आज किसी को भी नही है~ 'नीले आसमान ' की परवाह !!

'मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह का,
क्या कारोगे सूर्य का क्या देखना है.
हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है।'
               प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार के द्वारा दशकों पूर्व लिखी गयी यह कविता आज दिल्ली एवं उसके सीमावर्ती इलाकों के लिए कितना प्रासंगिक है यह बतलाने की नहीं बल्कि आज चिंतन की विषय वस्तु है। समूची वृहत्तर राजधानी घने धुंध के चादर में बेबस और बेसुध सी पसरी हुई है और देश नोट बंदी के विरोध और पक्ष में वाद-विवाद कर रही है। सरकारी तंत्र भूख से बिलखते लोगों की चिंता छोड़ खिचड़ी बनाने के विश्व रिकॉर्ड में मगन है पर किसी को भी उस नीले आसमान की परवाह नहीं है जो साल दर साल स्याह होती चली जा रही है।

धुंध को लेकर आरोप-प्रत्यारोप एक दुसरे के ऊपर लाद कर अपनी जिम्मेवारी से बचने का असफल प्रयत्न किया जा रहा है। आम नागरिक ठगा सा अपने को देख रहा है और कटाक्ष भरे  शब्दों से देश की सबसे बड़ी अदालत से एक जायज सा उत्तर मांग रहा है कि क्यों मेरे आतिशबाजी को रोक देने के बाद भी तो दिल्ली धुंध के चादर में समा गयी।

स्मोग (Smog) यानि धुएं जैसी एक चादर जो अत्यधिक प्रदूषण के कारण शहरों के ऊपर छा जाती है कुछ लोग इसे कोहरा (fog) समझते हैं लेकिन यह कोहरा नहीं होता है बल्कि बढ रहे प्रदूषण के कारण उत्‍पन्‍न खतरानाक धुंध होती है इस धुंध के कारण सांस और फेफड़ों से संबधित बीमारियां हो सकती हैं।
आज विकाश के नाम पर भारत और चीन के कल-कारखाने अत्यधिक कार्बन का उत्सर्जन कर रहे है जिसके चलते धुएं का एक बवंडर सदैव भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर छाया रहता है, जिसे “एशियन ब्राउन चाइल्ड” भी  कहते हैं।

वहीं, एनजीटी के पुआल जलाने पर रोक के बाबजूद पंजाब और हरियाणा के किसान लगातार पुआल जला रहे हैं, जिसके धुंआ का प्रभाव दिल्ली तक पहुँच गया है और ये धुआं आसमान में जाकर नमी के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।
                      दिल्ली की राज्य सरकार इस  समस्या के निदान के दूरगामी समाधान को खोजने के बनिस्पत वैकल्पिक व्यवस्था पर ही जोर दे रही है। दिल्ली के उप-राज्यपाल ने तत्काल प्रभाव से वहां के विद्यालयों को स्थगित कर दिया है, भवन-निर्माण के कार्य पर फिलहाल रोक लगा दी गयी है, ट्रक एवं बड़े व्यावसायीक वाहनों के आवागमन पर रोक के आदेश जारी कर दिए गए हैं। मुख्यमंत्री ने दिल्ली नगर निगम को पार्किंग शुल्क चार गुना बढ़ा देने का सुझाव दिया है।

क्यों नहीं  इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए गहन शोध किया जा रहा है? इसी तरह की स्थिति 2014 में चीन के बीजिंग में उत्पन्न हो गयी थी जो कि 55 दिनों तक रही थी तब वहां की सरकार ने युद्ध स्तर पर इसके समाधान का प्रयाश किया था। सरकार ने मल्टी-फंक्शन डस्ट सेप्रेशन ट्रक का इस्तेमाल किया जिसमे एक विशाल वॉटर कैनन लगा था, जिससे 200 फीट ऊपर से पानी का छिड़काव होता है ताकि धूल नीचे बैठ जाए। इसके अलावा, चीन ने वेंटिलेटर कॉरिडोर बनाने से लेकर एंटी स्मॉग पुलिस तक बनाने का फैसला किया। ये पुलिस जगह-जगह जाकर प्रदूषण फैलाने वाले कारणों जैसे सड़क पर कचरा फेंकने और जलाने पर नज़र रखती है।

ब्राजील एक शहर क्यूबाटाउन को ‘मौत की घाटी’ के नाम से जाना जाता था. यहां प्रदूषण इतना ज़्यादा था कि अम्लीय बारिश से लोगों का बदन तक जल जाता था। लेकिन, उद्योगों पर चिमनी फिल्टर्स लगाने के लिए दबाव डालने के बाद शहर में 90 प्रतिशत तक प्रदूषण में कमी आ गई। यहां हवा की गुणवत्ता पर निगरानी के बेहतर तरीके अपनाए गए।

स्विट्ज़रलैंड के शहर ज्यूरिख़ में प्रदूषण से निपटने के लिए पार्किंग की जगहें कम की गईं ताकि पार्किंग न मिलने के कारण लोग कम से कम कार का इस्तेमाल करें। जिससे उन्हें प्रदूषण और ट्रैफिक जाम से निजात पाने में कुछ हद तक सफलता मिली थी।

महान भौतिकवेत्ता होपकिंस ने कहा है कि ‘धरती आग के गोले के रूप में तब्दील होती चली जा रही है और यदि हम समय रहते नहीं सचेत हुए तो 600 साल में पृथ्वी पर जिंदगी समाप्त हो जाएगी।‘
              शायद हमें 600 वर्ष अभी दूर लग रहें हो, पर आपको याद दिला देता हूँ कि आजकल एक हिंदी फिल्म काफी विवाद का विषय बनी हुई है- रानी पद्मावती। इतिहास के पन्नों को पलट कर देख लीजियेगा कि अलाउद्दीन खिलजी कब पैदा हुआ था। मात्र 720 साल पहले। दिल्ली का लोदी गार्डन इब्राहीम लोदी ने बनया था 1517 में, बस 500 साल ही तो हुए हैं अभी।
                 विज्ञान मनुष्य की औसत आयु 79 कहती है अर्थात अब मात्र आठ पीढियां। समय का क्या है, वह तो ऐसे ही चीते की तरह कूदता हुआ गुजर जाता है।

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