(अ)- कृतज्ञ राष्ट्र का सरदार पटेल को नमन !
विडम्बना ही है इस देश की जिस एकीकृत
भारत में हम रह रहे हैं इसका सिर्फ और सिर्फ एकमात्र श्रेय किसी को मिलता है तो वह
है सरदार पटेल, पर दुर्भाग्य कि उस व्यक्ति को श्रधांजलि अर्पित करने के लिए देश
की राजधानी दिल्ली में आज तक एक भी स्थान किसी भी सरकार ने कोई समाधी स्थल के लिए आज
तक निर्धारित नहीं किया है। 32 लाख वर्ग किलोमीटर में बिखरे हुए भूभाग को एक तिरंगे के अधीन करने वाले लौह-पुरुष को यह देश 32 वर्ग फीट की एक समाधी तक नहीं दे सका।
क्या इसका मुख्य कारण उनका नेहरु परिवार से कोई संबंध नहीं होना है
या फिर कोई अन्य वजहें हैं क्यूंकि विजय घाट, किसान घाट, समता स्थल जैसे समाधी
स्थल हैं जिनका संबंध नेहरु घराने से नहीं है।
सरदार पटेल की मृत्यु के उपरांत उनके इच्छानुसार उनकी पुत्री मणिबेन
तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु जी से मिलने दिल्ली आयीं परन्तु नेहरु जी उनसे मिलने से
इनकार कर दिये, परन्तु मणिबेन के बार-बार आग्रह पर नेहरु जी मिलने को तैयार हुए।
तब मणिबेन ने उन्हें एक रूपये से भरी हुई एक बैग जिसमें "35 लाख रूपये" थे और एक
पुस्तिका जिसमे उन 'आम नागरिकों' के नाम का जिक्र था जिन्होंने कांग्रेस पार्टी को चंदा
के रूप में ये पैसे सरदार पटेल के पास जमा करवाए थे। मणिबेन ने नेहरु को बताया कि
सरदार पटेल ने उनसे आग्रह किया था कि मेरे मरने के बाद ये दोनों चीजें सिर्फ नेहरु
को ही सौपना है। 35 लाख रुपया और नामों की सूचि नेहरु को सौप कर मणिबेन वापस
अहमदाबाद लौट आयी। नेहरु ने न्यूनतम शिष्टाचार के नाते भी मणिबेन को एक ग्लास पानी तक पूछना उचित नहीं समझा और न ही
सदर पटेल के बाद किसी भी कांग्रेसी नेताओं ने पलट कर कभी उनकी खैरियत जानने का
प्रयत्न भी किया। मणिबेन पैसे के आभाव में चश्मे के बिना सड़कों पर चलते-चलते गिर
जाया करती थी। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री चिमन भाई पटेल(कांग्रेस) को जब यह
जानकारी मिली कि सरदार पटेल की स्वतंत्रता सेनानी पुत्री मणिबेन मरणासन्न है तब वह
एक फोटोग्राफर के साथ मिलने गया और फोटो खिंचवा कर लौट गया और फिर कभी नहीं गया।
मणिबेन की मृत्यु के बाद वही तस्वीर समाचारपत्रों में प्रकाशित हुई थी परन्तु एक
भी कांग्रेसी नेता उनके अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुआ था।
मणिबेन ने अपने पुस्तक “मणिबेन की डायरी” में एक जगह घनश्याम दास बिडला से अपनी वार्तालाप के कुछ अंश का जिक्र
किया है... घनश्याम दास बिडला ने मणिबेन से कहा था कि 'यदि नेहरु जी महात्मा गाँधी
के संपर्क में नहीं आते तो वे इस्लाम स्वीकार कर लेते'। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी
देसाई ने अपनी पुस्तक “ मेरा जीवन वृतांत “ में पृष्ठ संख्या 456 में लिखा है कि ‘पता
नहीं क्यों नेहरु को हिन्दू धर्म के प्रति एक पूर्वाग्रह था’। नेहरु हिन्दुओं को
दोयम दर्जे का नागरिक बनाने के लिए “हिन्दू कोड बिल” लाने की काफी कोशिस की थी।
लेकिन सरदार पटेल ने नेहरु को चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि मेरे जीते जी आपने
हिन्दू कोड बिल के बारे में सोचा भी तो मैं कांग्रेस से इस्तीफा दे दूंगा और बिल
के खिलाफ सड़कों पर हिन्दुओं को लेकर उतर जाऊंगा।
सरदार पटेल के मृत्यु के पश्चात नेहरु ने हिन्दू कोड बिल को संसद में
पास करवाया। उस बिल के चर्चा के दौरान आचार्य कृपलानी ने नेहरु को कौमवादी और
मुस्लिम परस्त कहा था। उन्होंने कहा था कि आप हिन्दुओं को धोखा देने के लिए जनेऊ
पहनते हो... ।
क्या किसी के जयंती पर दो शब्द कह देने से
या उसके नाम पर किसी आयोजन को आयोजित कर देने मात्र से उसके प्रति हमारी सच्ची
श्रद्धांजलि होगी? क्या पटेल के सपनों का भारत मात्र एक
दिन उनके नाम पर दौड़ लगाने से पूरा हो जाएगा? इस
बात पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है। देश को एक सूत्र में बांधने वाले पटेल की धर्मनिरपेक्षता की
आवश्यकता है न कि इन दिनों प्रचलित "वोटबैंक धर्मनिरपेक्षता" की। सरदार पटेल के नाम का इस्तेमाल सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ
की पूर्ति के लिए ना किया जाये यही सही मायने में सरदार पटेल के प्रति सच्ची
श्रदांजलि होगी।
विनम्र श्रधांजलि।
बहुत बढ़िया लिखा. कई नै बातें भी पता चलीं. आपका प्रश्न भी जायज़ है.
ReplyDelete* नई
ReplyDeleteसूंदर प्रस्तुति,
ReplyDeleteकोई चाहता कहा है सच्ची श्रद्धान्जली देना। व्यावसायिक हो गया है लोगो का सोच..
सूंदर प्रस्तुति,
ReplyDeleteकोई चाहता कहा है सच्ची श्रद्धान्जली देना। व्यावसायिक हो गया है लोगो का सोच..
सूंदर प्रस्तुति,
ReplyDeleteकोई चाहता कहा है सच्ची श्रद्धान्जली देना। व्यावसायिक हो गया है लोगो का सोच..
सुन्दर लेख,बधाई।
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