............अलविदा 2016

यादों के सिरहाने पर, मै सिर रखकर के सोया हूँ
गिनता हूँ बीते लम्हों में ,क्या पाया हूँ ,क्या खोया हूँ ???
एक और वर्ष अलविदा हो रहा है और एक नया वर्ष चैखट पर खड़ा है। उम्र का एक वर्ष खोकर नए वर्ष का क्या स्वागत करें? पर सच तो यह है कि वर्ष खोया कहां? हमने तो उसे जीया है और जीकर हर पल को अनुभव में ढाला है। अनुभव से ज्यादा अच्छा साथी और सचाई का सबूत कोई दूसरा नहीं होता। 
          कार्य की शुरुआत गलत नहीं होनी चाहिए। अन्यथा गलत दिशा में उठा एक कदम ही हमारे लिए अंतहीन भटकाव पैदा कर देगा। यदि हम कार्य की योजना, चिंतन और क्रियान्विति यदि एक साथ नहीं करेंगे तो वहीं के वहीं खड़े रह जायेंगे जहां एक वर्ष पहले खड़े थे। क्या हमने निर्माण की प्रक्रिया में नए पदचिन्ह स्थापित करने का प्रयत्न किया? क्या ऐसा कुछ कर सके कि ‘आज’ की आंख में हमारे कर्तृत्व का कद ऊंचा उठ सका? आज भी लम्बे-चैड़े वादों और तरह-तरह की घोषणाओं के बावजूद देश के लगभग आधे नौजवान बेकारी में धक्के खा रहे हैं या फिर औनी-पौनी कीमत पर अपनी मेहनत और हुनर को बेचने पर मजबूर हैं ?
          नया वर्ष हर बार नया संदेश, नया संबोध, नया सवाल लेकर आता है कि बीते वर्ष में हमने क्या खोया, क्या पाया? पर जीवन की भी कैसी विडम्बना! तीन सौ पैंसठ दिनों के बाद भी हम स्वयं से स्वयं को जान नहीं पाये कि उद्देश्य की प्राप्ति में हम कहां खड़े हैं? तब मन कहता है कि दिसम्बर की अंतिम तारीख पर ही यह सवाल क्यों उठे? क्या हर सुबह-शाम का हिसाब नहीं मिलाया जा सकता कि हमने क्या गलत किया और क्या सही किया? उद्देश्य के आईने में प्रतिबिम्बों को साफ-सुथरा रखा जाए तो कभी जीवन में हार नहीं होती। आंख का कोण बदलते ही नजरिया बदलता है, नजरिया बदलते ही व्यवहार बदलता है और व्यवहार ही तय करता है कि आप विजेता बनते हैं या फिर खाली हाथ रहते हैं। इसलिये नया साल जश्न मनाने का नहीं, नजरिया बदलने का अवसर है। 

आज वर्ष का आखिरी दिन है .....नववर्ष द्वार पर है ....सोचता हूँ क्या खोया ...क्या पाया ..?....तो पाया का पलड़ा जरा भारी लगता है .....आप सब का स्नेह ...प्यार ...मित्रता ....कई तोहफे .. ....सम्मान .....तो शुक्रिया तुम्हारा वर्ष 2016...अलविदा .....

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