आखिर हम कब सीखेंगे – “पेरेंटिंग”(परवरिश बच्चों की)!! ....०३
आखिर हम कब सीखेंगे – “पेरेंटिंग”(परवरिश बच्चों की)!! ....०३
मेरे हिसाब से उच्चत्तर माध्यमिक तक की शिक्षा एवं परीक्षा में तीन स्तर के छात्र शामिल होते हैं। प्रथम स्तर के छात्र जो सुदूर ग्रामीण क्षेत्र अथवा बिलकुल ही पिछडे जिले से जिनके लिए शिक्षा का एक मात्र उपलब्ध साधन है सरकारी विद्यालय, दूसरे स्तर पर आते हैं बड़े एवं विकसित शहर जहाँ पर मिश्रित शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध है- सरकारी विद्यालय एवं उच्च एवं सामान्य स्तर के निजी विद्यालय और अंत में तीसरे स्तर वैसे शिक्षण-संस्थान आते हैं जिनकी गिनती राष्ट्रिय एवं अन्तराष्ट्रीय मानक पर की जाती है।तीनों ही स्तर पर छात्रों को दी जा रही एक ही पाठ्यक्रम की शिक्षा में कितना अनुपातिक अंतर रहता होगा यह लिखने की नहीं अपितु समझाने की विषय है। अपवाद शिक्षा के हर स्तर पर होते हैं।
आज अभिवावक अपने समर्थ से बढ़कर बच्चों की शिक्षा के लिए बेहतर शिक्षण-संस्थानों का चयन कर रहे हैं, जिसका अनुचित लाभ उठाकर निजी विद्यालय प्रशासन क्रमशः अभिवावक एवं छात्र दोनों का शोषण करने में हिचकते नहीं हैं क्यूंकि उनका प्रायोजन शिक्षा देना नहीं अपितु आज शिक्षण-संस्थान व्यापार का एक बेहतर सुरक्षित साधन है।
सरकारी विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षक विद्यार्थी को केवल इसलिए पढ़ाते हैं कि उसकी नौकरी बनी रहे, उसके भले-बुरे से उन्हें कोई मतलब नहीं। वे हमेशा अपने ट्यूशन की चिन्ता में लगे रहते हैं और धन कमाने के लालच में अपने स्वाभिमान, गुरुत्व और शिक्षक पदवी के महत्व को गंवा बैठते हैं।
आज बिहार में घोषित उच्चतर माध्यमिक परीक्षा-परिणाम इसका ज्वलंत उदाहरण बन कर सामने प्रस्तुत हुआ है समाज के सामने कि सरकारी विद्द्यालयों में शिक्षा एवं शिक्षक का स्तर कैसा है। जहाँ ६२ से ६४ प्रतिशत परीक्षार्थी असफल घोषित किये गए हैं। प्रश्न यह उठता है कि क्या बिना नक़ल के यहाँ परीक्षा पास करना असंभव है या शिक्षक अपने कर्तव्यों को पूर्णतया भूल चुके हैं अथवा उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं है अपने विषय की या फिर उत्तर-पुस्तिका को जाँचने में गंभीर चूक हुई है। जहाँ तक मुझे याद आ रहा है कि पिछले वर्ष क्लास 9 की परीक्षा संपन्न नहीं कराई जा सकी क्यूंकि सरकार यह निर्णय ही नहीं ले पा रही थी कि किस पैटर्न पर परीक्षा ली जाये।
किसी भी देश की संस्कृति और इतिहास को क्षत-विक्षत करना हो तो उसका सबसे सरल उपाय है कि उसके शिक्षा के स्तर को गिरा दिया जाये।😧😧😧😧😧😧😧😧....क्रमशः
आज अभिवावक अपने समर्थ से बढ़कर बच्चों की शिक्षा के लिए बेहतर शिक्षण-संस्थानों का चयन कर रहे हैं, जिसका अनुचित लाभ उठाकर निजी विद्यालय प्रशासन क्रमशः अभिवावक एवं छात्र दोनों का शोषण करने में हिचकते नहीं हैं क्यूंकि उनका प्रायोजन शिक्षा देना नहीं अपितु आज शिक्षण-संस्थान व्यापार का एक बेहतर सुरक्षित साधन है।
सरकारी विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षक विद्यार्थी को केवल इसलिए पढ़ाते हैं कि उसकी नौकरी बनी रहे, उसके भले-बुरे से उन्हें कोई मतलब नहीं। वे हमेशा अपने ट्यूशन की चिन्ता में लगे रहते हैं और धन कमाने के लालच में अपने स्वाभिमान, गुरुत्व और शिक्षक पदवी के महत्व को गंवा बैठते हैं।
आज बिहार में घोषित उच्चतर माध्यमिक परीक्षा-परिणाम इसका ज्वलंत उदाहरण बन कर सामने प्रस्तुत हुआ है समाज के सामने कि सरकारी विद्द्यालयों में शिक्षा एवं शिक्षक का स्तर कैसा है। जहाँ ६२ से ६४ प्रतिशत परीक्षार्थी असफल घोषित किये गए हैं। प्रश्न यह उठता है कि क्या बिना नक़ल के यहाँ परीक्षा पास करना असंभव है या शिक्षक अपने कर्तव्यों को पूर्णतया भूल चुके हैं अथवा उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं है अपने विषय की या फिर उत्तर-पुस्तिका को जाँचने में गंभीर चूक हुई है। जहाँ तक मुझे याद आ रहा है कि पिछले वर्ष क्लास 9 की परीक्षा संपन्न नहीं कराई जा सकी क्यूंकि सरकार यह निर्णय ही नहीं ले पा रही थी कि किस पैटर्न पर परीक्षा ली जाये।
किसी भी देश की संस्कृति और इतिहास को क्षत-विक्षत करना हो तो उसका सबसे सरल उपाय है कि उसके शिक्षा के स्तर को गिरा दिया जाये।😧😧😧😧😧😧😧😧....क्रमशः
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