बिहार : पुनर्मुशको भवः !!



बिहार की राजनीतिक उठापटक और राजनीतिक चरित्र को देख कर शायद पहली बार शर्म आ रही है कि मैं बिहार का नागरिक हूँ जहाँ के राजनीतिज्ञों में थोड़ी भी राजनैतिक एथिक नही बची है। जिस तरह से बयान बदल गए उन लोगों के जो कुछ घंटे पहले तक आरोप लगाते थकते नही थे, आज वे गुणगान कर रहे और कल तक जो मित्र थे आज एक दूसरे पर प्रत्यारोप लगा रहे हैं।
रश्मिरथी की एक पंक्ति याद आ रही है-
पुरुष की बुद्धि गौरव खो चुकी है,
सहेली सर्पिणी की हो चुकी है।
न छोड़ेगी किसी अपकर्म को वह,
निगल ही जाएगी सद्धर्म को वह।



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