आखिर हम कब सीखेंगे- 'पैरेंटिंग'(परवरिश बच्चों की) 04

आखिर हम कब सीखेंगे- 'पैरेंटिंग'(परवरिश बच्चों की) 04
माता-पिता का दायित्व

पाठशाला में जाकर बच्चे सदाचरण सीखेंगे, ऐसी आशा करना व्यर्थ है। बच्चा जिस क्षण जन्म लेता है, उसी क्षण से उसकी शिक्षा शुरू हो जाती है और उसी समय से उसे शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक या धार्मिक शिक्षा मिलने लगती है। यदि माता-पिता अपने बच्चों के प्रति अपने कर्तव्यों का ठीक तरह से पालन करें, तो वे कितने ऊँचे उठ सकते हैं, इसका अनुमान लगाना भी संभव नही है।पर यदि बच्चों को अपनों की तरह रखकर उन पर नाहक प्रेम की वर्षा की जाये, अनुचित प्रेम के वशीभूत हो उन्हें मिठाई, सुंदर सुहावने वस्त्र आदि द्वारा बचपन से ही बिगाड़ते चलें, मिथ्या स्नेह के कारण उन्हें जैसा चाहे करने दें, स्वयं धन के लालच में पड़े रहें और बच्चों में भी पैसे की लालसा जगाएं, विषयों में लिप्त रहकर बच्चों के सम्मुख भी वैसा ही उदाहरण पेश करें, आलसी रहकर उन्हें भी आलसी बनाएं , गंदे रहकर उन्हें भी गंदगी सिखायें, झूठ बोलकर उन्हें भी झूठ बोलना सिखायें तो फिर हमारी संतान निर्बल, अनैतिक, झूठी, विषयी, स्वार्थी और लालची बन जाये तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है? इस बातों पर विचारवान माता-पिता को बहुत कुछ सोच-विचार करना चाहिये। भारत वर्ष का आधा भविष्य माता-पिता के हाथ में है।

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