कभी नही हुआ।
भारत के पास विज्ञान के क्षेत्र में भी वर्गीश जैसे लोग है जिन्होने हरित क्रांति कर भारत की विशाल जनसंख्या को खाधान्न सुरक्षा प्रदान की। न्यायमूर्ति पी0एन0 भगवती जिन्होने जनहित याचिका की अवधारणा को मूर्तिवान किया। आज तमाम भ्रष्टाचार इन जनहित याचिकाओं के माध्यम से ही खुला है। श्री अन्ना हजारे जिनके प्रयासों से सूचना अधिकार अधिनियम लागू किया गया और आज जो एक तरह की क्रांति का रूप ले चुका है। योगर्षि बाबा रामदेव जिनके योग और प्राणायाम ने करोडों लोगों के जीवन को बदल दिया और चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति पैदा कर दी। भारत में आर्इ0 टी0 क्रांति के जनक सैम पित्रोदा, उदारवादी अर्थव्यवस्था को भारत में तेज गति प्रदान करने वाले श्री पी0वी0 नरसिम्हाराव, सुलभ शौचालय की अवधारणा प्रदान करने वाले श्री विदेश्वरी पाठक। मेरा आशय है कि ऐसा कोर्इ भी नाम जिसने इस देश के करोडों लोगों के जीने के ढंग को शानदार और जानदार बनाने में योगदान दिया हो वह ”भारत रत्न का हकदार होना चाहिए। जिसने भय भूख अशिक्षा और गरीबी से करोडों भारतीयों को उबारने का प्रयत्न किया हो ”भारत रत्न का हकदार होना चाहिए।
यह अचरज की बात है कि भारत रत्न के लिए पहले जो कसौटियाँ निर्धारित थीं उनकी पूरी तरह उपेक्षा करके यह सम्मान सीधे-सीधे नेताओं के हवाले कर दिया गया। पुरानी कसौटी के मुताबिक साहित्य के लिए यह सम्मान दिया जा सकता था। लेकिन साहित्य के खाते में अब तक एक ही भारत रत्न दिया गया और वह भी संस्कृत के विद्वान भगवान दास को। रवींद्रनाथ टैगोर, प्रेमचंद, निराला, महादेवी, सुब्रह्मण्यम भारती या वल्लतोल जैसे कवि लेखकों को भारत रत्न प्रदान किए जाने लायक नहीं समझा गया। अब तक जो 42 भारत रत्न दिए गए हैं उनमें 23 या 24 भारत रत्न या तो स्वाधीनता सेनानियों को दिए गए या राजनेताओं को। जाहिर है, इन सबके लिए चूंकि अलग से कोई श्रेणी नहीं थी इसलिए इन्हें समाजसेवा के खाते में भारत रत्न मिला। इस सूची में इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, वीवी गिरि, कामराज, एमजी रामचंद्रन जैसे कुछ ऐसे भी नाम हैं जिनकी पात्रता पर पहले भी सवाल उठे, आगे भी उठते रहेंगे।

निश्चय ही आखिरी कुछ वर्षों में संगीत से जुड़ी कई विभूतियों- एमएस सुबुलक्ष्मी, लता मंगेशकर, रविशंकर, बिस्मिल्ला खां, भीमसेन जोशी और फिल्मकार सत्यजित रे को भारत रत्न देकर हमारी सरकारों ने अपनी सांस्कृतिक संवेदनशीलता का कुछ परिचय देने की कोशिश की, लेकिन यह समझना मुश्किल नहीं है कि यह समझ भी एक तरह के लोकप्रियतावाद से आक्रांत है।
एपीजे अब्दुल कलाम को भारत रत्न देना इसी लोकप्रियतावाद का एक दूसरा आयाम था क्योंकि कलाम साहब ने देश को भले कुछ मिसाइलें दी हों, लेकिन विज्ञान के क्षेत्र में उनका मौलिक योगदान ऐसा बड़ा नहीं है कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की कीर्ति में कुछ योगदान करें। मदर टेरेसा या अमर्त्य सेन को भारत रत्न के लायक सरकार ने तब माना जब उन्हें नोबेल पुरस्कार मिल गया।

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