भोजपुरी के शेक्स्पीयर :~ भिखारी ठाकुर !!

Theatre is the most powerful instrument for teaching the nation how to think and feel.
                                                                                                                    (G.B. Show )
          अपने जीवन काल में ही जीवंत(लीजेंड) बन चुके भिखारी ठाकुर का जन्म बिहार के सारण जिला के कुतुबपुर गाँव में 18 दिसंबर 1888 को एक गरीब नाई परिवार में हुआ था। तब किसी को भी नहीं पता था कि यही निपट गवांर लड़का एक दिन भोजपुरी का लोक कंठ बन जाएगा।
            भोजपुरी साहित्य के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर का बिदेसिया नाटक, भोजपुरी लोक जीवन का जीवंत दस्तावेज है। बिदेसिया महज नाटक नहीं है बल्कि भोजपुरिया अस्मिता की पहचान है, सृजनशीलता की प्रतीक है। शहरीकरण और औद्योगीकरण की आंधी में उजड़ते भोजपुरिया परिवार और कोलकाता, असम के सुदूर क्षत्रों काम की तलाश में पहुंचे भोजपुरिया मजदूरों की जिंदगी की दारुण दास्तान है बिदेसिया।
               भिखारी ठाकुर ने बिदेसिया शैली का प्रयोग सामूहिक त्रासदी की कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए किया था। यह सामूहिक त्रासदी औद्योगीकरण के कोख से पैदा हुई थी। इतिहास गवाह है कि भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की स्थापना के साथ ही भोजपुरी क्षेत्रों के मजदूरों का पलायन कोलकाता, असम ही नहीं वरन फिजी, मॉरीशस, ट्रिनिडॉड, सुरीनाम आदि अन्य उपनिवेशों में हुआ। अंग्रेजी शासन की सबसे गहरी मार भोजपुरियों को ही सहनी पड़ी थी।
                 भोजपुरी प्रदेशों के लिए कोलकाता महज एक शहर का नाम नहीं है बल्कि बिरह का एक ऐसा सैलाब है जिसमें हजारों-हजार आंखों का काजल बह चुका है। इन प्रदेशों के नौजवान रोजगार और खुशी की तलाश में कोलकाता और असम के चटकलों में शरण पाते थे। अत्यधिक गरीबी के कारण ज्यादातर लौटकर नहीं आते थे। अकारण नहीं कि भोजपुरी प्रदेशों की औरतों के लिए कोलकाता किसी सौत से कम नहीं था। बिहार के गांवों की औरतों में आज भी यह अंधविश्वास व्याप्त है कि बंगाल औऱ असम की औरतें उनके मर्दों को जादू से तोता और भेड़ा बनाकर रख लेती हैं।
मोर पिया मत जा हो पुरुबवा
पुरुब देश में टोना बेस बा, पानी बड़ा कमजोर
मोर मत जा हो पुरुबवा।

                  इसी तरह एक और गीत में एक नारी अपने पति को पुरुब(कोलकाता) में नौकरी करने जाने नहीं देना चाहती। जब पति कहता है कि वह पुरुब में नौकरी करने जाएगा औऱ वहां से वह उसके लिए साड़ी और सिकड़ी (गले का चेन)ले आएगा तो सुनिए कि उसकी पत्नी क्या कहती है –
अगिया लागहू पिया तोहरी नोकरिया, बजर पड़हूं
पिया साड़ी ओ सिकड़िया, बजर पड़हूं। (आपकी नौकरी में आग लगे और साड़ी तथा सिकड़ी को वजर पड़े।)
                 बिदेसिया शब्द नहीं, यथार्थ है, एक ऐसा यथार्थ जिसमें माटी की गंध है, फूलों की महक है और जीवन की आलोचना है। श्रृंगार औऱ वियोग की चादर पर करुणा का रंग बिखेरने तथा सामूहिक त्रासदी की कलात्मक अभिव्यक्ति का नाम है बिदेसिया।
              हिंदुस्तान के सारे रंगकर्मी मुक्त कंठ से बिदेसिया की प्रशंसा कर चुके हैं। महापंडित राहुल सांकृत्यायन बिदेसिया नाटक एक बड़े प्रशंसको में थे। बिदेसिया नाटक को देखकर ही उन्होंने भिखारी ठाकुर को एक ‘अनगढ़ हीरा’ कहा था। वह मानते थे कि भिखारी ठाकुर की कृतियों का अगर सही आकलन नहीं हो सका तो इसके लिए पढ़ुआ (पढ़े-लिखे) लोग ही जिम्मेदार हैं। यदि भिखारी ठाकुर को पढ़े-लिखों का सहयोग मिला होता तो उनकी प्रतिभा में और भी निखार आता।
              सामाजिक आर्थिक शैक्षणिक सुधर हेतु भिखारी ठाकुर के नृत्य गायन और नाटक को आधार बनाया। उन्होंने थियेटर के माध्यम से अपनी बात जन-जन तक पहुंचानी चाही। भिखारी ठाकुर ने एक दर्जन नाटकों का सृजन किया। भजन कीर्तन सभी विद्धाओं में भिखारी की कविता निखरी। दोहा, चौपाई, बिरहा, सोरठ सब का प्रयोग अपने नाटकों में भिखारी ठाकुर ने किया।आजादी के आंदोलन में भिखारी ठाकुर ने अपने कलात्मक सरोकारों के साथ शिरकत की। अंग्रेजी राज के खिलाफ नाटक मंडली के माध्यम से जनजागरण करते रहे। इसके साथ ही नशाखोरी, दहेज प्रथा, बेटी हत्या, बालविवाह आदि के खिलाफ अलख जगाते रहे। यद्यपि बाद में अंग्रेजों ने उन्हें “रायबहादुर” की उपाधि दी।
                 भिखारी ठाकुर व्यवहार कुशल और पात्रानुकूल भाषा के पक्षधर थे। भोजपुरी बोली का व्याकरण और सटीक शब्दों का चयन और उसके प्रयोग करने की उनमे विलक्षण क्षमता थी। दलितों एवं पीड़ितों की एक नाटक मंडली बनाई एवं दूर-दूर तक जाकर अपने स्व रचित नाटकों का मंचन किया। वह स्वयं भी अपने नाटकों में एक पात्र हुआ करते थे। सामाजिक विषमतायें ही उनके कविताओं एवं नाटकों के प्रमुख विषय हुआ करते थे। बिदेसिया, भाई-विरोध, बेटी-वियोग, कलियुग-प्रेम, राधेश्याम-बहार, बिरहा-बहार, नक़ल भांड अ नेटुआ के, गबर घी चोर, गंगा स्नान (अस्नान), विधवा-विलाप, पुत्रवध, ननद-भौजाई आदि। इसके अलावा उन्होंने शिव विवाह, भजन कीर्तन: राम, रामलीला गान, भजन कीर्तन: कृष्ण, माता भक्ति, आरती, बुढशाला के बयाँ, चौवर्ण पदवी, नाइ बहार आदि की भी रचनाएं(कुल 29 पुस्तक) की। 
             अपने प्रसिद्ध नाटक 'बिदेसिया' में भिखारी ठाकुर ने स्त्री जीवन के ऐसे प्रसंगों को अभिव्यक्ति के लिए चुना, जिन प्रसंगों से उपजने वाली पीड़ा आज भी हमारे समाज में जीवित है।" भिखारी ठाकुर भारतीय संस्कृति के छतनार वृक्ष ही नहीं वे एक संस्कृति के संस्था भी थे। भिखारी ठाकुर आज भी जन मानस में रचे बसे हैं।

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