रानी पद्मावती~ इतिहास पर आस्था भारी !!

बृत, थलेंन, संरक्षते वित्त आयाति याति च:।
अक्षिणो वित्ततः, क्षीण, ब्रतस्तु हताहत:।।
                            .......@महाभारत
अर्थात अपने इतिहास की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए, धन तो आता जाता है, धनहीन होने से कोई नष्ट नहीं होता है किन्तु अपने इतिहास नष्ट होने से विनाश निश्चित है।

इतिहास को लेकर मेरी यह व्यक्तिगत धारणा है कि ‘इतिहास एक ऐसी चीज है जिसे हर व्यक्ति अपनी मर्जी से तोड़ मरोड़कर पेश करता है। इतिहास एवं ऐतिहासिक उपन्यास में एक मूल अंतर यह होता है कि इतिहास घटनाओं को दर्ज करता है, तथ्यों को दर्ज करता है, लेकिन एक खाली जगह छोड़ देता है। वो मनःस्थिति को दर्ज नही करता है। उस युग का इंसान क्या सोच रहा था, उसके ख्यालों की क्या हरकत थी, हालात का उसके ख्यालात पर क्या असर पड़ा और ख्यालात का हालात पर क्या असर पड़ा, इस तरफ इतिहासकार ध्यान नही देते। या फिर उनकी मजबूरी है कि जो तथ्यात्मक नही है उसपर ध्यान नही देंगे। लेकिन मेरा मानना है कि तथ्यों के आधार पर भी ख्यालात तक पहुंचा जा सकता है। हम एतिहासिक तथ्यों या घटनाओं से छेड़छाड़ नही कर सकते। हमें उस मर्यादा का पालन करना पड़ेगा। 

 यहां मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं जातिवाद को बहुत ही सिमित दायरे में देखता हूँ और इस विषय पर बोलना-लिखना पसंद नहीं करता हूँ क्यूंकि मेरे लिए जाति से ज्यादा व्यक्तित्व महत्व रखता है परन्तु यदि कोई मेरी जातिगत आस्था पर चोट करेगा तो कलम बोलने के लिए बाध्य हो ही जाएगी।

किसी भी समाज की तरक्की के लिए आत्मविश्वास और प्रेरणा की जरुरत होती है और वह हमें अपने इतिहास से ही मिलती है। हमारे आज के वामपंथी विचारधारा के कई प्रमुख इतिहासकार वही कार्य कर रहे हैं जो पुराने इतिहासकारों ने किया था। इरफ़ान हबीब, नजफ हैदर, प्रो. कालिका रंजन कानूनगो, प्रो. जहूर ने जहाँ रानी पद्मावती को एक काल्पनिक पात्र बताते हुए कहते हैं की यह मालिक मुहम्मद जायसी की कल्पना थी वहीँ प्रो. दशरथ सिंह,  नटनागर शोध संस्थान के निदेशक इतिहासविद् डॉ. रघुवीर सिंह, डॉ. मनोहर सिंह राणावत और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रजीउद्दीन अकील पद्मावती को एक ऐतिहासिक पात्र मानते हैं।

यदि आज हम बामपंथी इतिहासकारों के नजरिए से इतिहास को खंगालने बैठे तो बाबर के आने के बाद इतिहास में की गई छेड़खानी और अंग्रेजों से हमारे संघर्ष तक बात आकर सिमट जाती है। ऋणी हैं हम उन महान साहित्यकारों के जिनकी वजह से आज भी हम राम, कृष्ण और वैदिक परंपरा में अपने इतिहास को पढ़ लेते हैं वरना हमारी तो स्थिति वह कर दी गई है कि हम बाबर के हमले के बाद ही अपने अस्तित्व को ऐतिहासिक किताबों में जिनका जिक्र नहीं वो किरदार कभी हुए ही नहीं ये कहना उतना ही गलत है जितना की हमें अपने पर पुरखो की तस्वीर नहीं होने पर उनके अस्तित्व को खारिज कर देना।

इतिहास किस्सों कहानियों और साहित्य से ही आगे बढ़ता है। रामायण, रामचरित मानस, महाभारत सिर्फ साहित्य की अप्रतिम रचना मात्र नहीं है, हर भारत वासी के लिए उसके गौरव पूर्ण इतिहास की साक्षी भी है। यह महज साहित्यिक रचना नहीं है यह हमारे समृद्ध इतिहास का लेख जोखा है। सिर्फ कहानियों तक सिमट जाना बेवकूफी है। हमारे इतिहास से एक बात तो साफ है कि हम आस्था से भरपूर हैं। आस्था ही हमारे अस्तित्व का मूल है। इस आस्था पर न तो पहले कोई चोट कर पाया न आज कर सकता है और न हीं भविष्य में कोई कर पाएगा। यही साहित्य या इतिहास हमें मुगलों और अंग्रेजों के हमलों के बावजूद अपनी परंपरा से जोड़े रखता है।
                     इस इतिहास को जो नहीं समझते उन्हें भारतीय इतिहास पर टिप्पणी करने की कोई जरूरत नहीं है। वे वही काम कर रहे हैं जो मुगलों के इतिहासकारों ने अपने आकाओं को पहचान दिलाने के लिए किया था। दुनिया की किसी सभ्यता का इतिहास उतना अक्षुण नहीं रह सकता जितना हमारा है। दरअसल इतिहास आईना दिखा देता है और इतिहास वर्तमान आस्थाओं से भी जुड़ा होता है। वो लोग जो सनातन सभ्यता को खत्म करने के लिए आए थे क्या ऐसा इतिहास लिखेंगे जो सनातन सभ्यता के गौरव को बताए?

यह सच है कि साहित्यिक रचनाओं में कवि या साहित्यकार को अपनी कल्पनाओं को भी रखने की छूट मिलती है। आज के दौर के लेखक मनु शर्मा, नरेंद्र कोहली, ईशान महेश, जैसे लोग आज भी राम, कृष्ण और सुदामा जैसे किरदारों को लेकर अपने उपन्यास लिखते हैं। इसमें उनकी कल्पनाएं होती हैं लेकिन ऐतिहासिक तत्वों को जस का तस लिया जाता है। ऐतिहासिक तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ कर ही नहीं सकता क्यूंकि उसे पाठक स्वीकार ही नहीं कर पाएंगे।

रानी पद्मावती के सौंदर्य को लेकर या उनके तोते को लेकर या उनके जीवन को लेकर कई बातों पर जायसी ने अपनी कल्पनाओं को भी उकेरा होगा लेकिन इस तथ्य को कोई नहीं बदल सकता कि मुगल आक्रांताओं की नजर हिंदू राजाओं की रानियों पर रहती थी। ये दरअसल इन घटिया आक्रांताओं की हवस मात्र नहीं बल्कि किसी राजा और उसकी प्रजा को नीचा दिखाने की एक राजनीतिक साजिश भी होती थी। मेवाड़ के महाराज रावल रतन सिंह की 15 रानियां थीं जिनमें सबसे छोटी पद्मावती थीं। वो अत्यंत रूपवान थीं और अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ की प्रजा के मानस को छलनी करने के लिए उन पर कुदृष्टि डालने का असफल प्रयास भी किया था। अन्य गरिमामयी रानियों की तरह उन्होंने भी प्रजा का मान रखने के लिए जौहर कर लिया था। ये एक ऐसा काला इतिहास है जो खिलजी के किसी वंशज को आज भी पचता नहीं है। ये इतिहास बताता है कि ये आक्रांता किस घटिया मानसिकता के साथ हमारे पवित्र देश में आए थे।

जायसी ने बेशक पद्मावती के रूप पर पूरा साहित्य लिख दिया इसमें उनकी कल्पनाएं भी हो सकती हैं लेकिन कुछ तथ्य ऐसे हैं जिन्हें वो भी नहीं बदल सकते थे। इन सब तथ्यों में सबसे महत्वपूर्ण ये है कि रानी पद्मावती एक शौर्यवान और गरिमामयी रानी थीं जिनके लिए सम्मान उनके प्राणों से भी बढ़कर था। रानी पद्मावती एवं 16000 हजार क्षत्राणीयों ने अपने सतीत्व की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग(जौहर) किया था वह सिर्फ क्षत्रिय/राजपूत कौम की नहीं अपितु समस्त भारतीय महिलाओं की सतीत्व की गौरव गाथा है जो हमारे इस गौरवपूर्ण इतिहास को कोई मूर्ख अपने क्षूद्र स्वार्थों के लिए कल्पना कहे तो किसी भी भारतीय को बर्दाश्त नहीं होगा?



दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी,
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी।
                              @पंडित नरेंद्र मिश्र

             जय भवानी  जय मेवाड़ !!

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