हमारा खोया हुआ गौरवशाली अतीत: एक सिंहावलोकन !!(खंड 03)

आर्य कौन थे?
वेद कहता है ‘कृणवन्तो विश्वमार्यम’ अर्थात सारे संसार को आर्य बनाओ।
हमलोगों ने जिस इतिहास को पढ़ा और समझा है वह हमें यह दर्शाता है कि हिंदू भारत के सबसे पहले हमलावर थे ठीक वैसे ही जैसे केन्द्रीय और पश्चिम एशिया के मुसलमान मध्यकाल में हमलावर के रूप में आये या उसके बाद की शताब्दियों में यूरोप के ईसाई लोग
इस तथ्य के पीछे तर्क क्या है मुझे समझ नहीं आता है परन्तु मान्यता इन्ही तथ्यों को मिली हुई है।

वामपंथी इतिहासकार हमें यह बताते हैं कि इस्लाम और ईसाई की तरह हिंदू धर्म न सिर्फ बाहर से आयी बल्कि खुद भारत ही अफ्रीका से चल कर यहाँ आ गया। यह तथ्य मेरे समझ से परे है, शायद भूगोल के जानकार इस तथ्य को स्पष्ट कर सकें। पांच करोड वर्ष पूर्व जमींन का एक विशाल टुकड़ा अफ्रीका से टूटकर समुंद्र में बहकर एशिया के तरफ चला आया जो आज का भारत है।
आर्य का अर्थ होता है श्रेष्ठ। आर्य अपने को श्रेष्ठ मानते थे और वैदिक धर्म और एक निश्चित नीति-नियम के अनुसार चलते थे। आर्य किसी जाति का सूचक प्रतिक शब्द नहीं बल्कि एक विशेष विचारधारा को मानने वाला समूह था जिसमे श्वेत और अश्वेत दोनों शामिल थे और इसमें भिन्न-भिन्न जाति समूह के लोग जुड़े हुए थे।

महाकुलकुलीनार्यसभ्यसज्जनसाधवः । -अमरकोष
अर्थात आर्य शब्द का प्रयोग महाकुल, कुलीन, सभ्य, सज्जन, साधु आदि के लिए प्रयोग किया गया है। संस्कृत साहित्य में भी आर्य शब्द का काफी प्रयोग किया गया है- ‘आर्य’, ‘आर्यपुत्र’विदुरनीति में धार्मिक को, चाणक्यनीति में गुणीजन को, महाभारत में श्रेष्ठबुद्धि वाले को, तथा गीता में वीर को आर्य कहा गया है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्य शब्द की व्याख्या करते हुए कहा है कि जो श्रेष्ठ स्वभाव, धर्मात्मा, परोपकारी, सत्य- विद्या आदि गुणयुक्त और आर्यावर्त देश में सब दिन से रहता है उनको आर्य कहते हैं
आर्य और द्रविड़ एक ही हैं : भारत में आर्य और द्रविड़ विवाद व्यर्थ है। उत्तर और दक्षिण भारतीय एक ही पूर्वजों की संतानें हैं। उत्तर और दक्षिण भारतीयों के बीच बताई जाने वाली आर्य-अनार्य असमानता अब नए शोध के अनुसार कोई सच्ची आनुवांशिक असमानता नहीं है। अमेरिका में हार्वर्ड के विशेषज्ञों और भारत के विश्लेषकों ने भारत की प्राचीन जनसंख्या के जीनों के अध्ययन के बाद पाया कि सभी भारतीयों के बीच एक अनुवांशिक संबंध है।इस शोध से जुड़े सीसीएमबी अर्थात सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मोलेक्यूलर बायोलॉजी (कोशिका और आणविक जीवविज्ञान केंद्र) के पूर्व निदेशक और इस अध्ययन के सह-लेखक लालजी सिंह ने बताया कि शोध के नतीजे के बाद इतिहास को दोबारा लिखने की जरूरत पड़ सकती है। उत्तर और दक्षिण भारतीयों के बीच कोई अंतर नहीं रहा है।

पहली बस्तियाँ आज से 65,000 साल पहले अंडमान द्वीप और दक्षिण भारत में लगभग एक ही समय बसी थीं। बाद में 40,000 साल पहले प्राचीन उत्तर भारतीयों के आने से उनकी जनसंख्या बढ़ गई। कालान्तर में प्राचीन उत्तर और दक्षिण भारतीयों के आपस में मेल से एक मिश्रित आबादी बनी। आनुवांशिक दृष्टि से वर्तमान भारतीय इसी आबादी के वंशज हैं।

आर्यों के मूल स्थान को लेकर विदेशी विद्वानों में मतभेद हैं। मैक्समूलर मानते थे कि वे मध्य एशिया के थे। एडवर्ड मेयर मानते थे कि वे पामीर के पठार के थे। हर्ज फील्ड मानते थे कि वे रूसी तुर्किस्तान के थे। ब्रेडस्टीन मानते थे कि वे स्टेट मैप्लन (किरगीज) के थे। पेंका एवं हर्ट अनुसार वे जर्मन (स्कैंडेनेविया) के थे। प्रोफेसर मादल्स के अनुसार वे डेयूब नदी घाटी (हंगरी) के थे। जेसी रॉड के अनुसार वे बैक्ट्रिया के थे। नेहरिंग प्रो. चाइल्ड एवं प्रो. मीयर्स के अनुसार दक्षिणी रूस के थे। मच के अनुसार पश्चिमी बाल्टिक समुद्र तट के थे।
भारतीय इतिहासकार : दयानंद सरस्वती मानते थे कि वे सभी तिब्बत के थे। राजबली पांडे अनुसार वे मध्यभारत (मध्यप्रदेश) के थे। एल.डी. काला अनुसार वे कश्मीर के थे। बाल गंगाधर तिलक अनुसार वे उत्तरी ध्रुव (आर्कटिक) के थे।

सवाल यह उठता है कि भारतीय इतिहास में आर्यों को भारत पर आक्रमण करने वाला और विदेशी क्यों बताया जाता है? इसके पिछे कई कारण है। जैसे सिकंदर पोरस से हार गया था फिर भी ग्रीक इतिहासकार दुनिया भर में यह प्रचारित करने में सफल रहे कि वह जीत गया था इसलिए वह महान है। यदि भारत पर मुगलों और अंग्रेजों ने शासन नहीं किया होता तो भारत में पोरस ही महान माना जाता। परन्तु इससे कम स्वीकार्य इतिहास- जो स्वाभाविक रूप से आधुनिक हिन्दुओं को अपील करता है कि हिन्दू धर्म इस उपमहाद्वीप में सिन्धु घाटी सभ्यता के काल से ही अस्तित्व में रहा है। लेकिन आधुनिक हिन्दू मस्तिष्क में आधुनिक विश्व इतिहास की काल-गणना और हिन्दुओं के लिए धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण घटनाएँ मसलन राम-कृष्ण की जन्मतिथियों और उस कालखंड के साथ तालमेल बिठाने की समस्या रही है। क्यूंकि आधुनिक इतिहास उनके अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता।

कई दशकों तक इस दिशा में एक खाश प्रकार का सेक्युलर समझौता चल रहा है कि- निजी तौर पर मन ही मन हिन्दू लोग अपने देवताओं की ऐतिहासिक वास्तविकता को स्वीकार करते रहे, खासकर अवतारों को लेकिन सार्वजनिक रूप से वे ऐसा करने से बचते हैं।
लेकिन इतिहास में उनकी उपस्थिति अब हमारे लिए मुख्य समस्या नहीं है क्यूंकि हम साक्ष्यों और शोध के तरीकों की कमियों को जानते हैं। वास्तविक समस्या वर्तमान में इतिहास-लेखन विज्ञान में उस कालखंड की अवधारणा के बारे में है जिसे इतिहासकारों द्वारा सभ्यतापूर्व काल कहा जाता है और उस अवधारणा को मीडिया और पोपुलर कल्चर द्वारा हमारी आम समझ में बड़े ही स्वाभाविक रूप से पैबस्त कर दिया जाता है। हमारी उत्त्पत्ति के बारे में जो हिन्दुफोबिया(हिन्दू विरोधी) दावे हैं, उनकी त्रुतिओं को समझने के लिए हमें सार्वजनिक विमर्श में स्थापित मानव उत्त्पत्ति की काहानी को फिर से समझना पड़ेगा।

                                    .....क्रमशः

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