मानसरोवर का सच !!

कल रात न्यूज़ में सुना कि चीन ने कैलाश मानसरोवर की पवित्र धार्मिक यात्रा पर भारतीयों के प्रवेश रोक लगा दिया है। कदाचित चीन इस तरह के फैसले लेने के लिए सक्षम है क्योंकि मानसरोवर का क्षेत्र पर आज चीन का कानूनन हक है। क्या हमने कभी इतिहास के पन्नों को पलटने की कभी जहमत उठाई है कि आखिर कैलाश मानसरोवर उनके इलाके में कब से ओर कैसे चला गया? 
1962 से पहले कैलाश मानसरोवर भारत का ही अभिन्न हिस्सा था, जब तक चीन ने भारत पर हमला कर के उसे अपने कब्जे में नही कर लिया। जिसके लिए हम नेहरू को सीधे-सीधे जिम्मेवार मानते हैं। होनी भी चाहिए तय उनकी जिम्मेवारी क्योंकि उस समय नेहरू ही भारत के प्रधानमंत्री थे और उनका एक निहायत ही बेवकूफ मित्र देश का रक्षा मंत्री था वी के कृष्ण मेनन।
मेरे ख्याल से वह सिर्फ मूर्ख ही नही था बल्कि महामूर्ख था।उसके बेवकूफी वाली कुछ हरकतों को ध्यान में रखते हुए चीन ने इस परिस्थिति का फायदा उठाया और उसने भारत पर आक्रमण कर दिया।
कृष्ण मेनन भारत का रक्षा मंत्री बनने के पीछे सिर्फ एकमात्र काबिलियत यह थी कि वह नेहरू जी का मित्र था, उसमें न तो रक्षा मामले की कोई दक्षता थी न योग्यता थी। वह सिर्फ नेहरू का बेवकूफ पिठ्ठू था। यह वही कृष्ण मेनन है जब बटवारे के बाद कश्मीर मुद्दे को पटेल को अंधकार में रख कर नेहरू के निर्देश पर चुप चाप UNO चला गया और नेहरू की तरफ से यह प्रस्ताव पेश कर दिया कि हमे कश्मीर की जनता से रेफरेंडम लेना चाहिए कि वह भारत मे रहना चाहते हैं या पाकिस्तान में। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश होगा जो इस तरह की बेवकूफी करता हो। 
कृष्ण मेनन को पढ़ने के पश्चात यही प्रतीत होता है कि यह कैसे देश का रक्षा मंत्री बन गया था क्योंकि इसकी मानसिक दकहत तो शायद घरेलू नौकर या सहायक के लायक भी नही रही होगी।
कृष्ण मेनन ने लोक सभा में प्रस्ताव रखा था कि अब दुनिया का कोई भी मुल्क भारत का दुश्मन नही है। पाकिस्तान से हमारी दुश्मनी अवश्य थी परंतु आजादी के पश्चात वह भी समाप्त हो गई है। चीन भी हमारा मित्र है, इसलिए अब हमें फ़ौज की आवश्यकता नही है अतः हमें अपनी फ़ौज हटा देनी चाहिए क्योंकि हमपर अब कौन हमला करेगा।
सेना के बजट में भारी कटौती की गई और इसने आयुध एवं शस्त्र बनाने वाली कई कारखानों को बंद करवा दिया था जिसका फायदा उठाकर चीन ने भारत पर हमला कर दिया, जिसमे भारत के 72000 वर्ग मील पर चीन ने जबरदस्ती अपना अधिपत्य कायम कर लिया एवं हमारे हजारों सैनिकों के प्राण भी युद्ध सामग्री की कमी के कारण गवाने पड़े। सतर्कता की हद तो तब हो गई होगी जब हमले के हफ्ते भर बाद भी चीन द्वारा भारतीय क्षेत्र में किये गए हमले पर भी इनलोगों ने अपनी गंभीरता नही दिखाई।
बाद में अमेरिका के हस्तक्षेप पर दोनों देश के बीच संधि हुई जिसमें भारत ने 72000 वर्ग मील जमीन चीन को सौप दिया। नेहरु ने जब अमेरिका के कहने पर चीन से संधी की तो वो 72000 वर्ग ज़मीन उन्हें दान में देकर की। उनकी हारे हुए जमीन का हिस्सा था कैलाश मानसरोवर, जो हमारा पवित्र तीर्थ स्थल था हमारा। हारी हुई ज़मीन का हिस्सा था कैलाश मानसरोवर, जो तीर्थ स्थल तो हमारा है पर उस पर कब्ज़ा है चाइना का ।
युद्ध हारने पर विपक्ष के महावीर त्यागी ने जब नेहरु से पुछा कि यह ज़मीन वापस कब ली जाएगी, तब नेहरु का जवाब था कि वह तो बंज़र ज़मीन थी, उस पर एक घास का तिनका भी नही होता था , क्या करेंगे उस ज़मीन का?
ऐसे थे हमारे प्रधानमंत्री नेहरू और उनकी मंत्री परिषद।…...

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