Alumani Meet '84 Batch'~ R D Tata High School, Jamshedpur
आज 33 वर्ष बाद विद्यालय के विशालकाय प्रांगन को तस्वीरों में देख रहा हूँ, जहाँ पर शिक्षकों के उद्बोधनों ने सदा ही आगे बढ़ने को प्रेरित किया था। उसी विशालकक्ष को देख पाने की कोशिश कर रहा हूँ, जहाँ पर नित कर्मरत रहने की शक्ति मिलती था। उसी विशालकक्ष को देख रहा हूँ, जहाँ अधंकार से प्रकाश की ओर बढ़ने के मन्त्रों का जाप हमारे गुणसूत्रों में पिरोया गया था। उसी विशाल प्रांगन को देख रहा हूँ, जहाँ हम नित एकत्र होते थे, दिन के आकार को समेटने के लिये, भविष्य के विस्तार को समेटने के लिये, ज्ञान के आगार को समेटने के लिये।
33 वर्ष बीत गये हैं यहाँ से पढ़ कर निकले हुए, पर स्मृतियों में आज भी एक एक दृश्य स्पष्ट दिख रहा है। 33 वर्ष के कालखण्ड में स्मृतियों बिसरा जाती हैं, उनका स्थान न जाने कितने नये घटनाक्रम ले लेते हैं, न जाने कितने नये व्यक्तित्व ले लेते हैं। पता नहीं क्या बात है यहाँ की स्मृतियों में कि वे हृदय से जाने का नाम ही नहीं लेती हैं।
अनुभव बहुत कुछ सिखाता है, कभी वह शिक्षा व्यवस्थित और मध्यम गति में होती है, कभी समय के थपेड़े हमें विचलित कर जाते हैं। हर अनुभव के बाद आप उसका विश्लेषण करते हैं, भले ही पेन पेपर लेकर न करते हों या कम्प्यूटर पर कोई एक्सेल शीट न तैयार करते हों, पर मन में विश्लेषण इस बात का अवश्य होता है कि उस अनुभव में हुयी आपकी क्षति, लाभ, आपकी स्थिरता और सीखने योग्य बातें क्या क्या रहीं? कौन सी वह दृढ़ता थी जिसने हमे सहारा दिया, कौन सी वे बातें थी जिन्होंने हमें निराशा के तम में जाने से बचाया। मुझे हर बार इस बात की संतुष्टि रहती है कि उन सभी विश्लेषणों के उजले पक्षों के स्रोत इसी विद्यालय से उद्गमित होते हैं। मेरी कृतज्ञता आनन्दित हो जाती है, मेरा यहाँ बिताया हुआ एक एक वर्ष अपनी सार्थकता के गीत गाने लगता है, मेरा विद्यालय मेरे जीवन का आधार स्तम्भ बन कर खड़ा हो जाता है़, मेरा विद्यालय मेरे जीवन के शेष मार्ग का प्रकाश स्तम्भ बन खड़ा हो जाता है।
जन्म के समय हम शून्य होते है, मृत्यु के समय हम पुनः शून्य हो जाते हैं। बीच का कालखण्ड जिसे हम जीवन कहते हैं, एक आरोह और अवरोह का संमिश्रण है। आरोह मर्यादापूर्ण और अवरोह गरिमा युक्त। एक पीढ़ी दूसरे का स्थान लेती है और उसे आने वाली पीढ़ियों को सौंप देती है। अग्रजों का स्थान लेने में मर्यादा बनी रहे और अनुजों को स्थान देने में गरिमा। अग्रजों के अनुभवों से हम सीखते हैं, अनुजों को स्वयं से सीखने देते हैं। यही क्रम चलता रहता है, प्रकृति बढ़ती रहती है। आज जो बच्चे इस विद्यालय मे पढ़ रहे हैं, वे भी जब कई दशकों के बाद आयेंगे और विद्यालय के विशाल प्रांगन में तब वे भी उससे ग्रहण किये गये तत्वों को याद करेंगे।
शिक्षकों का आशीर्वाद रहा है हम पर, जो भी हम बन सके। आशीर्वाद की वह तेजस्वी ऊर्जा ही हमारा विश्वास है, हमारा अभिमान है। हमारे कर्म उन्हें भी ऐसे अभिमान से भर सकें, वही हमारी गुरुदक्षिणा है। ईश्वर हम सबको इतनी शक्ति दे और हमारी उपलब्धियाँ को उत्कृष्टता दे, जिससे हम अपने गुरुजनों का मस्तक ऊँचा और सीना चौड़ा रख सकें।
उसी कृतज्ञता का उत्सव मनाने के लिये सभी मित्र कल एकत्रित हुए थे, दुर्भाग्य से मैं पहुँच न सका जिसका दुःख मुझे जीवन पर्यंत सालता रहेगा। दोस्तों, तुम लोगों की नाराजगी को मैं समझ सकता हूँ परंतु परिस्थितियों के समक्ष मैं विवश था।
खैर......
तुमलोगों का
नीरज
खैर......
तुमलोगों का
नीरज
Comments
Post a Comment