बाल दिवस !!
अहंकारी नेहरू की अज्ञानता:~
नेहरु की अज्ञानता, अदुरदर्शिता, अविवेकपूर्ण अहंकारी व्यवहार और असमझ रवैये का आकलन कर चीन ने नेहरु को ही आगे रखकर उनके साथ पंचशील सिद्धांत के आधार पर समझौता किया जिसकी देन आज सीमा की विकराल समस्या के रूप में विद्यमान है। आइये समझते है यह पंचशील सिद्धांत क्या है ?
मानव-कल्याण व विश्व-शान्ति के लिए बोद्ध-धर्म में बोद्ध भिक्षुओ के लिए पांच सिद्धांत निश्चित किये गए है जिन्हें पंचशील कहा जाता है यह पंचशील सिद्धांत है।
१. हत्या न करना
२. चोरी न करना
३. व्यभिचार न करना
४. असत्य न बोलना
५. मद्दपान न करना
यह पंचशील शब्द भारतवर्ष के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने बोद्ध-धर्म से ही लिया और इस पंचशील में भारत के जवाहरलाल नेहरू के द्वारा ये पाँच सिद्धांत निश्चित करके 29 अप्रैल, सन् 1954 ई. चीन के। साथ पंचशील समझोता किया गया था :-
(1) एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना
(2) एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक काररवाई न करना
(3) एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना
(4) समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना तथा
(5) शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।
चीन ने नेहरु के साथ मिलकर इस पंचशील समझोते की अनेक राष्ट्राध्यक्षो द्वारा समर्थन करवाया गया और बर्मा, इंडोनेशिया, वियतनाम, युगोस्लाविया, रूस आदि देशो के राष्ट्र-प्रमुखों द्वारा इस दोरान की गयी भारत यात्रा पर भी इस पंचशील संधि तथा इसके सिन्धातो का भारी समर्थन व प्रसंशा की गयी। नेहरु अपनी वश-वाही से बहुत खुश होते थे।
लेकिन 1954 में इस संधि के बाद ही चीन ने तिब्बत में अपनी असलियत दिखानी शुरू कर दी क्योकि वह इस संधि के माध्यम से भारत को उसके अन्दरुली मामलों में हस्तक्षेप न करने के लिए पाबन्द कर चुका था अथार्त भारतवर्ष अब चीन के अधीन तिब्बत के मामलों में कुछ नही बोल सकता था और चीन ने तिब्बत में अपने अत्याचार शुरू कर दिए। 1 सितम्बर 1951 को कब्जाए तिब्बत पर वह इस "पंचशील-संधि" के माध्यम से इस प्रदेश को अपना अन्दरुली हिस्सा बना चुका था और भारत के प्रधानमंत्री (नेहरू जी) विभिन्न राष्ट्राध्यक्षो के बीच इस पंचशील-संधि की प्रसंशाये सुन-सुनकर फूले नही समा रहे थे।
चीन के तिब्बत में बढ़ते अत्याचार से 1959 तक विद्रोह उग्र हो उठा और चीन-सेना द्वारा अनेको तिब्बतियों को मार डाला गया, तत्कालीन तिब्बत के दलाई लामा जो आज भी भारत की शरण में है, ने नेपाल के रास्ते अपने सेकड़ो समर्थको के साथ बमुश्किल चीन-सेना से जान बचाकर भारत पहुचे। तब से वे तिब्बत की निर्वासित सरकार सहित आज भी भारत कीशरण में ही है। 1959 से 1962 के मध्य भी हमारे रूमानी व भावुक आदर्शवादी शासक श्री नेहरू जी ने चीन की हरकतों पर कोई ध्यान नही दिया और चीन ने इसका भरपूर फ़ायदा उठाते हुए अटूम्बर 1962 को अनेक मोर्चे खोलते हुए भारत की सीमाओं पर तिब्बत से होकर जबरदस्त हमले बोले, जिसके परिणामस्वरूप भारत के बड़े भूभाग न केवल चीन के कब्जे में चले गए बल्कि अबी भारत के अनेक क्षेत्रो को वह तिब्बत का हिस्सा बताते हुए अपना दावा ठोक रहा है ।
इस प्रकार असली गुनाहगार नेहरु ही है ।
मानव-कल्याण व विश्व-शान्ति के लिए बोद्ध-धर्म में बोद्ध भिक्षुओ के लिए पांच सिद्धांत निश्चित किये गए है जिन्हें पंचशील कहा जाता है यह पंचशील सिद्धांत है।
१. हत्या न करना
२. चोरी न करना
३. व्यभिचार न करना
४. असत्य न बोलना
५. मद्दपान न करना
यह पंचशील शब्द भारतवर्ष के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने बोद्ध-धर्म से ही लिया और इस पंचशील में भारत के जवाहरलाल नेहरू के द्वारा ये पाँच सिद्धांत निश्चित करके 29 अप्रैल, सन् 1954 ई. चीन के। साथ पंचशील समझोता किया गया था :-
(1) एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना
(2) एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक काररवाई न करना
(3) एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना
(4) समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना तथा
(5) शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।
चीन ने नेहरु के साथ मिलकर इस पंचशील समझोते की अनेक राष्ट्राध्यक्षो द्वारा समर्थन करवाया गया और बर्मा, इंडोनेशिया, वियतनाम, युगोस्लाविया, रूस आदि देशो के राष्ट्र-प्रमुखों द्वारा इस दोरान की गयी भारत यात्रा पर भी इस पंचशील संधि तथा इसके सिन्धातो का भारी समर्थन व प्रसंशा की गयी। नेहरु अपनी वश-वाही से बहुत खुश होते थे।
लेकिन 1954 में इस संधि के बाद ही चीन ने तिब्बत में अपनी असलियत दिखानी शुरू कर दी क्योकि वह इस संधि के माध्यम से भारत को उसके अन्दरुली मामलों में हस्तक्षेप न करने के लिए पाबन्द कर चुका था अथार्त भारतवर्ष अब चीन के अधीन तिब्बत के मामलों में कुछ नही बोल सकता था और चीन ने तिब्बत में अपने अत्याचार शुरू कर दिए। 1 सितम्बर 1951 को कब्जाए तिब्बत पर वह इस "पंचशील-संधि" के माध्यम से इस प्रदेश को अपना अन्दरुली हिस्सा बना चुका था और भारत के प्रधानमंत्री (नेहरू जी) विभिन्न राष्ट्राध्यक्षो के बीच इस पंचशील-संधि की प्रसंशाये सुन-सुनकर फूले नही समा रहे थे।
चीन के तिब्बत में बढ़ते अत्याचार से 1959 तक विद्रोह उग्र हो उठा और चीन-सेना द्वारा अनेको तिब्बतियों को मार डाला गया, तत्कालीन तिब्बत के दलाई लामा जो आज भी भारत की शरण में है, ने नेपाल के रास्ते अपने सेकड़ो समर्थको के साथ बमुश्किल चीन-सेना से जान बचाकर भारत पहुचे। तब से वे तिब्बत की निर्वासित सरकार सहित आज भी भारत कीशरण में ही है। 1959 से 1962 के मध्य भी हमारे रूमानी व भावुक आदर्शवादी शासक श्री नेहरू जी ने चीन की हरकतों पर कोई ध्यान नही दिया और चीन ने इसका भरपूर फ़ायदा उठाते हुए अटूम्बर 1962 को अनेक मोर्चे खोलते हुए भारत की सीमाओं पर तिब्बत से होकर जबरदस्त हमले बोले, जिसके परिणामस्वरूप भारत के बड़े भूभाग न केवल चीन के कब्जे में चले गए बल्कि अबी भारत के अनेक क्षेत्रो को वह तिब्बत का हिस्सा बताते हुए अपना दावा ठोक रहा है ।
इस प्रकार असली गुनाहगार नेहरु ही है ।
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