मन की बात:~ गेरुआ से सावधान
ऋषि मुनियों के देश में अब कोई अऋषि न रहा !!
पुरातन काल में, विश्व के दृश्य-पटल पर यदि किसी देश की संस्कृति ने पूर्ण शुभ्रता एवं दिव्यता को प्राप्त किया तो वह था - भारत। यज्ञ की पवित्रा सुगंध से परिपूर्ण इसका आकाश; ऋषियों-महर्षियों द्वारा उच्चारित मंत्रों से गुंजित वातावरण, प्रत्येक निवासी में देवत्व की झलक - इस धरा पर साक्षात् स्वर्ग का अनुभव देते थे। इस भूमि के पावन स्पर्श से पारस बने विवेकानंद जी का कहना था कि, “हमें गर्व है कि हम अनंत गौरव की स्वामिनी इस भारतीय संस्कृति के वंशज हैं, जिसने सदैव दम तोड़ती मानव जाति को अनुप्राणित किया है।”
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है-“या प्रथमा संस्कृति विश्वारा”। जहाँ समय की प्रचण्ड धाराओं में यूनान, रोम, सीरीया, बेबीलोन आदि संस्कृतियाँ बिखरकर अपना अस्तित्व खो बैठीं, वहीं भारतीय संस्कृति ही ऐसी एकमात्रा संस्कृति है जो आज भी अडिग खड़ी रही। क्योंकि इस संस्कृति के आधरभूत स्तम्भ दिव्य-विभूतियाँ थी, ऐसे ऋषिगण थे जिन्होंने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधर-परमात्मा के गूढतम ज्ञान को प्रकट कर लिया था।
मैक्स मूलर ने पुस्तक ‘India - What can it teach us’ में लिखा था कि “यदि मुझसे पूछा जाए कि आकाश मंडल के नीचे कौन सी वह भूमि है, जहाँ मानव ने अपने हृदय में अवस्थित ईश्वरीय गुणों का पूर्ण विकास किया, तो मेरी उंगली भारत की ओर उठेगी। ग्रीस के राजदूत मैगस्थनीश भी यहाँ की संस्कृति से अत्यंत प्रभावित हुए। यहाँ से लौटने पर उन्होंने कहा था कि “रात्रि के समय भी भारत में कोई अपने मकान में ताला नहीं लगाता। मकान के भीतर केवल चाँद की सत्यनिष्ठ किरणें ही प्रवेश करती है, अन्य कोई संदिग्ध व्यक्ति नहीं। उपनिषद् में भारतीय सम्राट अश्वपति कैकेय भी कहते हैं-‘न मे स्तेनो जनपदे’ अर्थात् मेरे राज्य में कोई चोर नहीं है। ऐसा था भारत का निष्कलंक स्वरूप और उसकी अनुकरणीय प्रसिद्धि।
परन्तु उपरोक्त गाथा आज एक स्वर्णिम इतिहास बन कर रह गई है। आज वह ठोस आधार कहाँ लुप्त हो गया जिसके ऊपर इस महान संस्कृति का गौरवमयी महल स्थापित था? ऋषिगणों के आशीषों में पली, श्री राम की मर्यादा, बुद्ध की सत्यपथगामिता, श्री कृष्ण के दिव्य-कर्म पथ की साक्षी यह भारत-भूमि आज इतनी निर्जीव और शुष्क क्यों हो गई है?
भारतीय मान्यताओं के अनुसार, जब कोई व्यक्ति दुःख –सुख को समान स्थिति मानते हुए, अपने शरीर – मन –विचार पर नियंत्रण कर लेता है, तो वो ऋषि बन जाता है। भारत के ऋषि तपस्या को अत्यधिक महत्त्व देते रहे हैं। और वे अपने शरीर, परिवेश, स्वजन, स्वहित–परहित सब कुछ भूल कर केवल और केवल परम शक्ति को पाने हेतु प्रयासरत रहते रहे हैं।
आज उसी ऋषि परंपरा के वर्तमान सभी प्रमुख ध्वजवाहकों को देखने और समझने के उपरांत विश्वास नहीं होता है कि ‘कृपालु महाराज’ जिसको वर्तमान काल का कबीर कहा जाता है, इनपर वर्ष 2007 में त्रिनिदाद और टौबैगो में बलात्कार का केस दर्ज हुआ था। कृपालु महाराज की एक प्रमुख शिष्या Keren Jonson ने अपनी पुस्तक “Sex Lies and Two Hindu Gurus: How I was conned by a dangerous cult” में आश्रम में चल रहे कुकृत्यों पर विस्तृत रूप से लिखा है, ‘आसाराम’- इसके कुकृत्यों से शायद ही कोई आज अनभिज्ञ हो, ‘गुरमीत (बाबा)राम रहीम’, निर्मल बाबा, ‘महेश योगी’, ‘धीरेन्द्र ब्रहमचारी’,चंद्रास्वामी,..... ये सब कुछ ऐसे प्रमुख हिन्दू सनातन धर्म के ठीकेदार रहे हैं जिनके भक्तों की संख्या लाखों-लाख में है और भारतीय राजनीति की दिशा और दशा में इनका अहम प्रभाव रहा है और इनलोगों की भक्तों के माध्यम से अपनी सामानांतर अर्थव्यवस्था एव इकाई चलती है।
आज पंचकुला के विशेष न्यायलय द्वारा राम रहीम को यौन शोषण जैसे कुकर्म के लिए उसे अपराधी घोषित होने के उपरांत उसके अनुयायिओं ने जिस तरह से हरियाणा से जुड़े विभिन्न राज्यों में सरकारी एवं निजी संपत्ति का जिस तरह से नुकसान किया है इसके लिए मैं राम रहीम से ज्यादा मिडिया कर्मियों को दोषी मानता हूँ जो बिना वजह किसी भी अपराधीक प्रवृति के लोगों का जरुरत से ज्यादा समाचार दिखा दिखा कर लोगों का ध्यान आकृष्ट कराती है और शरारती तत्वों को स्थानीय राजनीतिज्ञों के साथ मिलकर प्रश्रय देती है।
स्थानीय प्रशासन की इस समस्या से निपटने की कितनी लचर तैयारी थी कि सेना और पारा मिलिट्री तक को उपद्रवियों के सामने से पीछे हटने को विवश होना पड़ रहा है। देश की आजादी के बाद किसी अपराधी से निपटने के लिए पहली बार इतनी बड़ी सुरक्षा व्यवस्था करनी पड़ी है और वह भी नाकाम और नाकाफी साबित हुई और हम चीन और पाकिस्तान जैसे मुल्क से युद्ध करने का दावा करते हैं।
हमें गंभीरतापूर्वक सोचना होगा हम कहाँ जा रहे हैं !!
पुरातन काल में, विश्व के दृश्य-पटल पर यदि किसी देश की संस्कृति ने पूर्ण शुभ्रता एवं दिव्यता को प्राप्त किया तो वह था - भारत। यज्ञ की पवित्रा सुगंध से परिपूर्ण इसका आकाश; ऋषियों-महर्षियों द्वारा उच्चारित मंत्रों से गुंजित वातावरण, प्रत्येक निवासी में देवत्व की झलक - इस धरा पर साक्षात् स्वर्ग का अनुभव देते थे। इस भूमि के पावन स्पर्श से पारस बने विवेकानंद जी का कहना था कि, “हमें गर्व है कि हम अनंत गौरव की स्वामिनी इस भारतीय संस्कृति के वंशज हैं, जिसने सदैव दम तोड़ती मानव जाति को अनुप्राणित किया है।”
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है-“या प्रथमा संस्कृति विश्वारा”। जहाँ समय की प्रचण्ड धाराओं में यूनान, रोम, सीरीया, बेबीलोन आदि संस्कृतियाँ बिखरकर अपना अस्तित्व खो बैठीं, वहीं भारतीय संस्कृति ही ऐसी एकमात्रा संस्कृति है जो आज भी अडिग खड़ी रही। क्योंकि इस संस्कृति के आधरभूत स्तम्भ दिव्य-विभूतियाँ थी, ऐसे ऋषिगण थे जिन्होंने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधर-परमात्मा के गूढतम ज्ञान को प्रकट कर लिया था।
मैक्स मूलर ने पुस्तक ‘India - What can it teach us’ में लिखा था कि “यदि मुझसे पूछा जाए कि आकाश मंडल के नीचे कौन सी वह भूमि है, जहाँ मानव ने अपने हृदय में अवस्थित ईश्वरीय गुणों का पूर्ण विकास किया, तो मेरी उंगली भारत की ओर उठेगी। ग्रीस के राजदूत मैगस्थनीश भी यहाँ की संस्कृति से अत्यंत प्रभावित हुए। यहाँ से लौटने पर उन्होंने कहा था कि “रात्रि के समय भी भारत में कोई अपने मकान में ताला नहीं लगाता। मकान के भीतर केवल चाँद की सत्यनिष्ठ किरणें ही प्रवेश करती है, अन्य कोई संदिग्ध व्यक्ति नहीं। उपनिषद् में भारतीय सम्राट अश्वपति कैकेय भी कहते हैं-‘न मे स्तेनो जनपदे’ अर्थात् मेरे राज्य में कोई चोर नहीं है। ऐसा था भारत का निष्कलंक स्वरूप और उसकी अनुकरणीय प्रसिद्धि।
परन्तु उपरोक्त गाथा आज एक स्वर्णिम इतिहास बन कर रह गई है। आज वह ठोस आधार कहाँ लुप्त हो गया जिसके ऊपर इस महान संस्कृति का गौरवमयी महल स्थापित था? ऋषिगणों के आशीषों में पली, श्री राम की मर्यादा, बुद्ध की सत्यपथगामिता, श्री कृष्ण के दिव्य-कर्म पथ की साक्षी यह भारत-भूमि आज इतनी निर्जीव और शुष्क क्यों हो गई है?
भारतीय मान्यताओं के अनुसार, जब कोई व्यक्ति दुःख –सुख को समान स्थिति मानते हुए, अपने शरीर – मन –विचार पर नियंत्रण कर लेता है, तो वो ऋषि बन जाता है। भारत के ऋषि तपस्या को अत्यधिक महत्त्व देते रहे हैं। और वे अपने शरीर, परिवेश, स्वजन, स्वहित–परहित सब कुछ भूल कर केवल और केवल परम शक्ति को पाने हेतु प्रयासरत रहते रहे हैं।
आज उसी ऋषि परंपरा के वर्तमान सभी प्रमुख ध्वजवाहकों को देखने और समझने के उपरांत विश्वास नहीं होता है कि ‘कृपालु महाराज’ जिसको वर्तमान काल का कबीर कहा जाता है, इनपर वर्ष 2007 में त्रिनिदाद और टौबैगो में बलात्कार का केस दर्ज हुआ था। कृपालु महाराज की एक प्रमुख शिष्या Keren Jonson ने अपनी पुस्तक “Sex Lies and Two Hindu Gurus: How I was conned by a dangerous cult” में आश्रम में चल रहे कुकृत्यों पर विस्तृत रूप से लिखा है, ‘आसाराम’- इसके कुकृत्यों से शायद ही कोई आज अनभिज्ञ हो, ‘गुरमीत (बाबा)राम रहीम’, निर्मल बाबा, ‘महेश योगी’, ‘धीरेन्द्र ब्रहमचारी’,चंद्रास्वामी,..... ये सब कुछ ऐसे प्रमुख हिन्दू सनातन धर्म के ठीकेदार रहे हैं जिनके भक्तों की संख्या लाखों-लाख में है और भारतीय राजनीति की दिशा और दशा में इनका अहम प्रभाव रहा है और इनलोगों की भक्तों के माध्यम से अपनी सामानांतर अर्थव्यवस्था एव इकाई चलती है।
आज पंचकुला के विशेष न्यायलय द्वारा राम रहीम को यौन शोषण जैसे कुकर्म के लिए उसे अपराधी घोषित होने के उपरांत उसके अनुयायिओं ने जिस तरह से हरियाणा से जुड़े विभिन्न राज्यों में सरकारी एवं निजी संपत्ति का जिस तरह से नुकसान किया है इसके लिए मैं राम रहीम से ज्यादा मिडिया कर्मियों को दोषी मानता हूँ जो बिना वजह किसी भी अपराधीक प्रवृति के लोगों का जरुरत से ज्यादा समाचार दिखा दिखा कर लोगों का ध्यान आकृष्ट कराती है और शरारती तत्वों को स्थानीय राजनीतिज्ञों के साथ मिलकर प्रश्रय देती है।
स्थानीय प्रशासन की इस समस्या से निपटने की कितनी लचर तैयारी थी कि सेना और पारा मिलिट्री तक को उपद्रवियों के सामने से पीछे हटने को विवश होना पड़ रहा है। देश की आजादी के बाद किसी अपराधी से निपटने के लिए पहली बार इतनी बड़ी सुरक्षा व्यवस्था करनी पड़ी है और वह भी नाकाम और नाकाफी साबित हुई और हम चीन और पाकिस्तान जैसे मुल्क से युद्ध करने का दावा करते हैं।
हमें गंभीरतापूर्वक सोचना होगा हम कहाँ जा रहे हैं !!
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