आखिर हम कब सीखेंगे – “पेरेंटिंग”(परवरिश बच्चों की)!!
आखिर हम कब सीखेंगे – “पेरेंटिंग”(परवरिश बच्चों की)!!
आज CBSE +2 का परीक्षा परिणाम सभी आदेशों को दरकिनार करते हुए बिना किसी मोडरेशन के (ग्रेस मार्क रहित) प्रकाशित हो गया जिसके कारण कई औसत दर्जे के विद्यार्थिओं का परीक्षा-परिणाम आशानुकूल नहीं है। जहाँ कुछ अभिवावक अपने बच्चों का परीक्षा-परिणाम विभिन्न सोशल मिडिया पर प्रदर्शित कर रहे हैं वहीँ कुछ अभिवावक अपने बच्चों के अच्छे परिणाम न आने पर मुँह छिपा रहे और अपनी हताशा और खीज शब्दों के द्वारा बच्चों और पत्नी पर कठोर प्रहार कर रहे हैं। बच्चों के कारण हीनता की दृष्टि से खुद को देख रहे हैं।
इतनी इन्फिरियटी काम्प्लेक्स, किसने पैदा की है? हमारे प्रथम होने की शिक्षा ने। क्यूंकि 30 विद्यार्थियों में एक ही प्रथम आएगा, 29 विद्यार्थी पीछे उसके बाद ही होंगें। एक विद्यार्थी को प्रथम लाने के लिए 29 विद्यार्थियों को हताश- निराश किया जा रहा है।
ये जो सफल लोग होते हैं थोड़े से, इनके पीछे कितने असफल लोगों की पंक्तियाँ खड़ी हो जाती है, इसको कभी हमने ध्यान दिया? और ये सफल दस-पांच लोग दुनिया नहीं बनाते हैं। दुनिया वे सब लोग मिल कर बनाते हैं, जो पीछे छुट गये हैं और असफल हो गए हैं। और जब उदास लोगों से दुनिया निर्मित होगी, तो वह स्वर्ग नहीं बन सकती है, नरक बनना निश्चित है। निश्चित ही हारे हुये लोगों से यह दुनिया जो बनेगी, तो वह दुनिया बहुत अच्छी नहीं ही होगी।
लेकिन हम सिर्फ उसको देखते हैं जो सफल हो गया। 29 को कौन देखता है, जो असफल हो गये? कितनी भी कोशिश कर लें 30 में कोई एक ही प्रथम हो सकता है। वे 29 जो पीछे गए, असफल हो गए हैं, कभी हमने सोचा, उसके मन को कितनी बुनियादी घाव हम पहुंचा रहे? उनके शक्ति, उर्जा और प्रतिभा को शुरू से ही हारा हुआ साबित कर दिया हमने। वे शुरू से ही जिंदगी के प्रति निराशा, अपमान से भरे हुये, हताशा से भरे हुये होंगें। अगर ये हारे हुये लोग क्रोध से भरें हों और जगह-जगह तोड़-फोड़ करने लगे, और जगह-जगह पर इनका क्रोध प्रकट होने लगे तो कौन होगा इसका जिम्मेवार? निश्चित ही इसकी जिम्मेवारी लेनी होगी हमारी शिक्षा और और शिक्षा व्यवस्था को?
जिंदगी बहुत छोटी है और प्रथम होना बहुत जरुरी है। क्यूंकि जगत उन्ही का गुणगान करता है जो सफल हैं। उनसे यह नहीं पुछा जाता कि वह सफल कैसे हुये, उनके प्रथम होने के पीछे क्या-क्या हुआ, यह फिर कोई नहीं पुछता है! सफलता से प्रश्न नहीं किये जाते हैं। असफल आदमी से पुछा जाता है, आप असफल कैसे हो गये? सफल आदमी से कोई भी नहीं पुछता कि किन सीढियों को, किन-किन साधनों को प्रयोग में लाकर आप सफल हुये हैं? यह कोई भी नहीं पूछता! सफलता सफल होते ही महिमावंत हो जाती है तो फिर दौड़ को आदमी दौड़ता रहता है, दौड़ता रहता है ..... । और इसको हम सिखाना शुरू कर देते हैं पहले दिन से !
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