बढती आबादी ही भ्रष्टाचार की जननी है !!
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने ‘The World Population Prospects 2019: Highlights’ नामक एक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार वर्ष 2027 तक चीन को पछाड़ते हुए भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2019 में भारत की आबादी लगभग 1.37 बिलियन और चीन की 1.43 बिलियन है। वर्ष 2050 तक भारत की कुल आबादी 1.64 बिलियन के आँकड़े को पार कर जाएगी। तब तक वैश्विक जनसंख्या में 2 बिलियन लोग और जुड़ जाएंगे और यह वर्ष 2019 के 7.7 बिलियन से बढ़कर 9.7 बिलियन हो जाएगी। भारत का जनसँख्या घनत्व 2011 जनगणना के अनुसार 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर थी, जबकि चीन में 2015 की गणना के अनुसार में 142 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। अर्थात हमारे देश में जनसँख्या घनत्व चीन को काफी पीछे छोड़ चुका है।
एक तरफ जहां 1950 में दुनिया की कुल आबादी मात्र 2.50 अरब थी और फिर 37 सालो के अन्तराल के बाद 1987 में हमारी दुनिया की कुल आबादी 5 अरब तक पहुच गयी यानी इन 37 सालो में हमारी आबादी एक झटके में दोगुनी हो गयी, और धरती के संसाधन उतने के उतने ही रहे है, ऐसे में हर इन्सान की भूख मिटाना मुश्किल हो सकता है जिस कारण लोगो को बढती आबादी के प्रति सचेत करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 11 जुलाई को “विश्व जनसँख्या दिवस” मनाया जाने लगा।
देश में सुरसा की भांति बढती आबादी ने स्वतंत्रता के पश्चात् देश की प्रगति में सर्वाधिक प्रभावित किया है। देश की आजादी के समय मात्र चौतीस करोड़ पचास लाख थी, आज एक सौ पच्चीस करोड़ हो चुकी है। बढती आबादी ने 72 वर्षों में हुई सारी प्रगति को प्रभाव-हीन कर दिया है। देश में खाद्य उत्पादन जो 1950-51 में 50.83 मिलियन टन था 2013-14 में बढ़ कर 263 मिलियन टन तक पहुँच गया। इतना बड़ा उत्पादन इसलिए संभव हो पाया क्योंकि कृषि भूमि क्षेत्रफल 1960 में 133 मिलियन हेक्टयर था 2010 में बढ़ कर 142 मिलियम हेक्टयर हो गया और प्रति हेक्टेयर उपज जो 1960 में 700 किलो प्रति हक्टेयर थी 2010 में वैज्ञानिक संसाधनों का अधिकतम प्रयोग करने के कारण बढ़ कर 1900 किलो प्रति हेक्टेयर हो गयी अर्थात उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग किये जाने के पश्चात् ही यह संभव हो पाया। अब और अधिक वृद्धि होने की सम्भावना नहीं हो सकती। खाद्य उत्पादन में इतनी वृद्धि होने के बावजूद, आर्थिक असन्तुलन के कारण आज भी देश की बहुत बड़ी जनसँख्या को एक समय का भोजन ही नसीब होता है। वर्तमान समय में देश में पर्याप्त खाद्य भण्डार होने के कारण, खाद्य तेलों के अतिरिक्त अन्य खाद्य पदार्थ को विदेश से मांगने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। परन्तु यदि जनसँख्या वृद्धि नहीं रूकती है तो अवश्य ही हमें खाद्यान्न भी विदेशों से मंगा कर ही जनता का पेट भरना पड़ेगा। खाद्यान्न के अतिरिक्त अन्य सभी उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में आशातीत वृद्धि होने के बावजूद देश की सारी जनता के लिए सारी वस्तुएं, सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पायीं हैं। अतः गरीबी बढती जाती है दूसरी तरफ बढती आबादी ने बेरोजगारी के ग्राफ को कहीं अधिक किया है जिसके कारण भी गरीबी को बढ़ावा मिलता है, देश का विकास प्रभावित होता है।
जहाँ एक ओर उत्तरी अमरीका का क्षेत्रफल विश्व का 16% है, वहाँ विश्व की केवल 6% जनसंख्या निवास करती है एवं यह विश्व की सम्पूर्ण आय का 45% उपभोग करती है। दूसरी ओर, एशिया का क्षेत्रफल विश्व का 18% है, किन्तु वहाँ विश्व की जनसंख्या का 67 % पाया जाता है। यह केवल 12% आय का उपभोग करती है। अफ्रीका के देशों की स्थिति और भी चिन्तनीय है अतः स्पष्ट है कि अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। इनके निवासियों को न केवल अपर्याप्त भोजन मिलता है, वरन् पौष्टिकता की दृष्टि से भी यह अच्छा नहीं होता। विश्व की 6% जनसंख्या आज भी अधनंगी, अधभूखी, अस्वस्थ, अशिक्षित और दरिद्र है। बहुत ही थोड़े व्यक्ति साधन संपन्न हैं।
अत्यधिक आबादी के कारण सड़कों पर यातायात का बोझ बढ़ रहा है जिसके कारण सड़कों पर जाम तो लगता ही है, प्रदूषण की मात्रा भी भयावह स्थिति तक पहुँच जाती है। जिससे अनेक प्रकार की बीमारियों को निमंत्रण मिलता है इसका प्रभाव अधिक आबादी वाले शहरों पर अधिक पड़ता है। अच्छे स्वास्थ्य के बिना विकास का कोई महत्व नहीं रह जाता।
खाद्य पदार्थों की उत्पादन से अधिक मांग होने के कारण व्यापारियों को मिलावट जैसे घिनोने अपराधों के लिए प्रेरित करता है, जिससे जनता का स्वास्थ्य दावं पर लग जाता है। और अनेक बार तो मिलावट का शिकार अकाल मृत्यु तक पहुँच जाता है।
प्राकृतिक स्रोत की एक तय-सीमा होती है यदि वह सीमा पार हो जाती है तो स्रोत समाप्त हो जाते हैं और अभाव का माहौल बनना निश्चित है, यही स्थिति आज अपने देश की बेतहाशा बढ़ चुकी आबादी का है जिसके कारण सभी प्राकृतिक स्रोत अपनी क्षमता खो चुके हैं। वनों की संख्या अपना वजूद खोते जा रहे हैं। आवास की समस्या हल करते करते और उद्योगों के लिए जमीन उपलब्ध कराते-कराते और अन्य विकास के लिए आवश्यक जमीन उपलब्ध कराने के कारण खेती के लिए जमीन ख़त्म होती जा रही है। जबकि बढती आबादी के लिए और अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता है और निरंतर बढती जा रही है। हमारे देश में आबादी का घनत्व विश्व पटल पर सर्वाधिक हो चूका है। अतः बढती आबादी को रोकना किसी भी सरकार के लिए प्राथमिकता के रूप में लिया जाना नितांत आवश्यक है यदि अब भी आबादी इसी प्रकार बढती रही तो देश के लिए विकास करना तो दूर यथा स्थिति में रह पाना भी मुश्किल हो जायेगा।
आजादी के पश्चात् सर्वप्रथम परिवार नियोजन के सम्बन्ध में इंदिरा सरकार द्वारा गंभीरता से प्रयास किये गए थे। प्रयास तो सही समय पर सही कदम था परन्तु उसको लागू किये जाने का तरीका गलत था, अतः एक अच्छा प्रयास पूरी तरह से असफल हो गया। उसके बाद किसी भी सरकार की हिम्मत नहीं हो पायी कि वह परिवार नियोजन की योजना भी लागू कर सके। एक और सबसे बड़ा कारण यह भी है परिवार नियोजन का महत्त्व देश का जागृत हिदू तो समझता है, परन्तु अशिक्षित हिन्दू और मुसलमान परिवार नियोजन के महत्त्व को नहीं समझ रहे हैं जिसके कारण मुस्लिम आबादी के बढ़ने की तीव्रता हिन्दुओं से कही अधिक हो गयी है। देश में मुस्लिम की आबादी तेजी से बढ़ना हिन्दुओं के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है, अतः कही न कही वे न चाहते हुए भी परिवार नियोजन को अपनाने से हिचकते दिखाई देने लगे हैं। कुल मिला कर देश के लिए सभी देश वासियों को सामान रूप से सोचना आवश्यक है। आपके बच्चों के जीवन की गुणवत्ता सीमित परिवार के रहते ही संभव है, और हम सभी का, देश का विकास संभव हो सकता है। आगे आने वाले समय की भयावहता से बचा जा सकता है।
अतः बढती आबादी भी देश के विकास के लिए रोड़ा बन चुकी है राजनेताओं के लिए इस दिशा में कदम उठा पाना असंभव हो रहा है अतः यह समस्या देश के लिए घातक हो चुकी है। देश के विकास पर प्रश्नचिन्ह बन चुकी है। देश बढती जनसख्या के दुष्चक्र में फंस गया है। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि का रोकना आधुनिक विश्व में गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, आर्थिक पिछड़ापन, आदि पर विजय पाने का मूलमन्त्र है, राष्ट्र का बढ़ता हुआ विकास एवं उन्नत तकनीक का लाभ तो बढ़ती जनसंख्या ही निगल जाती है।
जनसंख्या पर नियंत्रण, बीमारी, भुखमरी पर नियंत्रण, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, मूलभूत सुविधाओं सड़क, पानी और सिंचाई के साधनों का विकास, विद्युत् उर्जा के उत्पादन पर जोर, स्कूलों व अस्पतालों का निर्माण, सभी के लिए न्यूनतम भोजन का प्रबंध, जी डी पी वृद्धि दर को तेजी से बढ़ाना, चरित्र निर्माण, राष्ट्रनिर्माण ये कुछ मुद्दे हैं जिनपर अब हमें खुद ही ध्यान देना होगा चूँकि सारे काम एक साथ करना संभव नहीं है किसी के लिए भी, अतः हमें खुद ही अपनी समस्याओं को चिन्हित करने के उपरांत अपनी प्राथमिकताओं का निर्धारण करना पड़ेगा।
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