योग दिवस !!


रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की कविता ‘शक्ति और सौंदर्य ‘ की पंक्तियाँ याद आ रही हैं …
"तुम रजनी के चाँद बनोगे या दिन के मार्तण्ड प्रखर
एक बात है मुझे पूछनी, फूल बनोगे या पत्थर
तेल फुलेल क्रीम कंघी से नकली रूप बनाओगे
या असली सौंदर्य लहू का आनन पर चमकाओगे
पुष्ट देह, बलवान भुजाएं, रूखा चेहरा, लाल मगर
यह लोगे या लोगे पिचके गाल, सँवारी मांग सुघर
जीवन का वन नहीं सजा जाता कागज़ के फूलों से
अच्छा है दो पात जो जीवित बलवान बबूलों से"।
ये पंक्तियाँ प्राकृतिक जीवन शैली और इसकी परिणति के रूप में सुन्दर स्वस्थ शरीर के महत्व को बताती है साथ ही कृत्रिम जीवन को अस्वीकार करने को प्रेरित भी करती हैं।

शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक शक्ति को प्रबल बनाने के लिए सूर्य की प्रथम रोशनी का स्नान ज़रूरी है। सूर्य नमस्कार पृथ्वी पर ऊर्जा के स्त्रोत अर्थात जीवन शक्ति के प्रति हमारी कृतज्ञता है जिसका किसी धर्म विशेष से कोई सरोकार नहीं है। दरअसल सूर्य नमस्कार योगासन नहीं है। जो व्यक्ति गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए आसनों या ध्यान के लिए वक़्त नहीं निकाल पाते या किसी निर्बलता ,विकार के कारण कठिन योग साधना नहीं कर पाते उनके लिए सूर्य नमस्कार की पद्धति है। इसकी बारह अवस्थाएं है जो करने में आसान भी हैं और मन और तन स्वस्थ, शांत और प्रसन्न कर सहजता से मानसिक और शारीरिक सबलता देती है। इसे करने के दौरान जपे जाने वाले मन्त्र से विरोध भी बेजा ही है।
            आज आधुनिक शैली ने शहरों में महंगे जिमखाने की स्थापना कर दी है इसमें कोई विरोध नहीं पर योगासन एक ऐसा व्यायाम है जिसे किसी भी आयु वर्ग के लोग बिना किसी उपकरण के साफ़ ताज़ी हवा वाले किसी भी स्थान में कर सकते हैं चाहे वह घर का कोना हो ,बाहर मैदान या उद्यान …‘.हल्दी लगे ना फिटकरी ,रंग चोखा आये ‘ की कहावत सही मायनों में योगासन सत्य कर देता है। सच है ‘ एक तंदरुस्ती हज़ार नियामत’ के मह्त्व को जो लोग योग से जोड़ कर देखते हैं वे प्रसन्न चित्त और स्वस्थ तन के साथ सकारात्मकता से भरे होते हैं।
            योग दुख दूर करने का विज्ञान है। योग में दर्शन और विज्ञान साथ-साथ हैं। यहां कोई अंधविश्वास नहीं और धार्मिक कर्मकांड भी नहीं। पतंजलि ने योग की परिभाषा की, 'चित्त वृत्ति की समाप्ति योग है।' गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया 'दुख संयोग से वियोग ही योग है।'
            दर्शन और विज्ञान किसी पंथ के नहीं होते हैं। योग परम स्वास्थ्य का विज्ञान है एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार शून्य का आविष्कार संभवत: हिंदुओं ने किया। अंक प्रतीक भी यहां पैदा हुए। अरबों ने उनका प्रयोग किया। उन्हें हिंदू अरेबिक कहा जाता है। क्या हिंदुओं द्वारा खोजे जाने के कारण अंक भी सांप्रदायिक हैं? एस एन सेन ने भारतीय गणित का विवेचन किया। लिखा है 'शब्दांक और दशामिक स्थानगत मूल्य में उनका व्यवहार अपूर्व भारतीय विकास है।' क्या हिंदुओं का शोध होने के कारण गैर हिंदू दशमलव प्रयोग छोड़ चुके हैं? 'साइंस एंड सिविलाइजेशन इन चाइना' में नीढम ने बीजगणित को भारतीय व चीनी विद्या बताया है? क्या बीजगणित छोड़ी जा सकती है? 
            ऋग्वैदिक ऋषियों ने सूर्य को ऊर्जादायी बताया। नक्षत्रों की गति का अध्ययन किया। क्या प्रकृति विज्ञान से जुड़े निष्कर्षो को उनके ऋषि या हिंदू होने के कारण खारिज कर सकते हैं?
             योग के अनुसार संकल्प, विकल्प, राग द्वेष और अवसाद विषाद का केंद्र 'मन' है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने 'मन' को शरीर का ही सूक्ष्म हिस्सा माना है। वे अनेक रोगों के लिए 'साइको सूमैटिक'- मनोशरीरी शब्द प्रयोग करते हैं। मन की क्षमता विराट है-कभी यहां, पल भर में वहां। ऋग्वेद से लेकर गीता और पतंजलि तक योग की वैज्ञानिक अविरल धारा है। स्वस्थ शरीर और एकाग्र मन आदिम अभिलाषा है। यजुर्वेद के शिव संकल्प सूक्त में 'वन, पर्वत और आकाश में घूमते मन को कल्याण से जोड़ने' की स्तुति है। उपनिषदें की रचना वेदों के बाद हुई। केनोपनिषद् में ज्ञान स्नोतों को मन के साथ जोड़ने को उच्चतर चित्त अवस्था की प्राप्ति कहा गया है और इसे ही योग। श्वेताश्वतर उपनिषद् में, 'छाती, गर्दन और सिर को सीधा रखते हुए ज्ञान केंद्रों को मन से जोड़ने और प्राण वायु रोकने/भीतर लेने की योग विधि है।' यहां योगाभ्यास के लिए सुंदर भूमि का भी उल्लेख है। गीता उपनिषदें के बाद लिखी गई। गीता में योग का विस्तार से वर्णन है। पतंजलि सूत्र और बाद के हैं। भारतीय चिंतन में योग की शुरुआत का श्रेय 'हिरण्यगर्भ' को दिया गया है।

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