चंपारण यात्रा
चम्पारण: जिसने गाँधी को महात्मा बना दिया !!
चम्पारण सत्याग्रह में महात्मा गाँधी ने सिर्फ निलहे अंग्रेजों के अत्याचार के तथ्यों को जानने की कोशिश की। वहाँ के किसानों ने अपनी व्यथा लिखवानी शुरू की। सत्य ज्यों-ज्यों प्रकट होता गाया, अत्याचारी अंग्रेजी शासकों का दंभ हिलने लगा। अंततः सत्य के प्रकट होने के दौरान ही अंग्रेजी शासकों ने हार मान ली। इस प्रकार ‘सत्य की शक्ति’ का अंग्रेजी राज में प्रथम परिचय हिंदुस्तानियों को हुआ।
चम्पारण सत्याग्रह की घटना का जीवंत वर्णन राजेंद्र प्रसाद ने अपनी पुस्तक ‘चम्पारण में महात्मा गाँधी’ में किया है। 1916 के लखनऊ कांग्रेस में चम्पारण के रैयतों ने अपना प्रतिनिधि बनाकर राजकुमार शुक्ल को भेजा था। राजकुमार शुक्ल ने गाँधी जी को चम्पारण का हाल सुनाकर उन्हें वहाँ आने का निमंत्रण दिया था।
राजकुमार शुक्ल का गाँधी जी को पत्र
बेतिया
ता. 27 02 1917
मान्यवर महात्मा,
किस्सा सुनते हो रोज औरों के
आज मेरी भी दास्तान सुनो।
अपने उस अनहोनी को प्रत्यक्ष कर कार्यरूप में परिणत कर दिखलाया, जिसे टालस्टाय जैसे महात्मा केवल विचार करते थे। इसी आशा और विश्वाश के वशीभूत होकर हम आपके निकट अपनी रामकहानी सुनाने को तैयार हैं। हमारी दुखभरी कथा उस दक्षिण अफ्रीका के अत्याचार से- जो आप और आपके अनुयायी वीर सत्याग्रही बहनों और भाइयों के साथ हुआ- कहीं अधिक है। हम अपना वह दुःख- जो हमारी १९ लाख आत्माओं के ह्रदय पर बीत रहा है- सुनाकर आपके कोमल ह्रदय को दुखित करना उचित नहीं समझते। बस, केवल इतनी प्रार्थना है कि आप स्वयं आकार अपनी आँखों से देख लीजिए, तब आपको अच्छी तरह विश्वाश हो जायेगा कि भारतवर्ष के एक कोने में यहाँ कि प्रजा- जिसको ब्रिटिश छत्र की सुशीलत छाया में रहने का अभिमान प्राप्त है- - किस प्रकार के कष्ट सहकर पशुवत जीवन व्यतीत कर रही है। हम अधिक न लिखकर आपका ध्यान उस प्रतिज्ञा की ओर आकृष्ट करना चाहते हैं, जो लखनऊ कांग्रेस के समय और फिर वाहन से लौटते समय कानपूर में आपने की थी कि मैं मार्च-अप्रैल महीने में चम्पारण आऊंगा। बस, अब समय आ गया है। श्रीमान, अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करें। चम्पारण की 19 लाख दुखी प्रजा श्रीमान के चरण कमल के दर्शन के लिए टकटकी लगाये बैठी है। और उन्हें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वाश है कि जिस प्रकार भगवान श्री रामचंद्र जी के चरण स्पर्श से अहिल्या तर गयी, उसी प्रकार श्रीमान के चम्पारण में पैर रखते ही हम 19 लाख प्राणियों का उद्धार हो जायेगा।
श्रीमान का दर्शनाभिलाषी
राजकुमार शुक्ल
गाँधी जी और राजकुमार शुक्ल 10 अप्रैल 1917 को पटना पहुंचे थे। राजकुमार शुक्ल जी गाँधी जी को कलकत्ता से लेकर यहाँ पहुंचे थे और राजेंद्र बाबू के घर ले गये। उसी दिन रात में गाँधी जी राजकुमार शुक्ल के साथ मुजफ्फरपुर चले गये। जहाँ गाँधी जी की पहली मुलाकात जे. वी. कृपलानी से हुई।
कमिश्नर को गाँधी जी का पत्र-------
श्री एल. एफ. मौशार्ड मुजफ्फरपुर
कमिश्नर अप्रैल 12, 1917
तिरहुत डिवीजन
मार्फत- बाबू गया प्रसाद सिंह
प्रिय महोदय,
नील की खेती करने वाले हिंदुस्तानियों के विषय में बहुत सी बातें सुनकर, जहाँ तक संभव हो, मैं उनकी असली हालात का पता लगाने के लिए यहाँ आया हूँ। मैं इस काम को स्थानीय सरकारी कर्मचारियों की जानकारी तथा सहयोग से, यदि मिल सके तो करना चाहता हूँ ताकि मैं इस जाँच के विषय में अपने विचार आपके सामने प्रस्तुत कर सकूँ और जान सकूँ कि स्थानीय सरकारी कर्मचारियों से मुझे अपने कार्य में कोई सहायता मिल सकती है या नहीं।
आपका विश्वस्त
मो. क. गाँधी
परन्तु कमिश्नर से वैसा सहयोग नहीं मिला, जैसा गांधी जी ने अनुरोध किया था।
क्रमशः
पेज 01
चम्पारण सत्याग्रह की घटना का जीवंत वर्णन राजेंद्र प्रसाद ने अपनी पुस्तक ‘चम्पारण में महात्मा गाँधी’ में किया है। 1916 के लखनऊ कांग्रेस में चम्पारण के रैयतों ने अपना प्रतिनिधि बनाकर राजकुमार शुक्ल को भेजा था। राजकुमार शुक्ल ने गाँधी जी को चम्पारण का हाल सुनाकर उन्हें वहाँ आने का निमंत्रण दिया था।
राजकुमार शुक्ल का गाँधी जी को पत्र
बेतिया
ता. 27 02 1917
मान्यवर महात्मा,
किस्सा सुनते हो रोज औरों के
आज मेरी भी दास्तान सुनो।
अपने उस अनहोनी को प्रत्यक्ष कर कार्यरूप में परिणत कर दिखलाया, जिसे टालस्टाय जैसे महात्मा केवल विचार करते थे। इसी आशा और विश्वाश के वशीभूत होकर हम आपके निकट अपनी रामकहानी सुनाने को तैयार हैं। हमारी दुखभरी कथा उस दक्षिण अफ्रीका के अत्याचार से- जो आप और आपके अनुयायी वीर सत्याग्रही बहनों और भाइयों के साथ हुआ- कहीं अधिक है। हम अपना वह दुःख- जो हमारी १९ लाख आत्माओं के ह्रदय पर बीत रहा है- सुनाकर आपके कोमल ह्रदय को दुखित करना उचित नहीं समझते। बस, केवल इतनी प्रार्थना है कि आप स्वयं आकार अपनी आँखों से देख लीजिए, तब आपको अच्छी तरह विश्वाश हो जायेगा कि भारतवर्ष के एक कोने में यहाँ कि प्रजा- जिसको ब्रिटिश छत्र की सुशीलत छाया में रहने का अभिमान प्राप्त है- - किस प्रकार के कष्ट सहकर पशुवत जीवन व्यतीत कर रही है। हम अधिक न लिखकर आपका ध्यान उस प्रतिज्ञा की ओर आकृष्ट करना चाहते हैं, जो लखनऊ कांग्रेस के समय और फिर वाहन से लौटते समय कानपूर में आपने की थी कि मैं मार्च-अप्रैल महीने में चम्पारण आऊंगा। बस, अब समय आ गया है। श्रीमान, अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करें। चम्पारण की 19 लाख दुखी प्रजा श्रीमान के चरण कमल के दर्शन के लिए टकटकी लगाये बैठी है। और उन्हें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वाश है कि जिस प्रकार भगवान श्री रामचंद्र जी के चरण स्पर्श से अहिल्या तर गयी, उसी प्रकार श्रीमान के चम्पारण में पैर रखते ही हम 19 लाख प्राणियों का उद्धार हो जायेगा।
श्रीमान का दर्शनाभिलाषी
राजकुमार शुक्ल
गाँधी जी और राजकुमार शुक्ल 10 अप्रैल 1917 को पटना पहुंचे थे। राजकुमार शुक्ल जी गाँधी जी को कलकत्ता से लेकर यहाँ पहुंचे थे और राजेंद्र बाबू के घर ले गये। उसी दिन रात में गाँधी जी राजकुमार शुक्ल के साथ मुजफ्फरपुर चले गये। जहाँ गाँधी जी की पहली मुलाकात जे. वी. कृपलानी से हुई।
कमिश्नर को गाँधी जी का पत्र-------
श्री एल. एफ. मौशार्ड मुजफ्फरपुर
कमिश्नर अप्रैल 12, 1917
तिरहुत डिवीजन
मार्फत- बाबू गया प्रसाद सिंह
प्रिय महोदय,
नील की खेती करने वाले हिंदुस्तानियों के विषय में बहुत सी बातें सुनकर, जहाँ तक संभव हो, मैं उनकी असली हालात का पता लगाने के लिए यहाँ आया हूँ। मैं इस काम को स्थानीय सरकारी कर्मचारियों की जानकारी तथा सहयोग से, यदि मिल सके तो करना चाहता हूँ ताकि मैं इस जाँच के विषय में अपने विचार आपके सामने प्रस्तुत कर सकूँ और जान सकूँ कि स्थानीय सरकारी कर्मचारियों से मुझे अपने कार्य में कोई सहायता मिल सकती है या नहीं।
आपका विश्वस्त
मो. क. गाँधी
परन्तु कमिश्नर से वैसा सहयोग नहीं मिला, जैसा गांधी जी ने अनुरोध किया था।
क्रमशः
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