अंग्रेजी भाषा से हिंदी साहित्य की ओर !!
हिंदी साहित्य को अपनी विपुल लेखनी से बुलंदियों के शिखर पर पहुंचाने में सिर्फ हिंदी भाषा के साहित्यकार ही नही अपितु कई ऐसे लेखक भी हुए जो महाविद्यालयों में अंग्रेजी भाषा के प्राध्यापक होते हुए भी लेखन- कार्य का मार्ग हिंदी को चुना और बहुत ही कुशलता से इस दायित्व का निर्वाह करते हुए हिंदी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार बने।
हिंदी दिवस पर तमाम कर्मकांडों व अनुष्ठानों के बीच जब राजभाषा हिंदी को याद किया जा रहा है तो हिंदी की धरा को उर्वर बनाने वाले इन लेखकों के योगदान को भी मददेनजर रखा जाना चाहिए।
हरिवंश राय बच्चन:~ बच्चन जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की एवं इलाहाबाद में अध्यापन का कार्य भी किया।
मोहन राकेश:~
अमृतसर में जन्मे तथा पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए की डिग्री प्राप्त कर मोहन राकेश ने कहानीयों को एक नयी दिशा दी। सारिका के संपादक होकर कथा साहित्य को नए तेवर और नए कथ्य से संवारने में उन्होंने एक मार्गदर्शक और सर्जक होने की भूमिका निभाई।
रामविलास शर्मा (आलोचक):~
रामविलास शर्मा का नाम हिंदी के उन दिग्गज आलोचकों में लिया जाता है जिन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एमए, पीएचडी की उपाधि हासिल की और अंग्रेज़ी विभाग में अध्यापन किया। अंग्रेजी के कुशल अध्यापक होते हुए भी उन्होंने प्रेमचंद पर अपनी किताब से लेखन की शुरुआत की तथा लगभग सौ कृतियां लिखकर हिंदी को समृद्ध किया। हिंदी के उन्नायकों में प्रेमचंद के साथ भारतेन्दु, निराला और रामचंद्र शुक्ल पर उन्होंने मानक पुस्तकें लिखीं।
कुंवर नारायण (कवि):~
कुंवर नारायण ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए किया एवं हिंदी को अपनी अभिव्यक्ति का संसाधन बनाया। ‘चक्रव्यूह’ से अपनी कविता का शुभारंभ करने वाले कुंवर नारायण का काव्य हिंदी में उत्कृष्टता का मानक माना जाता है। भारत के विश्वप्रसिद्ध कवियों की सूची बनाई जाए तो वे अज्ञेय के बाद हिंदी कविता में सबसे चर्चित कवि होंगे। परिवेश: हम तुम, अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, इन दिनो, हाशिये का गवाह जैसे कविता संग्रहों के साथ आत्मजयी, वाजश्रवा के बहाने व कुमारजीव जैसे प्रबंध काव्यों ने उनकी ख्याति में चार चांद लगाया।
राजी सेठ (कथाकार):~
1935 में नौशेरा छावनी (अविभाजित पाकिस्तान) में जन्मी और एमए अंग्रेजी की उपाधि अर्जित करने वाली हिंदी की सुपरिचित कथाकार उपन्यासकार राजी सेठ ने हिंदी कथा साहित्य को दर्शन और संवेदना की एक अनूठी गंध से सींचा है। दर्जनों कहानी संग्रहों और कई उपन्यासों की रचयिता राजी सेठ ने भाषा के स्तर पर हिंदी की किस्सागोई को इस तरह साधा और बुना है कि भाषा की चूढ़िया कसी नज़र आती हैं। ‘तत्सम’ और ‘निष्कवच’ जैसे क्लासिक उपन्यास अपने कथ्य व शिल्प में अनूठे हैं।
अशोक वाजपेयी (कवि):~
अशोक वाजपेयी ने स्टीफेंस कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए अंग्रेजी की उपाधि पाई तथा कुछ दिनों अध्यापन के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुन लिए जाने के बावजूद उन्होंने जो भी लिखा, हिंदी में लिखा। बेहतरीन अंग्रेजी जानने के बावजूद हिंदी में लिखने में उन्हें कभी आत्महीनता नहीं महसूस हुई। ‘शहर अब भी संभावना है’ से अपने कवि जीवन का शुभारंभ करने वाले वाजपेयी ने मध्यप्रदेश में भारत भवन जैसे सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना कर न केवल हिंदी की खड़ी बोली के लेखन को केंद्रीयता दी बल्कि कला संगीत व साहित्य संस्कृति को भारत के सांस्कृतिक मानचित्र पर एक गौरव की तरह उकेरा। लगभग एक दर्जन काव्यकृतियों के रचयिता अशोक वाजपेयी ने हिंदी आलोचना व कला समीक्षा को भी खूबसूरती से समृद्ध किया है।
डॉ रमेश चंद्र शाह:~
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में स्नातकोत्तर करने के पश्चात हमीदिया महाविद्यालय में अध्यापन का कार्य करते हुए हिंदी साहित्य के ऐसे सर्जक हुए जिन्होंने काव्य, उपन्यास, कहानी और आलोचनाओं से साहित्य-सृजन का आत्मबल प्राप्त किया। गोबर-गणेश, हरिश्चन्द्र आओ, कछुए की पीठ पर, वागर्थ, देखते हैं शब्द भी अपना समय।
अरुण कमल (कवि):~
हिंदी के अनन्य कवि अरुण कमल ने भी अंग्रेजी की पढाई की है। वे पटना विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के अध्यापक रहे हैं तथा हिंदी में कविताएं लिखते हैं।अब तक सबूत, नए इलाके में, पुतली में संसार, मैं वो शंख महाशंख –कविता संग्रह आ चुके हैं तथा कविता समय व गोलमेज दो निबंध संग्रह भी। वे साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित कवियों में हैं।
अनामिका (कवयित्री):~
हिंदी के समकालीन बड़े लेखकों के बीच अपनी कविता और किस्सागोई से हिंदी को एक अलग चेहरा और भाव भंगिमा प्रदान करने वाली अनामिका ने अंग्रेजी साहित्य में एमए , पीएचडी और डीलिट की उपाधि हासिल की है तथा इस वक्त हिंदी में जानी मानी लेखिकाओं में एक हैं। 1963 में मुजफ्फरपुर(बिहार) में जन्मी अनामिका दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कालेज में अंग्रेजी की प्राध्यापिका हैं तथा हिंदी में जीवन व समाज की सूक्ष्म से सूक्ष्म गतिविधियों को उकेरने वाली कवयित्रियों में एक हैं। गलत पते की चिट्ठी, बीजाक्षर, अनुष्टुप, समय के शहर में, खुरदुरी हथेलियां, दूब धान जैसे कविता संग्रहों व अवांतरकथा, पर कौन सुनेगा, दस द्वारे का पिंजरा, तिनका तिनके पास जैसे उपन्यासों की लेखिका अनामिका की रचनाओं में जीवन की धड़कन है।
अनुवाद कार्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें जनवरी 2017 में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान जयपुर बुक मार्क के मंच से वाणी फ़ाउंडेशन का ‘डिस्टिंग्विश्ड ट्रांसलेटर अवार्ड’ प्रदान किया है।
हिंदी दिवस पर तमाम कर्मकांडों व अनुष्ठानों के बीच जब राजभाषा हिंदी को याद किया जा रहा है तो हिंदी की धरा को उर्वर बनाने वाले इन लेखकों के योगदान को भी मददेनजर रखा जाना चाहिए। इन्हें याद करते हुए हम भूल न जाएं कि अंग्रेजी पढे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि ज्ञानेन्द्रपति कहते हैं कि हिंदी की गाय को दुहने वाले ज्यादा है, खिलाने वाले कम।
आपका ब्लॉग देखकर अपार प्रसन्नता हुई :)
ReplyDeleteब्लॉग तो काफी दिनों से है,अपडेट नहीं किया था पर आपकी सलाह अच्छी लगी तो सोचा अब इसे ही व्यवस्थित किया जाये।
Deleteशुक्रिया।
very inspiring!!
ReplyDeleteशुक्रिया दीपांशु।
Deleteबहुत अच्छा आलेख हुआ है। अच्छी और उपयोगी जानकारी उपलब्ध करवाई है आपने। इसमें हिन्दी कविता की ग़ज़ल धारा का एक भी नाम न देखकर अचरज में हूँ। अंतिम पंक्ति बड़ी मारक और सौ फीसद सही ली है।
ReplyDeleteशुक्रिया सर।
ReplyDeleteसर मेरा प्रयाश होगा कि मैं एक पोस्ट लिखूं उन सभी गैर हिंदी भाषी लोगों के अतुलनीय प्रयाश पर जिन्होंने हिंदी भाषा के उत्थान लिए काफी अपना योगदान दिया है।