आखिर हम कब सीखेंगे – “पेरेंटिंग”(परवरिश बच्चों की)!! ....०२
आखिर हम कब सीखेंगे – “पेरेंटिंग”(परवरिश बच्चों की)!! ....०२
सा विद्या या विमुक्तये :~ ज्ञान वही है जो हमें मुक्त करे !!
मनुष्य का विकाश और उन्नति बिल्कुल ही कृत्रिम है, स्वाभाविक नहीं। जन्म लेने के पश्चात बोलने, चलने आदि की क्रियाओं से लेकर बड़े होने तक सभी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने हेतु उसे दूसरों पर ही आश्रित रहना पड़ता है, दूसरे ही उसके मार्गदर्शक होते हैं। आज जितना बुद्धि-वैभव और भौतिक उन्नति हमें नजर आती है, वह पूर्वजों की शिक्षाओं का प्रतिफल है। उसके लिए हम उन के ऋणी हैं। वे ही हमारे परोक्ष शिक्षक हैं। यह परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। अतः सामान्यतः कहा जा सकता है कि मानव की उन्नति की साधिका शिक्षा है अतः सृष्टि के आदि, वेदों के आविर्भाव से लेकर आज तक मानव को जैसा वातावरण, समाज व शिक्षा मिलती रही वह वैसा ही बनता चला गया, क्योंकि ये ही वे माध्यम हैं, जिनसे एक बच्चा कृत्रिम उन्नति करता है और बाद में अपने ज्ञान तथा तपोबल के आधार पर विशेष विचारमन्थन और अनुसन्धान द्वारा उत्तरोत्तर ऊँचाइयों को छूता चला जाता है। यदि शिक्षा समाज में रहकर दी जा रही है तो उसका प्रभाव शिक्षार्थी पर पड़ना अवश्यम्भावी है। वह वैसा ही बनता है जैसा समाज है। प्राचीन काल में शिक्षारूप यह उच्च कोटि का कार्य नगरों और गाँवों से दूर रहकर शान्त, स्वच्छ और सुरम्य प्रकृति की गोद में किया जाता था, परन्तु आज सघन इलाकों मे।
आज भी अधिकांश विद्यार्थी को अपने शिक्षा ग्रहण करने में कई तरह के समस्याओं से झुझना पड़ रहा है जिसमे सात प्रमुख समस्याएं हैं- भवन-विहीन विद्यालय, स्वाभिमान रहित अयोग्य शिक्षक, संकुचित विचारों वाले अभिवावक, अनावश्यक पाठ्यक्रम एवं पुस्तकें, अनिश्चित परीक्षा-पद्धति, शारीरिक दंड एवं उदिग्न मानसिक स्थिति।
.....क्रमशः
मनुष्य का विकाश और उन्नति बिल्कुल ही कृत्रिम है, स्वाभाविक नहीं। जन्म लेने के पश्चात बोलने, चलने आदि की क्रियाओं से लेकर बड़े होने तक सभी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने हेतु उसे दूसरों पर ही आश्रित रहना पड़ता है, दूसरे ही उसके मार्गदर्शक होते हैं। आज जितना बुद्धि-वैभव और भौतिक उन्नति हमें नजर आती है, वह पूर्वजों की शिक्षाओं का प्रतिफल है। उसके लिए हम उन के ऋणी हैं। वे ही हमारे परोक्ष शिक्षक हैं। यह परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। अतः सामान्यतः कहा जा सकता है कि मानव की उन्नति की साधिका शिक्षा है अतः सृष्टि के आदि, वेदों के आविर्भाव से लेकर आज तक मानव को जैसा वातावरण, समाज व शिक्षा मिलती रही वह वैसा ही बनता चला गया, क्योंकि ये ही वे माध्यम हैं, जिनसे एक बच्चा कृत्रिम उन्नति करता है और बाद में अपने ज्ञान तथा तपोबल के आधार पर विशेष विचारमन्थन और अनुसन्धान द्वारा उत्तरोत्तर ऊँचाइयों को छूता चला जाता है। यदि शिक्षा समाज में रहकर दी जा रही है तो उसका प्रभाव शिक्षार्थी पर पड़ना अवश्यम्भावी है। वह वैसा ही बनता है जैसा समाज है। प्राचीन काल में शिक्षारूप यह उच्च कोटि का कार्य नगरों और गाँवों से दूर रहकर शान्त, स्वच्छ और सुरम्य प्रकृति की गोद में किया जाता था, परन्तु आज सघन इलाकों मे।
आज भी अधिकांश विद्यार्थी को अपने शिक्षा ग्रहण करने में कई तरह के समस्याओं से झुझना पड़ रहा है जिसमे सात प्रमुख समस्याएं हैं- भवन-विहीन विद्यालय, स्वाभिमान रहित अयोग्य शिक्षक, संकुचित विचारों वाले अभिवावक, अनावश्यक पाठ्यक्रम एवं पुस्तकें, अनिश्चित परीक्षा-पद्धति, शारीरिक दंड एवं उदिग्न मानसिक स्थिति।
.....क्रमशः
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