रानी पद्मिनी पहले हिन्दू 'स्त्री' थी तब क्षत्रिय !!

मेरा भ्रम आज तब टुट गया जब आज एक वर्ग विशेष (जाति) इतिहास (रानी पद्मिनी) की बात को छोड़कर अब व्यक्ति विशेष (दीपिका पादुकोण) की बात करने लगा है। मैं नहीं जनता हूँ कि दीपिका किस जाति से आती है, मुझे तो सिर्फ इतनी ही जानकारी है कि दीपिका महान बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण की सुपुत्री हैं और स्वयं एक बहुत अच्छी खिलाड़ी रही हैं एवं अच्छी फिल्म अभिनेत्री भी। पर आज बहस के दरम्यान पता चला कि उनका उस जाति विशेष से सम्बन्ध है। हालाँकि इस देश का हर हिन्दू फिल्म पद्मावती के खिलाफ सड़क पर है फिर भी कुछ अवांछित तत्व इस मुहीम में सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए संविधान से इतर अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं जो निंदनीय है क्यूंकि दीपिका पादुकोण भी इस देश की सम्मानित नागरिक है।
लेकिन आज भी हिन्दू कायरों की संख्या कम नहीं है हमारे सामाज में। सिनेमा जगत के लोग फिल्म का समर्थन कर रहे हैं तो उनकी लाचारी और बेबसी समझ में आती है कि कोई भी अपने व्यवसाय के खिलाफ जल्दी नहीं बोलता है और फिर लीला भंसाली बड़े निर्माता-निर्देशक भी है। कुछ अपवाद यहाँ भी हैं जो मुखर होकर इस फिल्म के विरोध में बोल रहे हैं। कुछ राजनीतिक दल द्वन्द की स्थिति में हैं कि बोलने से कहीं एक वर्ग विशेष का वोट बैंक बिगड़ न जाए तो वहीँ ममता बनर्जी महिला होते हुए भी खुल कर इस फिल्म का समर्थन सिर्फ अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थ के लिए कर रही है।
मशहूर पठकथा लेखक जावेद अख्तर( न जाने कैसे लोग इन्हें बुद्धिजीवी मानते हैं) ने अभी फिल्म पद्मावती पर अपनी विद्द्वातापूर्ण राय को जगजाहिर करते हुए कहा है कि “दर्शक पद्मावती फ़िल्म को फ़िल्म की तरह देखें। इतिहास की तरह देखना हो तो इतिहास पढ़ें”। यह कथन गलत है। फ़िल्म श्रव्य दृश्य माध्यम है। यह फ़िल्म इतिहास की घटना पर आधारित है। वर्तमान का अधिकांश युवा पीढ़ी न तो रामायण का गहण अध्ययन किया है न ही गीता और महाभारत का और न ही किसी अन्य धार्मिक/एतिहासिक ग्रंथों का, परन्तु कम अथवा ज्यादा जानकारी सभी व्यक्तियों को है अपनी रूचि/ आस्था या परंपरा के अनुसार क्यूंकि इसका स्त्रोत छोटी-छोटी कहानियां, लेख, टीवी पर प्रदर्शित होने वाले डाक्यूमेंट्री, सीरियल एवं फिल्म का ही प्रमुख योगदान है।
आज जो समझ रहे है कि ये सिर्फ क्षत्रिय की लड़ाई है, सिर्फ क्षत्रिय का अपमान है। क्षत्रिय समझे। और तंज़ कस रहे हैं। मैं विनम्रता पूर्वक कहना चाहता हूँ उनसे कि अपने इतिहास को मत भूलें कि "जब-जब हम बटे है, तब-तब हम लूटे।" इसी जाति विभाजन ने हमें सैकड़ों सालों की गुलामी दी थी। अब तक के इतिहास में शायद पहली बार हिन्दू एकता की मिसाल देखने को मिल रही है। अगर हम बटे न हुए होते तो किसी खिलजी की कहानी भारत में सुनने को नहीं मिलता। ना ही रानी पद्मिनी का अपमान होता, ना ही उन्हें जौहर करना पड़ता, ना उन्हें जान गंवानी पड़ती।
हिन्दू एकता का मिसाल बस इसलिये आज फण उठा रहा है कि अब इतिहास ने भी करवट लेने का मन बना लिया है। अगर अब भी जातियों में बटने-बांटने की कोशिश करेंगे तो हमें यह अच्छी तरह से समझ लेना इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा ना ही कोई तीसरा मौका देगा इतिहास पुनः एक बार सँभलने का क्यूंकि बक्सर युद्ध (22 Oct 1764) में भी हमने इसी गलती को दुहराया था जब ईस्ट इंडिया कंपनी के मात्र 500 फौज हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में अवध के नवाब शुजौद्धौला, बंगाल के नवाब मीर कासिम और मुग़ल शहंशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना को मात्र 03 घंटे में पराजित कर दिया था।
आज एक कौम अकेला लडेगा तो कल समाज अकेला पड़ जायेगा और यकीन मानिये जिस दिन हमारा समाज अकेला हो जायेगा उस दिन देश की अखंडता फिर से खतरे में होगी और तब शायद जिन्ना की वह पंक्ति को हम याद करते हुए सिसकते रहेंगे कि ‘मैं भारत के असंख्य टुकड़े करवा दूंगा अपनी दूरगामी नीतियों से’।

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