दसमें दिन मां दुर्गा क्यों नहीं !!


हर बार नवरात्र समाप्त होते ही दसमें दिन श्रीराम एक नायक के रूप में उभरकर सामने आते हैं, और रावण खलनायक के रूप में पेश किया जाता है। विजयदशमी को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी देखा जाता है। मैंने शायद एक दो बार ही रावण को जलते हुए देखा है, आज भी रावण जलेगा, और राम एक नायक के रूप में उभरकर आएंगे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से सोच रहा था कि नौ दिन मां के और दसमें दिन नायक बनकर श्रीराम सामने आ जाते हैं। मां दुर्गा को नायक क्यों नहीं बनाया जाता, जिसने नौ दिन तक महिसासुर से युद्ध कर दसमें दिन विजय प्राप्त करते हुए स्वर्ग लोक और अन्य देवी देवताओं को बचाया। महिसासुर के पुतले क्यों नहीं जलाए जाते, क्यों जहां भी महिला के साथ अन्याय होता आ रहा सालों से। क्यों किसी ने आवाज नहीं उठाई। क्यों हर साल रावण को ही जलाया जाता है, क्या मां दुर्गा ने बुराई पर जीत दर्ज नहीं की थी, क्या महिसासुर बुराई का प्रतीक नहीं था। मां के नौ दिन खत्म होते ही पुरुष जाति की अगुवाई करते हुए श्रीराम एक नायक के रूप में उभर आते हैं, मां दुर्गा को क्यों नहीं पेश किया जाता। महिलाओं की शक्ति का प्रदर्शन क्यों नहीं किया जाता, जब सब देवताओं की महिसासुर के आगे एक नहीं चल रही थी, जब स्वर्ग लोक संकट में था, तब मां दुर्गा ने महिसासुर का वध कर स्वर्ग लोक को नया जीवन दिया। रावण और राम की जाति दुश्मनी थी, शास्त्रों के हिसाब से जिसको लक्ष्मण ने शुरू किया और रावण की मौत के साथ अंत हुआ था। हर साल रावण को जलाने के लिए करोड़ों रुपए पानी के तरह बहा दिए जाते हैं, वातावरण को प्रदूषित कर दिया जाता है। लेकिन कभी उस रावण के साथ किसी ने खुद के भीतर बैठे रावण को जलाया, जो अन्य लोगों की भावनाओं को अगवा करने के सिवाय कुछ कर ही नहीं सकता।

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