वृधावस्था की तरफ बढती हमारी स्वतंत्रता !!
आजादी कहें या स्वतंत्रता ये ऐसा शब्द
है जिसमें पूरा आसमान समाया है। आजादी एक स्वाभाविक भाव है या यूँ कहें कि आजादी
की चाहत मनुष्य को ही नहीं जीव-जन्तु और वनस्पतियों में भी होती है। सदियों से
भारत मुगलों के और फिर अंग्रेजों की दासता में था, उनके अत्याचार से जन-जन त्रस्त
था। खुली फिजा में सांस लेने को बेचैन भारत में आजादी का पहला बिगुल 1857 में बजा किन्तु कुछ कारणों से हम गुलामी के बंधन से मुक्त नही हो सके।
वास्तव में आजादी का संघर्ष तब अधिक हो गया जब बाल गंगाधर तिलक ने कहा कि “स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है”।
अनेक क्रांतिकारियों और देशभक्तों के
प्रयास तथा बलिदान से आजादी की गौरव गाथा लिखी गई है। यदि बीज को भी धरती में दबा
दें तो वो धूप तथा हवा की चाहत में धरती से बाहर आ जाता है क्योंकि स्वतंत्रता
जीवन का वरदान है। व्यक्ति को पराधीनता में चाहे कितना भी सुख प्राप्त हो किन्तु
उसे वो आन्नद नही मिलता जो स्वतंत्रता में कष्ट उठाने पर भी मिल जाता है। तभी तो
कहा गया है कि
पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।
जिस देश में चंद्रशेखर, भगत सिंह, राजगुरू, सुभाष चन्द्र, खुदिराम बोस, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रान्तिकारी
तथा गाँधी, तिलक, सरदार पटेल, नेहरू, जैसे देशभकत मौजूद हों उस देश को गुलाम कौन रख सकता था। आखिर देशभक्तों के
महत्वपूर्ण योगदान से 14 अगस्त की अर्धरात्री को अंग्रेजों
की दासता एवं अत्याचार से हमें आजादी प्राप्त हुई थी। ये आजादी अमूल्य है क्योंकि
इस आजादी में हमारे असंख्य भाई-बन्धुओं का संघर्ष, त्याग तथा
बलिदान समाहित है। ये आजादी हमें उपहार में नही मिली है। वंदे मातरम् और इंकलाब
जिंदाबाद की गर्जना करते हुए अनेक वीर देशभक्त फांसी के फंदे पर झूल गए। 13
अप्रैल 1919 को जलियाँवाला हत्याकांड, वो रक्त रंजित भूमि आज भी देश-भक्त नर-नारियों के बलिदान की गवाही दे रही
है।
आजादी अपने साथ कई जिम्मेदारियां भी
लाती है, हम सभी को जिसका
ईमानदारी से निर्वाह करना चाहिए किन्तु क्या आज हम 67 वर्षों
बाद भी आजादी की वास्तिवकता को समझकर उसका सम्मान कर रहे है? आलम तो ये है कि यदि स्कूलों तथा सरकारी दफ्तरों में 15 अगस्त न मनाया जाए और उस दिन छुट्टी न की जाए तो लोगों को याद भी न रहे कि
स्वतंत्रता दिवस हमारा राष्ट्रीय त्योहार है जो हमारी जिंदगी के सबसे अहम् दिनों
में से एक है ।
एक सर्वे के अनुसार ये पता चला कि आज
के युवा को स्वतंत्रता के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी फिल्मों के माध्यम से
मिलती है और दूसरे नम्बर पर स्कूल की किताबों से जिसे सिर्फ मनोरंजन या जानकारी ही
समझता है। उसकी अहमियत को समझने में सक्षम नही है। ट्विटर और फेसबुक पर खुद को
अपडेट करके और आर्थिक आजादी को ही वास्तिक आजादी समझ रहा है। वेलेंटाइन डे को स्वतंत्रता दिवस से भी बङे पर्व के रूप में मनाया जा
रहा है।
आज हम जिस खुली फिजा में सांस ले रहे
हैं वो हमारे पूर्वजों के बलिदान और त्याग का परिणाम है। हमारी नैतिक जिम्मेदारी
बनती है कि मुश्किलों से मिली आजादी की रुह को समझें। आजादी के दिन तिरंगे के रंगो
का अनोखा अनुभव महसूस करें इस पर्व को भी आजद भारत के जन्मदिवस के रूप में पूरे
दिल से उत्साह के साथ मनाएं। स्वतंत्रता का मतलब केवल सामाजिक और आर्थिक
स्वतंत्रता न होकर एक वादे का भी निर्वाह करना है कि हम अपने देश को विकास की
ऊँचाइयों तक ले जायेंगें। भारत की गरिमा और सम्मान को सदैव अपने से बढकर समझेगें। रविन्द्र नाथ टैगोर की
कविताओं से कलम को विराम देते हैं।
हो चित्त जहाँ भय-शून्य, माथ हो उन्नत
हो ज्ञान जहाँ पर मुक्त, खुला यह जग हो
घर की दीवारें बने न कोई कारा
हो जहाँ सत्य ही स्रोत सभी शब्दों का
हो लगन ठीक से ही सब कुछ करने की
हों नहीं रूढ़ियाँ रचती कोई मरुथल
पाये न सूखने इस विवेक की धारा
हो सदा विचारों ,कर्मों की गतो फलती
बातें हों सारी सोची और विचारी
हे पिता मुक्त वह स्वर्ग रचाओ हममें
बस उसी स्वर्ग में जागे देश हमारा।
हो ज्ञान जहाँ पर मुक्त, खुला यह जग हो
घर की दीवारें बने न कोई कारा
हो जहाँ सत्य ही स्रोत सभी शब्दों का
हो लगन ठीक से ही सब कुछ करने की
हों नहीं रूढ़ियाँ रचती कोई मरुथल
पाये न सूखने इस विवेक की धारा
हो सदा विचारों ,कर्मों की गतो फलती
बातें हों सारी सोची और विचारी
हे पिता मुक्त वह स्वर्ग रचाओ हममें
बस उसी स्वर्ग में जागे देश हमारा।
स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर सभी को हार्दिक बधाई।
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