‘डरो मत अभी मैं जिन्दा हूँ’ -------- जयप्रकाश नारायण !!
हर खासो-आम को आगाह किया जाता है
कि खबरदार रहें.......
अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से
कुण्डी चढ़ाकर बन्द कर लें
क्योंकि
एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी
अपनी काँपती कमजोर आवाज में
सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है............
@मुनादी (धर्मवीर भारती)
जेपी स्वतंत्रता एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के लिए महात्मा गाँधी के बाद बाद अकेले ऐसे नेता के रूप में याद किये जाते हैं जिन्होंने अपनी ऐतिहासिक भूमिकाओं का निर्वाह कर देश की लोकतांत्रिकता की रक्षा की। एक ऐसे नेता जिसने सत्ता के शीर्ष पे बैठे लोगो को धुल चटा दी, मगर खुद कभी भी किसी पद से चिपके रहना पसंद नही किया, जिसने हुंकार भरी – “सिंहासन खाली करो की जनता आती है” (रामधारी सिंह के कविता)।
सन 1974 में वी एम् तर्कुंदे के साथ मिल कर Citizens for democracy और 1976 में People’s Union for Civil Liberties के नाम से एक एन जी ओ का गठन समाजसेवा और नागरिक अधिकारों के लिए किया। जे पी ने 05 जून, 1975 को पटना के गांधी मैदान में विशाल जनसमूह को संबोधित किया। यहीं उन्हें ‘लोकनायक’ की उपाधि दी गई थी।
गाँधी मैदान में उन्होंने जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि “मेरी रुचि इस बात में नहीं की कैसे सत्ता हासिल की जाये, बल्कि इस बात में है की कैसे नियंत्रण जनता के हाथ में दे दिया जाये।“ जयप्रकाश गाँधीजी की तरह ही देश की असली समस्याओं से गहराई से जुड़े थे। उन्होंने भी गाँधी की तरह यह महसूस किया था कि भारत की साधारण जनता की मुख्य समस्या है - भूख, गरीबी और सामाजिक असमानता, भूमि और संपत्ति का असमान वितरण। उन्होंने इसे दूर करने के लिए जीवन भर संघर्ष किया। जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने की मांग जयप्रकाश नारायण ने 1973-74 के बिहार आंदोलन के दौरान की थी।
कुछ दिनों पूर्व जेपी की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि लोकनायक ने आपातकाल के खिलाफ लड़ाई लड़ी। ये बिलकुल सही है आपातकाल के खिलाफ उन्होंने निर्णायक लड़ाई लड़ी और उन्हें सफलता भी मगर दुर्भाग्य से उस क्रांति से उपजे हुए फसल आज खुद ही आपातकाल की भाषा बोल रहे हैं। जिस कांग्रेस के खिलाफ जेपी लड़ते हुए अपनी जान गवां दी और आज उन्ही के लम्पट चेले उसी कांग्रेस के साथ बैठ कर सत्ता के गलियारे में आज राजनीतिक रोटी सेक रहे हैं। हिन्दू संस्कृति में यह मान्यता है कि ‘आत्मा’ अमर है यदि इसमें रत्ती भर भी सच्चाई है तो निश्चित ही आज जेपी की आत्मा कराहती होगी।
भारतीय इतिहास में 11 अक्टूबर बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। जहाँ आज लोकनायक का जन्मदिन है वहीँ दूसरी तरफ आज महानायक(बोलीबूड) का भी जन्मदिन है और दुःख होता है देख और सुनकर कि आज लोकनायक पर महानायक भारी दिख रहा है।
‘भारत रत्न’ जयप्रकाश ने जिन मूल्यों एवं उद्देश्य के लिए संघर्ष किया था, वे तो पूरे नहीं हुए - ठीक उसी तरह जैसे गांधी सिर्फ इतिहास की चीज होकर रह गए। किंतु जनतंत्र के सामने कभी सिर नहीं झुकाने वाला, कभी कुर्सी और पद की चाहत नहीं रखने वाला गांधी और जयप्रकाश जैसा व्यक्तित्व सदियों तक याद रखा जाएगा।
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