भय बिनु होई न प्रीति:~ गोस्वामी तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास ऐसे कवी हैं जिन्हें जिस कसौटी पर कसिए, सर्वदा खरे ही उतरेंगे। यदि आंग्ल साहित्य को शेक्सपियर पर गर्व है, जर्मन साहित्य को गेटे पर अभिमान है तो हिंदी-साहित्य भी तुलसी पर फूला नहीं समता। यदि एक ही व्यक्ति में कवि, भक्त, दार्शनिक तथा समाज सुधारक इन सबों का समन्वय देखना तो वह तुलसीदास का ही विरल-विशिष्ट व्यक्तित्व है।
उपेक्षाओं का जहर पीकर भी नीलकंठ की तरह मुस्कुराते रहने वाले तुलसीदास का प्रारंभिक जीवन कष्टमय रहा है। किन्तु वे प्रतिकूल परिस्थितिओं की परवाह न कर अपनी साधना के पथ पर बढते रहे और उस सीमा पर पहुँच गए जिसके आगे पथ ही नहीं होता।
अपने लंबे जीवनकाल(1589-1680{विवाद है}) में उन्होंने अनेक रचनाएँ की, लेकिन उनमे से १२ को ही प्रामाणिक माना गया है- रामचरितमानस, विनयपत्रिका, गीतावली, श्रीकृष्णगीतावली, पार्वती मंगल, जनकीमंगल, कवितावली, दोहावली, रामाज्ञाप्रश्न, बरवै रामायण, वैराग्यसंदीपनी तथा रामललानहछु।
रामचरितमानस ऐसी रचना है जिसकी चर्चा संसार के श्रेष्ठ भाषाओं के विचारकों ने की है। इसकी तुलना होमर की ‘इलिअड’ और ‘ओडेसी’, दांते की ‘डिवाइन कोमेडिया’, मिल्टन की ‘पैराडाइज लोस्ट’, शेक्सपियर की ‘किंग लियर’ और ‘मैकबेथ’, कालिदा की‘अभिज्ञानशाकुंतलम’, टैगोर की ‘गीतांजलि’ जैसी रचनाओं से की जाती है।
दूसरी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘विनयपत्रिका’ है।
रामचरितमानस महाकाव्य है तो ‘विनयपत्रिका’ गीतिकाव्य। यह अपने आप में एक निराली पुस्तक है। प्रेमी-प्रेमिका के पत्रव्यवहार की चर्चा साहित्य की कल्पना रही हो, किन्तु एक भक्त का भगवान के पास पात्र लिखना बिलकुल नयी बात है जो ‘विनयपत्रिका’ में अपनायी गयी है।
तुलसीदास जी की एक उक्ति को लेकर महिला समाज में बहुत ज्यादा रोष होता है क्यूंकि पुरुष वर्ग यदा कद इस उक्ति के माध्यम से उन्हें उलाहना देते हैं – “ढोल गवार शुद्र पशु नारी, ये सकल ताड़ना के अधिकारी”, यहाँ ताडना शब्द को लेकर समाज में बहुत ज्यादा मत- मतान्तर है। इस चौपाई में ताड़ना एक विवादित शब्द है।
अधिकारी शब्द का प्रयोग किसी अच्छी एवं सकारात्मक बात के लिए ही किया जाता है जबकि सजा के सन्दर्भ में अधिकारी शब्द का प्रयोग गलत है क्योंकि सजा पाने की नहीं, देने की बात होती है। इसलिए उपर्यक्त चौपाई में अधिकारी शब्द का प्रयोग किसी अच्छी चीज़ को पाने के लिए ही हुआ है। चौपाई में ढोल, गँवार, शूद्र, पशु तथा नारी ये पाँचों “सकल ताड़ना” के अधिकारी हैं शब्द सकल का अर्थ है ‘सम्पूर्ण या एब्सोल्यूट’। ताड़ना शब्द का अर्थ वैसे ‘पिटाई’ से लिया जाता है परन्तु एक अर्थ और है ‘परखना’ या “भाँपना” --- ‘वह उसकी नीयत को ताड़ गया’ अर्थात वह समझ गया कि उसकी नियत में खोट थी। चूँकि चौपाई में मामला भगवान राम से जुड़ा है इसलिए आध्यात्मिक सन्दर्भ में ताड़ना का अर्थ देखने- परखने या भाँपने से ही है न कि पिटाई या दुतकारने से।
बुद्ध के बाद भारत में सबसे बड़े लोकनायक तुलसीदास ही थे। लोकनायक उस महान व्यक्ति को ही कहा जा सकता है जो समाज के मनोविज्ञान को समझ कर प्राचीन संस्कार को नये दृष्टिकोण से उसमे उचित सुधार करके संस्कृति का उत्थान करता है। समन्वय, मर्यादा और आदर्श को समर्पित तुलसीदस के काव्य रामराज्य के रूप में एक ऐसे समाज की परिकल्पना करता है जहाँ ज्ञानबल, बाहुबल, धनबल और सेवाबल का समुचित समन्वय है।
सादर विनम्र नमन💐

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