हमने रक्षा और बंधन का अर्थ बेहद छोटा कर दिया:~


"येन बद्धो बलि: राजा दानवेंद्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।"
अर्थात-
"जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेंद्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षा से मैं तुम्हे बांधता हूं जो तुम्हारी रक्षा करेगा।"
इसके बारे में आम धारणा यह है कि यह त्योहार भाई द्वारा बहन की रक्षा का संकल्प लेने का प्रतीक है। लेकिन साथ - साथ यह भी कहा जाता है कि यह त्योहार हमारे देश में अत्यंत प्राचीन काल से मनाया जा रहा है।
यदि ये दोनों बातें सच हैं, तो ये कई प्रश्नों को जन्म देती हैं। उस जमाने की अनेक ऐसी गाथाएं आज भी सुनने को मिलती हैं कि उस समय जो भी राजा हुआ करते थे, वे किस तरह अपनी प्रजा की भलाई का हर संभव ख्याल रखते थे। यहां तक कि अपनी प्रजा की देखभाल के लिए वे गुप्तचर भी रखते थे, जो उन्हें ऐसी वारदातों की जानकारी दे सकें। कई बार राजा खुद भी अपना वेश बदल कर भ्रष्टाचार करने वाले लोगों की निगरानी करते थे। तो क्या उस समय की माताएं और बहनें इतनी असुरक्षित थीं , जो अपने भाईयों के हाथ में राखी बांध कर सुरक्षा की गुहार करती थीं ?
इसके अलावा यह भी सोचने का विषय है कि हर बहन अपने भाई से ही रक्षा की अपेक्षा क्यों करती है ? उसके घर में उसके अन्य बड़े-बुजुर्ग तथा नाते-रिश्तेदार भी तो होते हैं, जो उसकी रक्षा कर सकते हैं। यदि भाई से बहन की यही अपेक्षा है, तो पांच साल की उम्र वाला कोई भाई, पंद्रह साल की उम्र वाली अपनी बहन की रक्षा कैसे कर सकता है? इसके अलावा, जब बहनें विवाह के बाद अपने-अपने घर चली जाती हैं, तो उस समय दोनों एक जगह तो होते नहीं कि एक-दूसरे की तात्कालिक रक्षा कर सकें। घरेलू हिंसा रोकने में भाई कैसे मददगार हो सकेगा? और राखी बांधो या न बांधो, भाई का फर्ज वैसे भी तो रक्षा करने का ही होता है और वह करता भी है।
एक रोचक बात यह भी है कि बहनों के अलावा ब्राह्मण लोग भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं और उससे यह कहते हैं कि इंद्राणी ने इंद्र को राखी बांधी थी और उससे इंद्र को विजय प्राप्त हुई थी। यदि यह त्योहार भाई द्वारा बहन की रक्षा के संकल्प का ही प्रतीक होता, तो फिर ब्राह्मणों द्वारा राखी बांधने का रिवाज क्यों शुरू होता ? इससे ऐसा लगता है कि यह त्योहार बहनों को भी ब्राह्मणों का दर्जा देकर, और भाई को यजमान समझ कर राखी बांधने का प्रतीक है, क्योंकि दोनों द्वारा राखी बांधने की रीति समान है।


असल में रक्षा बंधन का अर्थ केवल शारीरिक रक्षा नहीं है , बल्कि आत्मा की रक्षा पांच विकारों से करने से है। हर एक को इनसे रक्षा करनी ही चाहिए। यह सारा घालमेल इसलिए हुआ है क्योंकि रक्षा और बंधन - ये दोनों ही मूल रूप से संस्कृत से आए हुए शब्द हैं। लोगों ने अपने-अपने हिसाब से इनका अर्थ निकाल लिया है। संस्कृत साहित्य में रक्षा का प्रयोग रहस्य की रक्षा के अर्थों में हुआ है। शरीर की भी रक्षा होती है। लेकिन धन की भी रक्षा होती है। 
हमारे धार्मिक ग्रंथों में धर्म रक्षा का काफी वर्णन है। पर वहां इसका अर्थ धर्म की रक्षा के लिए दूसरों का गला काटना नहीं है। धर्म रक्षा का अर्थ अपने धर्म का पालन करना और उस रास्ते से नीचे नहीं फिसलना माना गया है। कोई व्यक्ति धर्म की रक्षा तब करता है, जब वह अपने लिए निर्धारित धर्म का पालन करने में सफल होता है। 
ग्रंथों में लिखा गया आपदे धनम रक्षति। इसका आशय यह था कि जो आपदा में आपकी रक्षा करे वही धन है। लेकिन इसका अर्थ हमने यह बना लिया कि आपद काल के लिए धन बचा कर रखो। इसी तरह रक्षा बंधन सिर्फ भाई-बहन के बीच रक्षा के करार का त्योहार बन कर रह गया।

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