प्रधानमंत्री मोदी क्या निर्मल गंगा के भगीरथ बन पायेंगे ....?
"सोयेंगे तेरी गोद में एक दिन मर के
हम
दम भी तोड़ेंगे तेरा दम भर के हम,
हमने तो नमाजें भी पढ़ीं हैं अक्सर
गंगा तेरी पानी में वजू करके"।
दम भी तोड़ेंगे तेरा दम भर के हम,
हमने तो नमाजें भी पढ़ीं हैं अक्सर
गंगा तेरी पानी में वजू करके"।
नजीर बनारसी
इतिहास साक्षी है कि विश्व की महान मानव सभ्यताओं का विकास नदीयों के किनारे हुआ है। हर काल में मानव
सभ्यता के विकास में नदीयों से गहरा रिश्ता रहा
है। बात चाहे सिन्धु नदी घाटी सम्यता की हो या अमेजन की अथवा नील नदी की या फिर
मोक्षदायीनी गंगा की। हर स्थान व काल में मानव
का नदीयों से माँ-पुत्र का रिश्ता रहा है। मानव सभ्यताओं के विकास में नदीयों की अहम भूमिका रही है। आधुनिकीकरण के अन्धि दौड़ में आकर हमने
माँ- पुत्र के रिश्ते को कलंकित किया है। अपने उपभोग के उपरान्त
कचरे व विषाक्त पदार्थों को गंगा के हवाले कर उसे दूषित करने का काम किया है।शिव की जटाओं से निकली मोक्षदायीनी
गंगा जहाँ पूरे मानव सभ्यता को पाप मुक्त करने का काम किया है वहीं पाप के स्याह रंग में डूबा मानव अपने पापों समेत
दूषित कचरों व कल-कारखानों के विषाक्त पदार्थों को इसमें समाहित कर अपने को तो कुछ हद तक पाप मुक्त कर लिया है
मगर माँ गंगा के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह सा
लगा दिया है ? गंगा को दूषित करने के लिए तमाम साधन उपलब्ध हैं जैसे कि कल-कारखानों के
विषाक्त पदार्थ व दूषित जल, गंगा स्नान के दौरान दूर-दराज से ढ़ोकर लाया गया कचरा समेत स्नान के दौरान
साबुन व डिटेर्जंट का प्रयोग, मृत जानवरों को गंगा के हवाले करने व शवों को गंगा में मोक्ष की प्राप्ति के
लिए प्रवाहित करने की संस्कृति ने भी गंगा को कुछ हद तक नुक्सान पहुँचाया है। कचरों व विषाक्त पदार्थों को
ढ़ोते-ढ़ोते गंगा जल प्रदूषित होकर ठीक उसी प्रकार नीली पड़ गयी है जैसे विशपान
के बाद मानव शरीर हो जाता है।
गंगा, जिस देश की एक तिहाई से भी
अधिक आबादी के जीवन का सहारा बनी हुई है, वही उसकी बदहाली के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। जहां तक गंगा
को स्वच्छ बनाने की बात है तो 1985
से अब तक इस पर
हजारों करोड़ खर्च किए गए लेकिन नतीजा कुछ
भी नहीं निकल पाया है। सेंटर ऑफ एनवायर्नमेंट एंड नेचर
कंजरवेशन के आंकड़ों के अनुसार सिर्फ पटना में प्रतिदिन 222.6
मिलियन लीटर
गंदा पानी गंगा में बहाया जाता है। इनमें से 160.6 मिलियन लीटर दूषित पानी बगैर ट्रीटमेंट के ही गंगा में बहाया
जाता है। पूरे बिहार में गंगा नदी में 300 मिलियन लीटर गंदा पानी बगैर ट्रीटमेंट के ही बहा दिया जाता है। गंगा की वर्तमान में दशा यह है कि
बिहार में गंगा में विषाणुओं की मात्रा बढ़
रही है। गंगा में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा न्यूनतम
5 मिलीग्राम प्रति लीटर भी नहीं रह गई
है जो बैक्टेरियोफेज नुकसानदायक बैक्टीरिया, टोटल कोलीफॉर्म तथा फीकल कोलीफॉर्म को खत्म करता है उसकी संख्या घटती जा रही है। नुकसानदेह बैक्टीरिया कोलीफॉर्म
और फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की संख्या
निश्चित अनुपात को पार कर चुकी है। वर्ष 2009 में
गंगा नेशनल रिवर बेसिन बनाया गया था। इसके तहत 2600 करोड़ रुपए खर्च हुए लेकिन गंगा निर्मल
नहीं बनाई जा सकी। गंगा के किनारे स्थापित सात सौ से अधिक औद्योगिक इकाइयां भी इसे प्रदूषित कर रही हैं।
बिहार सरकार ने 600 करोड़ रुपए की योजना को
स्वीकृति देकर अपनी भूमिका निभाई है लेकिन सच यह भी है कि पूरे देश में अब तक गंगा को निर्मल बनाने के नाम
पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए गए पर गंगा की
सूरत नहीं बदल पाई।
इसके प्रदूषण पर देश-विदेश में चिंता व्यक्त की जाती है, लेकिन गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की जगह यहां राजनीति होती है। ऐसे में, सरकारों को जगाने की कोशिश वकील और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता एस सी मेहता ने की। मेहता ने गंगा
किनारे लगे कारखानों और शहरों से लगातार नदी में
फेंके जा रहे कचरे पर लगाम लगाने के
लिए सुप्रीम
कोर्ट में याचिका दायर की। दिसंबर 1984
में वन एवं
पर्यावरण मंत्रालय ने गंगा एक्शन प्लान का
खाका तैयार किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव
गांधी के दिलचस्पी लेने के बाद अप्रैल 1985 कैबिनेट
ने पूरी तरह केंद्र पोषित गंगा एक्शन प्लान को
मंजूरी दी,
जिसे गंगा
एक्शन प्लान-एक कहा गया।
10 साल बाद सितंबर 1995 में इसका नाम बदलकर नेशनल रीवर कंजर्वेशन अथॉरिटी कर दिया गया। गंगा एक्शन प्लान-एक का लक्ष्य था उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में प्रतिदिन 1,340 मिलियन लीटर प्रदूषित पानी को साफ करके 882 मिलियन लीटर साफ पानी तैयार करना। इस लक्ष्य को मार्च 1990 तक पूरा होना था, लेकिन 10 साल के विस्तार से इसे मार्च 2000 तक की मोहलत मिल गई। प्लान को विस्तार देने के बावजूद सरकार ने फरवरी 1991 में गंगा एक्शन प्लान-दो की घोषणा की। गंगा एक्शन प्लान-दो शुरू करने का मकसद था, गंगा की दो बड़ी सहायक नदियों और यमुना व गोमती की दशा में सुधार करना. 1995 में इसमें कई और नदियों को शामिल करने की मांग हुई। 1995 में ही गंगा एक्शन प्लान-दो का राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) में विलय कर दिया गया।
गंगा एक्शन प्लान-एक में गंगा के पानी को साफ करके कम से कम नहाने योग्य बनाना पहली प्राथमिकता तय की गई थी. इसके तहत पानी में बॉयो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी अधिकतम तीन मिलीग्राम, डिजॉल्वड ऑक्सीजन यानी घुलित ऑक्सीजन पांच मिली ग्राम प्रतिलीटर, फेकल कोलीफॉर्म को घटाकर प्रति 100 मिली लीटर पर 2,500 और कुल कॉलीफोर्म को प्रति 100 मिली लीटर पर 10 हजार के स्तर तक लाने का लक्ष्य निर्धारित था। इस पर करीब 1,200 करोड़ रुपये खर्च हुए. इससे गंगा के प्रदूषण में कुछ गिरावट तो जरूर आई, लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा चार नवंबर 2008 को गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किए जाने के बाद वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण (संरक्षण) कानून 1986 के तहत 20 फरवरी 2009 को राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) का गठन किया। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं और केंद्रीय मंत्री तथा उन राज्यों के मुख्यमंत्री इसके सदस्य हैं, जहां से होकर नदी गुजरती है।
10 साल बाद सितंबर 1995 में इसका नाम बदलकर नेशनल रीवर कंजर्वेशन अथॉरिटी कर दिया गया। गंगा एक्शन प्लान-एक का लक्ष्य था उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में प्रतिदिन 1,340 मिलियन लीटर प्रदूषित पानी को साफ करके 882 मिलियन लीटर साफ पानी तैयार करना। इस लक्ष्य को मार्च 1990 तक पूरा होना था, लेकिन 10 साल के विस्तार से इसे मार्च 2000 तक की मोहलत मिल गई। प्लान को विस्तार देने के बावजूद सरकार ने फरवरी 1991 में गंगा एक्शन प्लान-दो की घोषणा की। गंगा एक्शन प्लान-दो शुरू करने का मकसद था, गंगा की दो बड़ी सहायक नदियों और यमुना व गोमती की दशा में सुधार करना. 1995 में इसमें कई और नदियों को शामिल करने की मांग हुई। 1995 में ही गंगा एक्शन प्लान-दो का राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) में विलय कर दिया गया।
गंगा एक्शन प्लान-एक में गंगा के पानी को साफ करके कम से कम नहाने योग्य बनाना पहली प्राथमिकता तय की गई थी. इसके तहत पानी में बॉयो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी अधिकतम तीन मिलीग्राम, डिजॉल्वड ऑक्सीजन यानी घुलित ऑक्सीजन पांच मिली ग्राम प्रतिलीटर, फेकल कोलीफॉर्म को घटाकर प्रति 100 मिली लीटर पर 2,500 और कुल कॉलीफोर्म को प्रति 100 मिली लीटर पर 10 हजार के स्तर तक लाने का लक्ष्य निर्धारित था। इस पर करीब 1,200 करोड़ रुपये खर्च हुए. इससे गंगा के प्रदूषण में कुछ गिरावट तो जरूर आई, लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा चार नवंबर 2008 को गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किए जाने के बाद वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण (संरक्षण) कानून 1986 के तहत 20 फरवरी 2009 को राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) का गठन किया। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं और केंद्रीय मंत्री तथा उन राज्यों के मुख्यमंत्री इसके सदस्य हैं, जहां से होकर नदी गुजरती है।
गंगा प्राधिकरण की पहली बैठक में जो
महत्वपूर्ण निर्णय हुआ वह यह कि गंगा में निवास करने वाली डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलचर घोषित कर दिया गया। बाघ और
मोर के बाद डॉल्फिन को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा
दिया जाना डॉल्फिन को उसकी गरिमा तो
दिलाता है
लेकिन हकीकत यह है कि देश के नदियों के पवित्र जल में निवास करने वाली डॉल्फिन का अस्तित्व खतरे में है। वर्ष 1979 में जहां देश की विभिन्न नदियों में डॉल्फिन की संख्या चार से पांच हजार थी, वहीं अब इनकी संख्या सिमट कर महज दो हजार के लगभग रह गई है। दरअसल बाघ और मोर की
तरह डॉल्फिन भी कागज की शोभा बनने के कगार
पर आ खड़ी हुई हैं। पूरे देश में करीब 2000 डॉल्फिन
इस वक्त बताई जा रही है। 1982 में देश की सभी नदियों में
डॉल्फिनों की संख्या 4000 से लेकर 5000
के बीच आंकी
गयी थी, जो अब सिमट कर 2000 के करीब हो गई है।
चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के तात्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ
सिंह ने कहा था कि केंद्र में भाजपा की सरकार
बनने के बाद गंगा एक्शन प्लान में संशोधन किया जाएगा, क्योंकि 1985 से चल रहे मौजूदा गंगा एक्शन प्लान के परिणाम सकारात्मक नहीं रहे हैं। सिंह ने विश्वास दिलाया कि भाजपा की
सरकार बनने पर गंगा का अविरल बहाव
सुनिश्चित किया जाएगा और गंगा निर्मल भी होगी। साथ ही पार्टी की कोशिश होगी कि गंगा में पानी का बहाव बढ़ाया जाए, ताकि प्रदूषण खुद ब
खुद बह जाए।
राजनाथ सिंह भाजपा, गंगा प्रकोष्ठ की ओर से
अविरल गंगा-निर्मल गंगा अभियान के तहत आयोजित
कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में अभियान का नेतृत्व कर रही वरिष्ठ भाजपा नेता उमा भारती ने कहा
था कि गंगा प्रकोष्ठ देश के सभी बड़े वैज्ञानिकों
व विशेषज्ञों से संपर्क में हैं और कई
ऐसे कार्यक्रम
तैयार किए गए हैं, जिन पर काम करने से गंगा को
निर्मल बनाया जाएगा। उमा ने कहा कि केंद्र
में भाजपा की सरकार बनती है तो इस संकल्प को पूरा किया जाएगा, लेकिन
यदि सरकार नहीं भी बनी तो संघर्ष के जरिये गंगा को उसका अस्तित्व लौटाया जाएगा।
उमा भारती ने कहा कि अंग्रेजों ने भी जो बांध बनाए थे, उस समय भी
उन्होंने गंगा
की एक धारा को अविरल बहने के लिए रास्ता दिया था, जिसे राम गंगा कहा जाता है, लेकिन अब सरकार ऐसा नहीं कर रही हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए गंगा को
नुकसान पहुंचाया जा रहा है। हम गंगा में खनन
व बांध का विरोध नहीं करते, बल्कि वैज्ञानिक तरीके से गंगा को नुकसान पहुंचाए बिना यह काम किया जा सकता
है। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में
गंगा के साथ लगते गांवों में गंगा चौकियां बनाई जाएंगी, जिनमें शामिल गांव वाले गंगा
की रक्षा करेंगे। उमा भारती की गंगा के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए
प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें अपने सरकार के केबिनेट में “जल संसाधन एवं गंगा के
निर्मलीकरण” संबंधी मामलों का मंत्री बनाया है।
जिस दिन हमारी सरकारों में
इच्छाशक्ति आ जाएगी, उसके 10 साल के भीतर गंगा
का पानी पीने लायक बन जाएगा, लेकिन ऐसा तब तक नहीं होगा
जब तक हमारी गंगा में पॉलिटिकल बारगेन (राजनीतिक
सौदेबाजी) की क्षमता नहीं आ जाती। विडंबना है कि पावन गंगा की
सौदेबाजी की क्षमता प्याज से भी कम है जिसने कई सरकारों की किस्मत लिखी है।
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