जन्म दिन पर मृत्यु को भी याद कर लें !!


आज जन्म दिन के बहाने कुछ लिख रहा हूँ,  इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस आदमी के नाम के बहाने से। इससे फर्क नहीं पड़ता कि आज मेरा जन्मदिन है या तुम्हारा या किसी अन्य का। असल में समझना यह है कि जन्मदिन को हम उत्सव क्यों बना लेते हैं?
          उत्सव इसीलिए बना लेते हैं कि जीवन का तो कोई पता नहीं है। अगर जीवन का पता हो तो प्रतिपल उत्सव हो जाए, फेस्टिवल हो जाए। लेकिन जीवन तो महोत्सव है। और जन्म उस महोत्सव की शुरुआत भर है। और यदि जो जीवन हम जी रहे हैं, वह आनंदमय नहीं है, तो फिर ऐसे जीवन की शुरुआत आनंद की बात कैसे हो सकती है?
          जीवन यदि दुखों से भरा हुआ है तो सिर्फ जन्म हो जाना आनंदपूर्ण नहीं हो सकता। लेकिन हम इस सच को झुठलाने में कुशल हैं। जीवन में दुख है, तो हम झूठे सुख कल्पित करते हैं कि जन्मदिन में बड़ा सुख है! क्योंकि अगर कहें कि जीवन में बड़ा सुख है, तो हमारी आंखें कह देंगी कि कहां है? अगर कहें कि जीवन में बड़ा आनंद है, तो हमारे पैर बता देंगे कि कैसे भला, हम तो नहीं नाच-गा रहे हैं।
          फिर हम सब एक-दूसरे को धोखा देने की योजना बनाते हैं। यह जो हमारी दुनिया है, यह झूठ की म्युचुअल अंडरस्टैंडिंग पर खड़ी हुई है। इसमें हम सब एक-दूसरे के झूठ को सहारा देते हैं। इसलिए एक-दूसरे के जन्म पर इकट्ठे होकर उत्सव मनाते हैं। फिर वही लोग हमारे जन्म के उत्सव पर भी आ जाते हैं। हमने उन्हें धोखा दिया, वे हमें देंगे । सच यह है कि हम मृत्यु के दुख को भुलाने के लिए जन्मदिन के उत्सव मनाए चले जाते हैं।
          असल में तो कोई भी जन्मदिन, जन्म की कम और मौत की ज्यादा याद दिलाता है। हम पीछे की तरफ देखते हैं, आगे की तरफ नहीं देखते। हर जन्मदिन का मतलब सिर्फ यह है कि आदमी एक वर्ष और मर गया, जिंदगी का एक वर्ष और कम हुआ। हम कितनी ही जन्मों की बातें करें, लेकिन मौत तो चली ही आती है। वह हर जन्म को सीढ़ी बना कर आती है। इसलिए जो जन्म में खुश है, वह वह मौत में दुखी होगा।
          आदमी मृत्यु से इतना घबरा गया है कि उसने मृत्यु को अपने चेतन मन से बाहर कर दिया है। वह उसकी बात ही नहीं करता, उसको खयाल में ही नहीं लाता। इसी डर से शायद हम मृत्यु को बाहर रखते हैं और जन्म को भीतर रखते हैं। जन्मदिन है मित्र का, तो हम फूल भेंट देते हैं, अभिनंदन कर आते हैं। यह जानते हुए कि कोई अभिनंदन काम नहीं आएगा, कोई फूल काम नहीं आएंगे, कोई शुभकामनाएं काम नहीं आएंगी।
          नहीं, यह नहीं कह रहा हूं कि ऐसा मत करें। ऐसे फूल है बड़ा सुंदर प्रतीक। वह खबर ले जाता है कि आया नहीं कि कुम्हलाना शुरू हो गया! सुबह आया नहीं कि सांझ उसे फेंक देना पड़ेगा। सुबह वह जन्मदिन की खबर लेकर आया था, सांझ मृत्यु की खबर लेकर जा चुका है। तो अभिनंदन करें, जन्मदिन की शुभकामना भी जरूर करें। लेकिन इससे किसी भ्रांति को जन्म न दें। मृत्यु को अलग काट कर मत रख दें। अच्छी दुनिया हो तो मैं मानता हूं कि हमें मृत्यु दिन ही मनाना चाहिए।

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