पृथ्वी दिवस

मनुष्य के मन में जब इक्षायें जन्म लेती हैं, तो वह नहीं जानता कि वे उसके लिए हितकर है या नहीं। किंतु प्रकृति जानती है। इसलिए वह मनुष्य की इक्षायें पूरी नहीं करती। तब मनुष्य प्रकृति से रुष्ट होकर स्वयं कार्य करता है। कर्म का फल प्रकृति रोक नहीं सकती.....तब अपने अहित का दायित्व भी मनुष्य के अपने कन्धों पर ही होता है।

प्रकृति का न्याय तो सीधा है, पानी में दूध मिलाया जायेगा, तो वह उसमें मिलकर अपना अस्तित्व खो देगा। मक्खन को पानी में मिलाया जायेगा, तो वह उसके ऊपर तैरता रहेगा, न उसमें मिलेगा, न विलीन होगा, न अपना अस्तित्व खोएगा।

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