हीनभावना कर रही है हिंदी की दुर्दशा !!


बहुत दुःख होता है कि हमारे देश में भी आज हिंदी दिवस मनाने की आवश्यकता पड़ गयी जिसकी जनभाषा और लोकवाणी ही सहस्त्राब्दियों से हिंदी थी। 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है, जिस भाषा ने स्वतंत्रता अभियान में अपनी प्रमुख भूमिका को अपनाया था। क्या हिंदी अपने ही देश में विलुप्त होती जा रही है जिसे बचने के लिए हमें एक विशेष दिन उसके लिय नियत कर उसे श्रधांजलि अर्पित कर अपनी ओपचारिकता की पूर्ति करते हैं। मुझे तो ज्ञात नहीं है कि कभी भी फ्रेंच डे, चाइनीज डे या जैपनीज डे कभी मनाया जाता है।  
  
अमेरिका की मातृभाषा US English है, ब्रिटेन की इंग्लिश, फ़्रांस की फ्रेंच, रूस की रशियन, जर्मनी की जर्मन, चीन की चाइनिज और जापान की जापानीज। इन देशों में अपनी मातृभाषा में ही पढ़ाई होती है चाहे वह विज्ञान और तकनीकी हो, चिकित्सकीय हो या फिर साहित्यिक। लेकिन महाशक्ति बनने का ख्वाब देख रहा हमारा देश अपनी मुख्य भाषा अंग्रेजी को बनाना चाहता है...! क्या इसका ऐसे में महाशक्ति बनना संभव है क्या?

भारत में हिंदी की स्थिति ठीक वैसी ही है जैसे कोई लड़की/स्त्री पारंपरिक सलवार कमीज और लम्बा सा एक दुपट्टा ओढ़ कर अपने कॉलेज/ कार्यालय जाती है और उन्ही के साथ पढने वाली/ काम करने वाली उसकी महिला मित्र उन्हें बहन जी कह संबोधित करती हैं। आधुनिकता का लिबास ओढ़े हुए युवा-युवती उसका उपहास उड़ाने से चुकते नहीं हैं। और तथाकथित बहन जी या तो खून के घूंट पी कर रह जाती है अथवा मुख्यधारा में समा जाने के लिए लाचार हो जाती है।

लोगों का तर्क होता है कि अंग्रेजी विज्ञानं एवं तकनीकी की भाषा है, इसलिए यह वहां अनिवार्य है, तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि विज्ञान और तकनीकी में सबसे ज्यादा नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाला देश इजराईल है और इसकी भाषा अंग्रेजी नहीं, प्रथम भाषा हिब्रू है और दूसरी भाषा अरबी। लेकिन तकनीकी के मामले में इजराईल विश्व में सिरमौर है। जापान भी तकनीकी विकाश के लिए हमारे सामने एक अच्छा उदहारण है।

हमारे कुंभकर्णी निद्रा में सोये हुए तंत्र को कोरिया से सीखना चाहिए कि 8 करोड़ आबादी वाले इस देश में सारी उच्च शिक्षा उनकी स्थानीय भाषाओँ में उपलब्ध है। इजराईल, जो कि मात्र 80 लाख की आबादी वाला देश है, में सभी उच्च शिक्षा संस्थान हिब्रू भाषा में संचालित हो रहा है और उनका स्तर विश्व में सबसे अच्छा है।

दुनिया भर के रिसर्च बताते हैं कि जो विद्यार्थी गणित और विज्ञान अपनी मातृभाषा में पढ़ते हैं, वे अस्थायी या विदेशी भाषा में पढने वाले विद्यार्थी से ज्यादा मेधावी होते हैं।

हिंदी की दुर्दशा में सबसे अहम भूमिका संविधान निर्माताओं की एव संसद की है। जब स्वतंत्रता के पश्चात हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की बात उठी तो संसद में इसे राजभाषा का दर्जा दिया गया एवं राजभाषा अधिनियम 3[3] के तहत यह निर्देशित किया गया कि सभी सरकारी दस्तावेज, निर्देश एवं निर्णय अंग्रेजी में लिखे जायेंगे और साथ ही उन्हें हिंदी में अनुवाद कर दिया जायेगा।

हिंदी जनसंपर्क की भाषा है और इसका प्रयोग करना हमारा नैतिक दायित्व है। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल से हिंदी को थोड़ी बहुत लोकप्रियता मिलने लगी है दक्षिण भारत एवं गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी जो की सराहनीय है पर उतनी नहीं जितनी अपेक्षित है।

अब हमें यह तय करना है कि हमें कैसा भारत चाहिए। शहर में पले-बढे अंग्रेजी भाषा जानने वाले मुठ्ठी भर लोगों का भारत या शहरों और गावों के उन करोड़ों युवकों का भारत जो अंग्रेजी न जानने के कारण अयोग्य घोषित कर दिए गए हैं। क्या मुठ्ठी भर अंग्रेजी जानने वालों के कंधे पर सवार हो दुनिया की महाशक्ति बनेगा या आत्म-मंथन और अंग्रेजी के भय से भयभीत करोड़ों युवाओं को मुक्क्त कर उन्हें मुख्यधारा में लायेगा। 

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