"डोका ला" विवाद :~ भारत-चीन आमने सामने !!



ड्रेगन की झूठी फुफकार ~ असमंजस में भारत !!
जब भी भारत और चीन के मध्य कोई भी विवाद सामने आता है, तो प्रायः यह सवाल जेहन में कौंध जाता है कि क्या भारत, चीन से डरता है ? यदि अब तक की सरकार के आचरण को ध्यान से अध्ययन किया जाये, तो यह स्पष्ट तौर पर नजर आता है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के पश्चात भारत, चीन के आतंक से मुक्त नहीं हो पाया है।
चीन और भारत विश्व के दो बड़े विकासशील देश हैं। दोनों ने विश्व की शांति व विकास के लिए अनेक काम किये हैं। वर्ष 1949 में नये चीन की स्थापना के बाद भारत ने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंधों की औपचारिक स्थापना के बाद दोनों ही देश के आपसी संबंध काफी घनिष्ठ रहे हैं। उन दिनों हिंदी-चीनी, भाई-भाई का नारा भी काफी चर्चित रहा था।
भारत, चीनी गणराज्य को मान्यता देने वाला, प्रथम गैर-समाजवादी देश बना। भारत ने चीन को संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता दिलाने के लिए भी जमीन-आसमान एक कर दिया था। लेकिन इतनी नजदीकियों और मधुरता के बाद, भारतको 1962 में विश्वासघात का विकृत रूप देखने को मिला।
उस दौर में कृष्ण मेनन रक्षा मंत्री थे। वे प्रधानमंत्री के काफी करीबी थे। लेकिन तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल के एस थिमैया से उनके सम्बन्ध अच्छे नहीं थे। जनरल थिमैया का मानना था कि उनकी सेना को चीन से होने वाले हमले के लिए तैयार रहना चाहिए। लेकिन रक्षामंत्री मेनन उनकी बात को नज़रंदाज़ करते रहे। रक्षामंत्री और सेनाध्यक्ष के बीच तनाव काफी बढ़ गया। अगस्त, 1959 में मेनन ने 12 वरिष्ठ अधिकारियों को नज़रंदाज़ कर बी एम कौल नाम के एक अधिकारी को लेफ्टिनेंट जनरल नियुक्त कर दिया। जनरल थिमैया ने इसके विरोध में प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफ़ा तक भेज दिया।
दोनों देशों के संबंध दस्तावेज़ी साक्ष्यों के आधार पर 2000 साल पुरानी हैं, दोनों ही विश्व की प्राचीनतम सभ्यताएं हैं। भारत-चीन सीमा लगभग 4 हज़ार कि.मी. लम्बी है। चीन डोका ला को अपना इलाका मानता है जबकि भारत और भूटान इसे भूटान का इलाका मानते हैं। भारतीय सेना ने भूटान की मदद करते हुए इस इलाके में घुसकर सड़क निर्माण को बाधित किया था। इसके बाद से चीन लगातार घुसपैठ के दावे कर रहा है।
इसके विरोध में चीन ने नाथू ला पास पर स्थित भारत के बंकर ध्वस्त कर दिए थे, जिसके चलते इस रास्ते से कैलाश मानसरोवर यात्रा को रद्द करना पड़ा था। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच युद्धके बीच युद्ध की स्थिति बनी हुई है। भारत के लिए डोका ला पर चीन का सड़क निर्माण रोकना इसलिए भी आवश्यक है कि सड़क बनने के बाद युद्ध की स्थिति में चीनी सेना भारत की सीमा तक आसानी से पहुंच सकती है। उल्लेखनीय है कि 1975 में चीन की आपत्ति के बावजूद भारत ने सिक्किम को भारतीय गणराज्य का 22वां राज्य बनाया था, जिसके बाद से ही चीन इस पूरे क्षेत्र में अनावश्यक तनाव बनाए रखता है।
अक्साई चिन में चीन पहले से ही भारत की 38 हज़ार वर्ग कि.मी. भूमि पर कब्जा किये हुए है और पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से हड़पे गए कश्मीर से भी 5180 वर्ग कि.मी. भूमि वह 'उपहार में' ले चुका है। भारत की संसद ने चीन से अपनी खोई हुई ज़मीन वापस लेने का सर्वसम्मत संकल्प पारित किया हुआ है लेकिन कमजोर इच्छा एवं संकल्प शक्ति के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है।
जब से भारत ने अपनी सीमा का रक्षा करना सीख लिया तभी से चीन बौखलाया हुआ है और 1962 के युद्ध की धमकी दे रहा है मगर चीन तो चीन शायद भारत भी एक बात भूल गया है कि चीन से हमारे 1 नही 2 युद्ध हुए है। पर चीन हार के बयाज जीत का ही गीत गाये जा रहा है । 5 वर्ष बाद ही 1967 में चीन ने एक बार फिर कोशिश की थी मगर अब परिस्थितियां बदल चुकी थी। सिक्किम उस समय भारत का हिस्सा नही था इस हिस्से पर भारत और चीन दोनों अपना दावा करते थे। उस समय वहाँ पर कोई तार नही लगे हुए थे सिर्फ पत्थर रखे थे उन्ही से सीमा निर्धारित थी। इसी का फायदा उठाकर 1 सितंबर 1967 को चीनियों ने घुसपैठ की कोशिश की हालांकि सेना ने उन्हें धकेल दिया मगर अब भारत की नींद खुल गयी थी। सेना ने तुरंत कटीले तार लगाने शुरू कर दिये जब चीनियों ने यह सब देखा तो उन्होंने 14 सितंबर को फायरिंग शुरू कर दी। जवाब में सेना ने चीन की मशीन गन यूनिट को ही तबाह कर दिया, मगर उस समय उप सेनाध्यक्ष जगजीत सिंह अरोड़ा थे। उनके मन मे 1962 की हार का घाव था, इसलिए उन्होंने ये युद्ध खत्म नही होने दिया बल्कि सेना को सीधे चीन में घुसने का आदेश थमा दिया। नाथुला और चोला पोस्ट पार करके भारतीय सेना आगे बढ़ती गयी, रास्ते मे चीन की जितनी भी चौकियां मिली वो सब तबाह कर दी और 340 चीनियों को स्वर्ग की यात्रा के लिये भेज दिया। 450 चीनी सैनिक बंदी बनाये गए हालांकि हमे भी 90 सैनिको का बलिदान देना पड़ा मगर 1 अक्टूबर 1967 आते आते भारतीय सेना ने सिक्किम पर कब्जा कर लिया और युद्धविराम की घोषणा कर दी ।
पिछले 40 वर्षो से चीन ने एक गोली भी नही चलाई है जबकि भारत उसके बाद तीन युद्ध सफलतापूर्वक लड़ चूका है। चीन यह अच्छी तरह से समझ गया कि वह भारत से शायद ना हारे मगर भारत को हरा भी नही सकता।
चीन ने यदि इस बार फिर आक्रमण किया तो उसे युद्ध के पहले ही दौर में यह पता चल जायेगा कि इस बीच भारत कितना बदल गया है। दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं व एक दूसरे के क्षेत्र में भीतर तक घुसकर मार करने की क्षमता भी, जो विनाश को और भी व्यापक बना देगा। चूंकि दोनों देशों का उद्देश्य आर्थिक विकास है सो अंततः समान क्षमता वाले प्रतिद्वंदी से भिड़कर कोई भी विनाश को निमंत्रित नहीं करेगा पर चीन जैसा धूर्त देश भारत को कमजोर करने के लिए पाकिस्तान का उपयोग करना चाहेगा, जबकि अमेरिका उसे रोकने के लिए भारत को मजबूत करेगा। ये कूटनीतियां अभी लगातार चलती रहेंगी और सीधे संघर्ष से बचते हुए दोनों देश अपने-अपने आर्थिक हितों को साधते रहेंगे।
चीनी विचारक सुनत्सु की कथन को ध्यान में रखना चाहिए कि ‘‘अपने शत्रु के हर कदम पर नजर रखो और उसकी विशेषताओं को कभी नजरअंदाज मत करो।’
जय हिंद!!

Comments