हम्माम में सब रेनकोट पहने हुए हैं😢

विगत दिनों लोकसभा व राज्यसभा में कई बार कार्यवाही स्थगित की जा चुकी है.. बुधवार(08/02/17) को जब फिर से दोनों सदनों की कार्यवाही शुरू हुई तो विपक्ष ने निंदा प्रस्ताव पारित करने की मांग पर अड़ गया, जिसके बाद पुनः कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा।
कुछ दिनों पहले संसद में माननीय खड़गे ने सदन को संबोधित करते हुये बहुत ही अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए भाषण दिया था कि “भाजपा का कोई कुत्ता भी”.. के जवाब में प्रधानमंत्री जी ने भी व्यतिगत आलोचना के साथ साथ कुत्ता शब्द का भी प्रयोग किया जिसके बाद से विपक्ष ने दोनों सदनों में विरोध शुरू कर दिया।

मौजूदा वक़्त में सदन में अत्यधिक आवश्यक शीतकालीन सत्र चल रहा है नोटबंदी के कारण देश वित्तीय संकटों से गुजर रहा है जिसमे कई तरह के जनता से सरोकार रखने वाले बिलों को सदन के पटल पर रखते हुए पारित कराना है.. लगातार कई दिनों से दोनों सदनों की कार्यवाही ठप होने कि वजह से यह तमाम बिल को पेश नहीं किया जा सका है.. इसके इतर जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा भी बर्बाद होने का नुकसान सामने आता हुआ प्रतीत हो रहा है.. गौरतलब है कि लोकसभा व राज्यसभा दोनों की कार्यवाही में रोजाना लाखों रुपयों का खर्च आता है और यह खर्च भारतीय जनता के दिए गए आयकर व अन्य करों से जुटाया जाता है, ऐसे में शीतकालीन सत्र की कार्यप्रणाली में बाध्यता आने से महज केंद्र सरकार के लिए ही नहीं अपितु देश के लिए भी यह कोई सकारात्मक कदम नहीं है।

इसके इतर यह कोई पहला मौका नहीं है जब देश के राजनैतिक दलों के नेता ने इस तरह का विवादित बयान पेश किया हो।बल्कि इतिहास गवाह रहा है कि समय समय पर राजनैतिक व्यक्तिओं ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल करके विवाद तो पैदा ही किया है और साथ ही साथ सुर्खियाँ भी बटोरी है।विवादित बयान देने में महज किसी एक राजनैतिक दल के नेता ही नहीं बल्कि लगभग सभी पार्टियों के नेता इसमें शामिल रहे हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि सभी नेताओं को इस मसले पर मुहं की ही खानी पड़ी है।

सियासत में नेताओं की जुबान गंदी हो चली है। क्या सियासत में अपने विरोधियों पर शालीन भाषा में हमला करना नामुमकिन हो गया है ? क्या सुर्खियां बटोरने के लिए गंदी भाषा का इस्तेमाल करने लगे हैं नेता ?
सियासतदानों के सुर अब बेसुरे हो गए हैं। उन्हें यह अंदाजा भी नहीं होता कि वह क्या बोल रहे हैं और ऐसे बयानों का असर क्या होगा ? बोल ऐसे कि बच्चे भी सुन नहीं सकते और बड़े भी शरमा जाएं। हैरानी होती है यह देखकर कि अनाप-शनाप जबान में कुछ भी कहने और बयान देने वाले इन नेताओं को यह पता होता है कि उनके ‘बोल’ गलत हैं और इसपर बवाल मचना तय है। लेकिन फिर भी वह बोलते हैं। राजनीति की यह ‘गंदी बात’ है जो लोकतंत्र को लंबे समय से गंदला रही है। लोकतंत्र चुनावी मौसम में इस जुबानी ‘जहर’ से बीमार होता जा रहा है।

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