केयर ऑफ !!

आप शब्दों के तमाचे भी जड़ दें और दुसरे से सामान्य बने रहने की अपेक्षा भी रखें। क्या यह संभव है? हम यदि पहले अपनी तारीफ़ सुन लेते हैं तो बाद में बुराई सुनना आसान होता है। जैसे हम ढाढ़ी बनाने से पहले उस पर साबुन लगाते हैं। इसलिए बुराई करने से पहले तारीफ़ करना न भूलें। इससे चोट हल्की लगती है। 

इस संदर्भ में डेल कार्नेगी का यह कथन काफी मायने रखता है, “अगर आप और मैं कल किसी के मन में अपने लिए विद्वेष पैदा करना चाहते हों, जो दशकों तक पलता रहे और मौत के बाद भी बना रहे, तो हमें और कुछ नहीं करना, सिर्फ चुनिन्दा शब्दों में चुभती हुई आलोचना करनी है .....

कटु शब्द दिल पर गहरा असर छोड़ते हैं। शारीरिक चोट तो उपचार के बाद ठीक हो जाता है, मगर दिल के घाव के लिए कोई दवा नहीं। यह लंबे समय तक तकलीफदेह हैं।

दोहरी मानसिकता के साथ जीते हुये हम सुख की तलाश में जिंदगी भर भटकते रहते हैं, लेकिन वह सुख हमें कभी हासिल नहीं हो पाता। आज का जीवन इतना एकाकी हो चूका है कि रिश्ते भी स्वार्थी हैं। संबंधों में इतनी दुरी आ जाती है कि उसे पाटना अब आसन नहीं रहा है। रिश्तों की ये खटास किसी खाश रिश्ते तक सीमित नहीं है।

यह भी एक विडम्बना है कि जहाँ सारे विश्व के लोगों के बीच की दूरिओं को आज के टेक्नोलॉजी ने घटा दिया है, वहीँ पारिवारिक सामजिक रिश्तों की दूरी बढती जा रही है, और हम जानकार भी अनजान बने हुये हैं। हमें इसका एहसास तभी हो पता है जब भुक्तभोगी होते हैं, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है और हमारे हाँथ कुछ नहीं रह जाता।
                   ...............क्रमशः 
                              मेरी प्रकाशित होने वाली पुस्तक के पन्नों से !!

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