चंपारण यात्रा
चम्पारण: जिसने गाँधी को महात्मा बना दिया।
15 अप्रैल 1917 को गाँधी जी चम्पारण पहुँचे। 16 अप्रैल को गाँधी जी चम्पारण के एक गांव जसवली पट्टी की यात्रा हांथी की सवारी से प्रारंभ हुई। राजेन्द्र बाबू ने उस समय का वर्णन करते हुए लिखा है ‘यह रवानगी हाथी की सवारी से शुरू हुई। सुबह 9 बजे वैशाख का महीना था, धुप कड़ी थी। पछवा हवा भी खूब जोरों से बह रही थी। बाहर निकलते देह झुलस जाती थी। गाँधी जी को हांथी पर सवारी का अभ्यास भी नहीं था। महात्मा के ह्रदय में रैयतों के दुखों को दूर करने की धुन थी। ऐसे में धूप और धूल क्या कर सकती थी।
इस यात्रा के रास्ते में ही गाँधी जी को कलक्टर साहब का सलाम सादे लिबास में एक दरोगा सुनाता है। गाँधी जी अपने सहयोगियों को आगे जाने की सलाह देकर स्वयं दारोगा के साथ हो लेते हैं। पहले बैलगाड़ी फिर एक्के की सवारी और रास्ते में डिप्टी सुप्रिटेंडेंट से मुलाकात होती है। टमटम लेकर आये थे वह साहब। उसी पर गांधी जी को बैठा लेते हैं। उसी समय गाँधी जी को जिला मजिस्ट्रेट का नोटिस देते हैं, जिसमे लिखा था- ‘आपकी उपस्थिति से इस जिले में शांति भंग और प्राण हानि का दर है, इसलिए आपको हुक्म दिया जाता है कि आप पहली गाड़ी से चम्पारण छोड कर चले जाइये।‘ गाँधी जी ने नोटिस को शांत भाव से पढ़ा।
इस यात्रा के रास्ते में ही गाँधी जी को कलक्टर साहब का सलाम सादे लिबास में एक दरोगा सुनाता है। गाँधी जी अपने सहयोगियों को आगे जाने की सलाह देकर स्वयं दारोगा के साथ हो लेते हैं। पहले बैलगाड़ी फिर एक्के की सवारी और रास्ते में डिप्टी सुप्रिटेंडेंट से मुलाकात होती है। टमटम लेकर आये थे वह साहब। उसी पर गांधी जी को बैठा लेते हैं। उसी समय गाँधी जी को जिला मजिस्ट्रेट का नोटिस देते हैं, जिसमे लिखा था- ‘आपकी उपस्थिति से इस जिले में शांति भंग और प्राण हानि का दर है, इसलिए आपको हुक्म दिया जाता है कि आप पहली गाड़ी से चम्पारण छोड कर चले जाइये।‘ गाँधी जी ने नोटिस को शांत भाव से पढ़ा।
गाँधी जी ने इसके जवाब में लिखा-
महोदय, धारा 188 के नोटिस के उत्तर में मुझे यही निवेदन करना है कि मुझे इस बात का खेद है कि डिविजन के कमिश्नर ने मेरी स्थिति को बिल्कुल गलत समझा है। सर्वसाधारण के प्रति जो मेरा कर्तव्य है, उसका ध्यान रखते हुए मैं इस जिले को नहीं छोड सकता हूँ पर यदि कर्मचारियों कि ऐसी राय है तो आज्ञा के उल्लंघन करने के लिए जो दंड हो, उसे सहन करने के लिए तैयार हूँ। कमिश्नर की इस बात का कि मेरा उद्देश्य आंदोलन मचाना है, मैं घोर विरोध करता हूँ। मेरी इच्छा केवल असल बात जानने की है और जब तक मैं स्वतंत्र रहूँगा, इस इच्छा को पूरा करता ही जाऊंगा।
गाँधी जी ने चम्पारण छोड़ने के जिला मजिस्ट्रेट के आदेश को नहीं माना। फिर भी शाम तक जब कोई सम्मन आज्ञा भंग के लिए नहीं मिला तो गाँधी जी ने अपनी अगली यात्रा की जानकारी जिला मजिस्ट्रेट को भेजी। पत्र में गाँधी जी ने छुप-छुपकर पुलिस वालों को पीछा करने की शिकायत की और कहा कि मैं अपना आंदोलन प्रकट रूप में करना चाहता हूँ, इसलिए पुलिस वाले मेरे साथ प्रकट रूप में रहें, मैं उनका स्वागत करूँगा।
महोदय, धारा 188 के नोटिस के उत्तर में मुझे यही निवेदन करना है कि मुझे इस बात का खेद है कि डिविजन के कमिश्नर ने मेरी स्थिति को बिल्कुल गलत समझा है। सर्वसाधारण के प्रति जो मेरा कर्तव्य है, उसका ध्यान रखते हुए मैं इस जिले को नहीं छोड सकता हूँ पर यदि कर्मचारियों कि ऐसी राय है तो आज्ञा के उल्लंघन करने के लिए जो दंड हो, उसे सहन करने के लिए तैयार हूँ। कमिश्नर की इस बात का कि मेरा उद्देश्य आंदोलन मचाना है, मैं घोर विरोध करता हूँ। मेरी इच्छा केवल असल बात जानने की है और जब तक मैं स्वतंत्र रहूँगा, इस इच्छा को पूरा करता ही जाऊंगा।
गाँधी जी ने चम्पारण छोड़ने के जिला मजिस्ट्रेट के आदेश को नहीं माना। फिर भी शाम तक जब कोई सम्मन आज्ञा भंग के लिए नहीं मिला तो गाँधी जी ने अपनी अगली यात्रा की जानकारी जिला मजिस्ट्रेट को भेजी। पत्र में गाँधी जी ने छुप-छुपकर पुलिस वालों को पीछा करने की शिकायत की और कहा कि मैं अपना आंदोलन प्रकट रूप में करना चाहता हूँ, इसलिए पुलिस वाले मेरे साथ प्रकट रूप में रहें, मैं उनका स्वागत करूँगा।
चम्पारण के जिला मजिस्ट्रेट को पत्र
जिला मजिस्ट्रेट मोतिहारी
मोतिहारी अप्रैल 17, 1917
महोदय,
चूँकि अधिकारीयों को सूचित किये बिना मैं कोई काम नहीं करना चाहता हूँ, इसलिए आपको इत्तला दे रहा हूँ कि अगर मुझ पर कल अदालत में हाजिर होने के लिए सम्मन जारी न हुआ तो मैं कल सुबह शामपुर तथा उसके समीपवर्ती गाँवों में जा रहा हूँ। हम लोग ३ बजे प्रातः काल चल देंगे।
कल मेरे देखने में यह आया है कि हमलोगों के पीछे-पीछे पुलिस अधिकारी लगातार चल रहा था। मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि हम लोग अपना सारा काम बिल्कुल प्रकट रूप से करना चाहते हैं और इसलिए मैं अपनी तथा अपने साथियों की ओर से कहना चाहता हूँ कि वैसे तो हम अपने कामों में पुलिस-वालों की सहायता तक की इच्छा रखते हैं। किन्तु वह संभव न हो तो हम अपना काम करते समय उनकी उपस्थिति का स्वागत तो करेंगे ही।
आपका आज्ञाकारी सेवक
मो. क. गाँधी
इसके उपरांत जिला मजिस्ट्रेट ने गाँधी जी को उन पर धारा 188 का अभियोग चलने की सूचना भेजी। कुछ देर बाद सम्मन भी आया। 18 अप्रैल 1917 को सब डिविजनल अफसर की कचहरी में उपस्थित होने की आज्ञा दी।
क्रमशः
पेज ०२
मोतिहारी अप्रैल 17, 1917
महोदय,
चूँकि अधिकारीयों को सूचित किये बिना मैं कोई काम नहीं करना चाहता हूँ, इसलिए आपको इत्तला दे रहा हूँ कि अगर मुझ पर कल अदालत में हाजिर होने के लिए सम्मन जारी न हुआ तो मैं कल सुबह शामपुर तथा उसके समीपवर्ती गाँवों में जा रहा हूँ। हम लोग ३ बजे प्रातः काल चल देंगे।
कल मेरे देखने में यह आया है कि हमलोगों के पीछे-पीछे पुलिस अधिकारी लगातार चल रहा था। मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि हम लोग अपना सारा काम बिल्कुल प्रकट रूप से करना चाहते हैं और इसलिए मैं अपनी तथा अपने साथियों की ओर से कहना चाहता हूँ कि वैसे तो हम अपने कामों में पुलिस-वालों की सहायता तक की इच्छा रखते हैं। किन्तु वह संभव न हो तो हम अपना काम करते समय उनकी उपस्थिति का स्वागत तो करेंगे ही।
आपका आज्ञाकारी सेवक
मो. क. गाँधी
इसके उपरांत जिला मजिस्ट्रेट ने गाँधी जी को उन पर धारा 188 का अभियोग चलने की सूचना भेजी। कुछ देर बाद सम्मन भी आया। 18 अप्रैल 1917 को सब डिविजनल अफसर की कचहरी में उपस्थित होने की आज्ञा दी।
क्रमशः
पेज ०२
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