रोहिंग्या समस्या का हल ढूंढना आवश्यक.....!!
क्या रोहिंग्या
मुसलमान म्यांमार के नागरिक नहीं हैं?
रोहिंग्या मुसलमानों का दावा है कि वे म्यांमार(बर्मा) में 15वीं शताब्दी से रहे हैं। 1828 में ईस्ट इंडिया कंपनी
ने वहां के राजा को हराया और बंगाल के मुसलमानों को यहां बसाया। म्यांमार में
नागरिकों संबंधी कानून 1948 और 1982
में इस मान्यता को स्वीकार करते हुए उन्हें वहां का नागरिक भी माना गया है।
रोहिंग्यों की
ओर से यह दावा किया जाता है कि उनके पास ऐसे लिखित प्रमाण हैं कि 1948 के बाद उन्हें म्यांमार के नागरिक के रूप में स्वीकार किया गया था। यहां
तक कि म्यांमार के प्रथम राष्ट्रपति यू नू ने एक अवसर पर कहा था कि रोहिंग्या
बर्मा में सजातीय हैं। कई वर्षों तक बर्मा ब्राडकास्टिंग द्वारा रोहिंग्या की भाषा
में सप्ताह में तीन बार प्रसारण किया जाता था। रंगून विश्वविध्यालय में रोहिंग्या विद्यार्थियों
की यूनियन लंबे समय तक अस्तित्व में थी।
वर्ष 2010 में संपन्न चुनाव (जो सैनिक शासन के दौरान हुआ आखिरी चुनाव था) रोहिंग्या
राजनीतिक दलों ने भाग लिया। तीन रोहिंग्या संसद में चुन कर भेजे गए। परंतु 2015 में रोहिंग्याओं से वोट का अधिकार छीन लिया गया।
म्यांमार के
रोहिंग्या मुसलमानों के अतिरिक्त भारत में बसे रोहिंग्या मुसलमानों की भी समस्या
गंभीर है। ये समय-समय पर आकर भारत में बसे हैं। एक अधिकृत अनुमान के अनुसार इनकी
संख्या लगभग 40,000 है। भारत सरकार चाहती है कि इन्हें भारत से वापस
भेज दिया जाए। इस मुद्दे को लेकर हमारे देश में भी विभिन्न मत हैं।
रोहिंग्या
मुसलमान के बारे में अब यह स्पष्ट हो चूका है कि आतंकी गतिविधियों में शामिल रहे
हैं। इन्होंने म्यांमार में अशांति फैलाने का काम किया है। इस प्रकार की
गतिविधियों में संलिप्त रहकर काम करने वाले रोहिंग्याई मुसलमान के पक्ष में भारत
में वातावरण बनाना निश्चित रुप से एक भीषण खतरे का संकेत है। भारत में मात्र वोट
बैंक बनाने के लिए बिना विचार किए इस संभावित खतरे को खुलेआम आमंत्रण देने का काम
कुछ राजनीतिक दल एवं संस्थाएं कर रही हैं।
आज देश में
घुसपैठ एक ऐसी समस्या है, जो बाहरी लोगों द्वारा पैदा की गई है। भारत पहले से
ही बांग्लादेशी घुसपैठ से परेशान है, अब रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ से परेशानी और
बढ़ती जा रही है। घुसपैठ करने वाला व्यक्ति भले ही भारत में आकर निवास कर रहा हो,
लेकिन उसका मानसिक जुड़ाव अपने मूल देश के साथ ही रहता है। इसलिए कहा
जा सकता है कि घुसपैठ हमेशा ही देशद्रोह को बढ़ावा देती है।
रोहिंग्या
मुसलमानों के पक्ष में जिस प्रकार से भारत में माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा
है, उस प्रयास की दिशा चीन और बंग्लादेश के प्रति क्यों नहीं हैं। जबकि चीन और
बंग्लादेश म्यांमार के ज्यादा समीप हैं। चीन में उनके रहने के लिए मांग क्यों नहीं
की जा रही। रोहिंग्याई भारत ही आना क्यों चाहते हैं। भारत में रोहिंग्या मुसलमान का
घुसपैठ, मुसलमानों की संख्या बढ़ाने का एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र हो।
ये अत्यधिक गरीब
हैं, उन्हें मानव जीवन की कोई भी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। इसके कारण ही
उन्हें आसानी से पैसे का लोभ दिखाकर उन्हें आतंकी कार्यवाही से जोड़ लिया जाता है जिसके
कारण देश की सुरक्षा के लिए खतरा समझा जा रहा है। इनकी फटेहाल हालत पर भारत का
मुस्लिम नेतृत्व हमदर्दी दिखाकर इन्हें यहां रहने देने की पैरवी कर रहा है। भारत
में लगभग 40 हज़ार रोहिंग्या मुस्लिम विभिन्न शहरों में रह रहे हैं, जिनमे से 17000 के पास सयुंक्त राष्ट्र का शरणार्थी पहचान पत्र है।
देश के सभी राजनीतिक
दलों को एवं सामाजिक संगठनो को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर इस गंभीर मसले पर एक ठोस
मसौदा तैयार करना ही होगा क्यूंकि कुछ अपराधिक तत्वों के वजह से उन निर्दोष रोहिंग्या
मुसलमान महिलाओं एवं बच्चों को भी जिल्लत की जिंदगी जीने को विवश होना पड़ रहा है
जिसके लिए उन्होंने कोई ऐसा अक्षम्य अपराध नहीं किया है और जो उनके मानवाधिकार का
उल्लंघन भी है जो उन्हें जन्म के साथ नैसर्गिक रूप से प्राप्त है।
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