जलियांवाला बाग हत्याकांड !!
आज भी नासूर बन दुखता होगा फिरंगियों को जलियांवाला बाग हत्याकांड !!
भारत की आज़ादी के आंदोलन में जलियांवाला बाग का सामूहिक हत्याकांड देशवासियों पर सबसे ज्यादा असर डालने वाला है। भारत के इतिहास में कुछ तारीख कभी नहीं भूली जा सकती हैं। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के पर्व कर पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर द्वारा किए गए निहत्थे मासूमों के हत्याकांड से केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक राज की बर्बरता का ही परिचय नहीं मिलता बल्कि इसने भारत के इतिहास की धारा को ही बदल दिया।
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के पावन मौके पर अमृतसर के जलियावाला बाग में हुए नरसंहार का दर्द आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। हर साल जब भी यह दिन यह तारीख आती है तो सभी की आंखें उन लोगों को याद कर नम हो जाती हैं जिन्होंने यहां पर अपनी जान गंवाई। उस दिन जलियावाला बाग में ब्रिटिश राज की ओर से दागी गई गोलियों की गूंज आज भी यहां सुनाई देती है। शहीदों के खून से लाल हुई यह भूमि अब किसी तीर्थस्थल से कम नहीं है। इस जघन्य हत्याकांड के बाद चर्चिल ने कहा था कि जोन ऑफ आर्क को जला देने के बाद होने वाला यह अमानवीय हत्याकांड ब्रिटिश इतिहास पर एक धब्बा है।
आजादी के बाद साल 1961 में जलियावाला बाग में 1919 में हुए गोलीकांड के शहीदों की स्मृति में एक मशाल के रूप में एक स्मारक बनाया गया। जहां पर वर्ष 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने जलियावाला बाग के शहीदों को पुष्पांजलि दी, लेकिन यह भारतीयों के घावों को नहीं भर सका।
सुभद्रा कुमारी चौहान की कुछ पंक्तियाँ याद आती है -
"कोमल बालक मरे यहां गोली खा कर,
कलियां उनके लिए गिराना थोड़ी ला कर।
आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं,
अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं।
कुछ कलियाँ अधखिली यहां इसलिए चढ़ाना,
कर के उनकी याद अश्रु के ओस बहाना।
तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खा कर,
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जा कर।
यह सब करना, किन्तु यहां मत शोर मचाना,
यह है शोक-स्थान बहुत धीरे से आना।
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