हमारा खोया हुआ गौरवशाली अतीत !!

हिंदू धर्म क्या है।
 ‘मम देहि करावालम्बम’ अर्थात मुझे आपके हांथों का सहारा चाहिए।

हिंदू धर्म एक ऐसी सभ्यता से ताल्लुक रखता है जो अभी भी अपने पैरों पर वैसे ही खड़ी है, जैसी वो मानवता के इतिहास में हजारों साल पहले थी, जैसी वो हजारों सालों से युद्ध, विजय, लूट, पराधीनता, बलात्कार और विनाश से पहले भी थी। और अभी भी जीवित है, खड़ी भी है।

एक सभ्यता सिर्फ ईमारत या मशीन नहीं होती है। उसमें वहाँ के लोग, उनके विचार और उनकी संस्कृति भी होती है। वर्तमान मेघा या बुद्धिमत्ता के लिए यह एक संसाधन है। संवेदनशीलता की एक अभिव्यक्ति है और लोगों के हरेक विचार, शब्द और कर्म में विज्ञान, दर्शन और नैतिकता के समन्वय का जरिया है।करीब एक अरब लोग ईश्वर को उसी नाम से पुकारते हैं जिस नाम से उसे हजारों साल पहले पुकारते थे। आखिर ऐसी कौन सी बात थी जो इतने लंबे समय तक अपरिवर्तित रह गयी। कौन सा ऐसा दूसरा धर्म बचा है इस धरती पर जो इतने लंबे समय तक अपरिवर्तित रह गयी या इतने लंबे समय तक अस्तित्व में रह पाया जबकि इतने सारे लोगों ने इसे विकृत करने, नीचा दिखाने में कोई कसार नहीं छोड़ी। इसे खत्म करने का हर संभव प्रयाश किया गया, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

हम इतिहास के एक ऐसे क्षण में जी रहे हैं जब हिंदू धर्म फिर से जाग रहा है, ऐसा एक लंबी चुप्पी या मौन के बाद हो रहा है। एक लंबे समय तक हमने दुनिया से या खुद से भी एक हिंदू के रूप में संवाद नहीं किया है। इतिहास में कुछ असहज और विपरीत परिस्थितियों के वावजूद रणनीति या संवेदनशीलता के कारण से हम धर्म को लेकर सहज और शालीन बने रहे।आज के युग में हमारे धर्म पर जो खतरा है वह अस्तित्व के उस खतरे से कहीं ज्यादा है, जितना हम समझ रहे हैं। अतीत में हिंदू धर्म के प्रति उपेक्षा भाव को पुरानी दुनिया के पूर्वाग्रह या घिसी-पिटी बातें कहकर खारिज कर दिया जा सकता था, लेकिन आज के दौर में हिंदू धर्म जिस खतरे का सामना कर रहा है वह अत्यधिक धूर्ततापूर्ण और खतरनाक है।

बुद्धिजीवी माने जाने वाले व्यक्तियों की लगभग हरेक किताबें, लेख या तर्क हिंदू कट्टरपंथ की आलोचना करने के नाम पर वे हमारे सम्पूर्ण धर्म पर बर्बरता पूर्वक हमला करते हैं।अगर बौद्धिक या सांस्कृतिक रूप से उनकी बातों का जवाब नहीं दिया गया तो जल्द ही हमारे नाम, देवी-देवता, उत्सव, पवित्र धार्मिक पुस्तकें और लगभग वो सारी बातें जिससे हम परिभाषित होते हैं- उसकी परिभाषा वे तय करेंगें और उसे गलत तरीके से पेश किया जायेगा।

हो सकता है कि कोई ऐसा भी दिन आये जब हम अपना नाम लेने में ही शर्मिंदगी महसूस करें स्वतन्त्रतापूर्वक अपने देवी-देवता की आराधना करने में शर्म महसूस करें। हो सकता है किसी दिन शिव के त्रिशूल को ही हथियार की श्रेणी में डाल दिया जाये।अभी हम जिन हालातों का सामना कर रहे हैं वो हिंदू धर्म की मौलिक मान्यतओंके खिलाफ किसी युद्ध से कम नहीं।
                                                                  ......क्रमशः
                                                                                           

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